दलित आंदोलन से हुआ बीजेपी को बड़ा नुकसान, फ़िलहाल सम्भव नहीं नुकसान की भरपाई
नई दिल्ली(राजाज़ैद)। एससी – एसटी एक्ट पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले के खिलाफ देशभर में दलित संगठनों द्वारा शुरू किये गए आंदोलन से बीजेपी के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा उससे छिटक गया है। दलितों को लेकर बनी बीजेपी की दलित विरोधी छवि से पार्टी को कर्नाटक सहित कई राज्यों में नुकसान पहुंचा है।
पार्टी सूत्रों की माने तो पार्टी के शीर्ष नेता अब इस बार को स्वीकार कर रहे हैं कि दलित आंदोलन से देश के दो बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, ओडिशा और महाराष्ट्र में भी बीजेपी की छवि को धक्का लगा है।
दलितों की बीजेपी से नाराज़गी की दो बड़ी वजह हैं। पहला कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार ने अपने रिकॉर्ड में संविधान निर्माता डा भीमराव अंबेडकर के नाम में “रामजी” शब्द जोड़ दिया है। दूसरी वजह एससी- एसटी एक्ट में सुप्रीमकोर्ट के संशोधन के बाद केंद्र सरकार द्वारा पुनर्विचार याचिका दाखिल करने में देरी करना है।
मालूम हो कि दलित आंदोलन के दौरान करीब दर्जन भर लोगों की जान चली गई थी, जबकि कई लोग घायल हो गए थे। इसके अलावा हाल ही में संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ने के सिलसिले को लेकर दलित समुदाय में भारी आक्रोश बना हुआ है।
दलित आंदोलन के बाद हरकत में आये सवर्ण भी आगामी दस अप्रेल को आंदोलन करने का एलान कर चुके हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल यही है कि आखिर पार्टी दलितों की नाराज़गी दूर करे या सवर्णो को मनाये।
दलित आंदोलन के बाद दलित समुदाय की नाराज़गी झेल रही बीजेपी को डर है कि उच्च जाति वर्ग का वोट बैंक भी कहीं हाथ से न छिटक जाए। इसलिए इसे ध्यान में रखकर पार्टी दलितों और सवर्णो को एक साथ साधे रखने के लिए माथापच्ची में जुटी है।
पार्टी सूत्रों की माने तो दलितों को मनाने के लिए पार्टी डा भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन 14 अप्रेल के दिन देशभर में कई बड़े कार्यक्रमों का आयोजन करने जा रही है।
वहीँ दलित मतदाताओं को लेकर पार्टी की चिंता यहीं खत्म नहीं होती। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठजोड़ बनना उसके लिए बड़ी चिंता का विषय है।
बीजेपी की रीढ़ कहे जाने वाले आरएसएस ने भी उत्तर प्रदेश में बने सपा बसपा के नए गठजोड़ को लेकर बीजेपी को अलर्ट किया है। पिछले दिनों आरक्षण को लेकर कुछ बीजेपी नेताओं द्वारा दिए गए बयानों के बाद अब पार्टी अध्यक्ष अपनी सभाओं में सफाई दे रहे हैं कि बीजेपी आरक्षण खत्म नहीं होने देगी।
फ़िलहाल देखना है कि आरक्षण को लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की सफाई दलितों पर कितना असर डालती है, लेकिन आज के हालातो को देखें तो दलित मतदाताओं की एक बड़ी तादाद बीजेपी से दूर हो चूकी है और उसे इसका खामियाज़ा कर्नाटक के विधानसभा चुनावो में झेलना तय है।