तीन तलाक: इन 7 सवालो का पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं दे पाया उचित जबाव
नई दिल्ली। मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक के चलन पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीमकोर्ट ने इस पर 6 महीने के लिए रोक लगा दी है तथा केंद्र सरकार से 6 महीनो के अंदर कानून बनाने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद जताई कि केंद्र जो कानून बनाएगा उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून संबंधी चिंताओं का खयाल रखा जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है तो तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा। कोर्ट ने कहा कि इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किए जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता। कोर्ट में 3 जज इसे अंसवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे, वहीं 2 जज इसके पक्ष में नहीं थे।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम समुदाय में शादी तोड़ने के लिए यह सबसे खराब तरीका है। ये गैर-ज़रूरी है. कोर्ट ने सवाल किया कि क्या जो धर्म के मुताबिक ही घिनौना है वह कानून के तहत वैध ठहराया जा सकता है? सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया कि कैसे कोई पापी प्रथा आस्था का विषय हो सकती है।
इस खंड पीठ में सभी धर्मों के जस्टिस शामिल हैं जिनमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कुरियन जोसफ (क्रिश्चिएन), जस्टिस रोहिंग्टन एफ नरीमन (पारसी), जस्टिस यूयू ललित (हिंदू) और जस्टिस अब्दुल नजीर (मुस्लिम) शामिल हैं।
सुप्रीमकोर्ट के वे सवाल जिनका पर्सनल लॉ बोर्ड सही से नहीं दे पाया जबाव :
- कुछ संगठनों के मुताबिक तीन तलाक़ शादी तोड़ने का सबसे ख़राब तरीक़ा है जो धर्म के लिहाज़ से निकृष्ट है, क़ानून में वैध कैसे?
- जो ईश्वर की नज़र में पाप, वो शरीयत में कैसे?
- पाक क़ुरान में पहले से प्रक्रिया फिर तीन तलाक़ क्यों?
- तीन तलाक़ अगर क़ुरान में नहीं है तो कहां से आया?
- दूसरे देशों ने क़ानून बनाकर इसे ख़त्म क्यों किया?
- क्या कोई प्रथा संवैधानिक अधिकारों से बढ़ कर हो सकती है?
- क्या निकाहनामे के वक़्त ही तीन तलाक़ से इनकार का विकल्प मुमकिन है?