दुविधा में है संघ, लगातार घट रही बीजेपी की लोकप्रियता !
नई दिल्ली। धर्म को लेकर देश की राजनीति एक बार फिर करवट बदल रही है। विकास और उपलब्धियों की जगह राजनैतिक मंचो से धर्म की बातें हो रही हैं। बीजेपी से जुड़े लोग सरकार के कामकाज का ज़िक्र करने की जगह कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी साबित करने में अधिक समय दे रहे हैं।
धर्म को लेकर शुरू राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी आज़मगढ़ की सभा में कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी साबित करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर पूर्व पीएम डा मनमोहन सिंह तक का उदाहरण दे डाला।
अगले आम चुनाव करीब हैं, इससे पहले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में बीजेपी का विकास को छोड़कर धर्म पर शिफ्ट होना इस बात का बड़ा संकेत हैं कि वह अभी भी हिंदुत्व के भरोसे ही बैठी है।
शायद यह इसलिए भी है कि बीजेपी और संघ नेताओं को केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों से ज़्यादा भरोसा अपने धार्मिक एजेंडे पर है। अहम सवाल यह है यदि मोदी सरकार का कामकाज पिछली सरकारों से अच्छा है तो सरकार के कामकाज को जनता के बीच क्यों नहीं रखा जा रहा ?
यदि सबकुछ ठीकठाक है तो बीजेपी एक बार फिर चुनाव विशेषज्ञ प्रशांत किशोर की सेवाएं क्यों लेना चाहती है। ज़ाहिर है कि बीजेपी नेताओं को ये आभास हो चूका है कि सरकार के कामकाज के सहारे 2019 की नैया पार नहीं लग सकती।
वहीँ सूत्रों की माने तो संघ इस बात को लेकर चिंतित है कि बीजेपी का वोट बैंक लगातार कम होता जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक संघ और बीजेपी का केलकुलेशन था कि जो हिन्दू वोट पार्टी से छिटक रहा है उसकी पूर्ति मुस्लिम वोटों से की जा सकती है।
यही कारण है कि मुसलमानो को पार्टी की तरफ आकर्षित करने के लिए संघ ने अयोध्या की सरयू नदी के तट पर कुरान का पाठ करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन रखा था। हालाँकि यह कार्यक्रम रद्द हो गया हो गया।
दूसरी तरफ तीन तलाक के मुद्दे पर बीजेपी ने खुद को मुस्लिम महिलाओं का हितेषी साबित करने की पुरजोर कोशिश की। देशभर में तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं का आंकड़ा टटोला गया। सूत्रों की माने तो आंकड़ों से अंदाज़ा निकाला गया कि यदि मुस्लिम महिलाओं को बीजेपी से जोड़ा जाए तो पार्टी का घटता वोट बैंक पुनः बढ़ सकता है।
सूत्रों की माने इसी कवायद के तहत तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को ढूंढ़ ढूंढ़ कर बीजेपी की सदस्यता दी गयी और उनके कल्याण का भरोसा दिया गया जिससे तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाएं अन्य मुस्लिम महिलाओं को भी बीजेपी से जोड़ें।
हालाँकि बीजेपी अपने इस मिशन में फेल हो गयी। कुछ एक शहरो में अवश्य कुछ मुस्लिम महिलाएं बीजेपी के कार्यक्रमों में भाग लेने को राज़ी हुईं लेकिन इनकी तादाद इतनी कम थी कि बीजेपी को अपनी रणनीति पर पानी फिरने का आभास होने में बहुत देर नहीं लगी।
वहीँ दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 में जो वोट मिला था उसका टूटना जारी है। बीजेपी नेता सार्वजनिक मंचो जो भी दावे करें लेकिन हकीकत यही है कि पार्टी और संघ की आंतरिक रिपोर्टें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को चैन से एक जगह नहीं बैठने दे रहीं।
चुनावी जानकारों की माने तो यदि आज की स्थति का आंकलन करें तो बीजेपी की सत्ता में वापसी नहीं होती दिख रही। मुसलमानो को छोड़ भी दिया जाए तब भी 2014 में नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट देने वाला बहुसंख्यक हिन्दू मतदाता बीजेपी के हाथ से लगातार छिटक रहा है।
(राजा ज़ैद)