ताकि सफलता की चमक सरहद के उस पार भी दिखे
ब्यूरो (मौ0 अनिस उर रहमान खान)। केंद्र सरकार के दो साल पूरे होने पर आशा की जा रही थी कि विकास के जो काम पहले नहीं हो सके वह इस सरकार में जरूर हो जाएंगे क्योंकि पहले दिन से ही “सबका साथ सबका विकास” का नारा लगाया जा रहा था, लेकिन दो साल पूरे होने पर विज्ञापन में पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी वही सुंदर वाक्यों का खेल नज़र आया जिन्हें अतीत में चुनाव जीतने के बोल कहकर अपनी जिम्मेदारी से बचने का रास्ता निकाला गया थ।
उदाहरण की जरूरत नहीं, सब जानते हैं कि मौजूदा सरकार जमीनी स्तर पर काम करने के बजाय कागजों, बोर्डों, समाचार पत्रों और टेलीवीजनों पर ही विज्ञापन द्वारा अपनी पीठ खुद थपथपा कर विकास के साथ चल रही है। इन्ही विज्ञापनों में कहा गया है कि स्कूलों में लड़कियों के लिए 4 लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया, जबकि आम जनता के लिए एक करोड़ 92 लाख शौचालयों का निर्माण हो चुका है। जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में साफ सफाई का प्रतिशत 42% से बढ़कर 52% हो चुका है।
सरकारी वेबसाइट पर शौचालय के सुंदर चित्र के द्वारा यह दिखाने की कोशिश जारी है कि पहले गांव के लोगो के पास खुले में शौच करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था और अब 54,732 गांव वालो ने सरकार द्वारा बनाए गए शौचालयों के कारण खुले में शौच नहीं करने का फैसला लिया है।
यह तो केंद्र सरकार के आंकड़े हैं, लेकिन गांव की सच्चाई जानने का अधिकार सबको है, केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की छत्रछाया में चलने वाली राज्य सरकारों में जम्मू-कश्मीर की भी सरकार शामिल है। शीतकालीन राजधानी जम्मू से लगभग 230 किलोमीटर की दूरी पर सीमावर्ती पहाड़ी जिले पूंछ मे 6 तहसील, 11 ब्लॉक, 189 पंचायतें हैं इसके तहत 178 गांव बसे हैं। यहां की जनसंख्या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 4.7 लाख है जिसमे शहरी आबादी 0.38 है जबकि 4.3 लाख ग्रामीण आबादी है।
वर्ष 2015 में दिल्ली स्थित गैर सरकारी संगठन चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जिला पुंछ में विकलांग महिलाओं की संख्या 35 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की संख्या 65 प्रतिशत है। अगर उम्र के हिसाब से आकलन किया जाए तो दस साल से कम उम्र के विकलांग बच्चों की संख्या 7 प्रतिशत है जबकि दस से बीस साल के विकलांगों की सबसे बड़ी संख्या यानी 30 प्रतिशत 21 से 30 साल के विकलांग 20 प्रतिशत हैं इसी तरह 31 से 40 साल के विकलांग 15 प्रतिशत हैं, 41 से 50 साल के 10 प्रतिशत, 51 से 60 साल के 6 प्रतिशत, 61 से 70 साल के 4 प्रतिशत 71 से 80 साल के महज दो प्रतिशत 81 से 90 साल की उम्र के एक प्रतिशत विकलांग हैं।
इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए युवा सामाजिक कार्यकर्ता और जम्मू विश्वविद्यालय में एमए की पढ़ाई करने वाले सैयद बशारत हुसैन शाह बुखारी के अनुसार “मेंढर के मुहल्ला छतराल की 35 वर्षीय निवासी जुलेखा बी बहुत पहले ही अपने माता पिता को खो चुकी हैं उनकी विकलांगता का हाल यह है कि पूरी तरह दूसरों पर निर्भर करती हैं, उन्हे चारपाई से दरवाजे तक पहुंचने में लंबे समय की आवश्यकता होती है।
घर में शौचालय नहीं है।जब मैंने इस संबंध मे डिप्टी चेयरमैन विधान परिषद श्री जहांगीर हुसैन मीर साहब से बात की तो उन्होंने 20000 रुपये अपने फंड से भुगतान करने के लिए एक पत्र 7 सितंबर 2015 को दिया था, जिसे मैंने 10 सितंबर 2015 को पूंछ से फॉरवर्ड लेटर के साथ मेंढर भेज दिया था और अक्टूबर 2015 को सूचीबद्ध पत्र बीडीओ कार्यालय मेंढर पहुंच भी गया था जिस की स्टीमीट आज तक नहीं बन पाई, कई बार इस मामले में बीडीओ मेंढर से भी बात की, लेकिन आज तक सफलता नहीं मिली।
विकलांग ज़ुलेखा बी जिसे अपनी चारपाई से दरवाजे तक जाने में काफी समय की जरूरत पड़ती है, वह शौच के लिए बाहर खुले आकाश में, बारिश और धूप में, किस मुश्किल से जाती होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। ज़ुलेखा बी की दर्द भरी कहानी सुनने के बाद मानवता उसकी मदद करने के लिए मजबूर कर देता हैं लेकिन कुर्सी पर बैठे अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता” ।
पुंछ की दूसरी तहसील सुरनकोट के तहत आने वाले गांव हाड़िय के निवासी मौलाना अब्दुल हक़ जिनकी माँ का पैर 8 साल पहले एक घातक रोग के कारण काट दिया गया था, इस संबंध में मौलाना अब्दुल हक़ कहते हैं कि “घर में शौचालय नहीं है, माँ पहले बैसाखी के सहारे घर के पास ही शौच को जाती थीं, लेकिन अब वह लकवे जैसी बीमारी से पीड़ित हैं, अब उन्हें बाहर तक ले जाना पड़ता है, घर में शौचालय न होने के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, शौचालय बनवाने के लिए दो बार फार्म भरा है, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं मिला है”।
जिला पूंछ की तीसरी और सीमावर्ती तहसील मंडी के विकलांग सामाजिक कार्यकर्ता मौलवी फरीद मलिक के अनुसार “मंडी के अड़ाई गांव में विकलांगों की एक बारात बसी है, लेकिन उनके घरों में भी शौचालय नहीं है, एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते मैने कई बार कोशिश की मगर कुछ भी नहीं हुआ, हालांकि जम्मू-कश्मीर राज्य समाज कल्याण बोर्ड की चेयर-पर्सन प्रोफेसर निर्मल गुप्ता हमारे निमंत्रण पर अड़ाई आईं और उन्होंने 84 विकलांगों को पांच पांच सौ रुपए भी दिए और घोषणा भी की है कि अड़ाई गांव के सभी विकलांगों के घरों में शौचालयों का निर्माण किया जाएगा। लेकिन यह समय ही बताएगा कि यह घोषणा पूरा होगी या घोषणा ही रहेगी।
कई विकलांग अब तक खुले आसमान के नीचे बर्फ, बारिश और कड़ी धूप में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं। चौथी तहसील हवेली है जिसमे जिला मुख्यालय स्थापित है, जिला तहसील मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मॉडल गांव खनैतर है। यहां के एक छात्र इकराम अहमद के पिता के अनुसार “इकराम बचपन से ही पोलियो की बीमारी से पीड़ित है, इसलिए स्कूल आते-जाते परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
शौच के लिए भी खुले मैदान में जाना पड़ता है, उसे उठने बैठने में भी काफी परेशानी होती है, शौचालय के समय यह परेशानी और भी बढ़ जाती है “लगभग मनकोट और बालाकोट तहसीलों का भी यही हाल है, बल्कि बालाकोट तहसील सीमा पर स्थित होने के कारण विकलांगों की एक बड़ी संख्या पाई जाती और उन लोगों की भी शिकायतें वहीं हैं जो मंडी, मेंढर, हवेली और सुरनकोट तहसीलों के लोगो की हैं।
जिसके लिए संबंधित विभाग और केंद्र और राज्य सरकारों को जरूर ध्यान देना चाहिए .क्योंकि सीमा के निवासी सरकार की इस योजना को सफल बनाने के इच्छुक भी हैं, इसलिए सरकार और विभाग की भी जिम्मेदारी बन जाती है कि इस ओर विशेष ध्यान दे, ताकि इस सफलता की चमक धमक सीमा के पार से भी दिखने लगे।
(चरखा फीचर्स)
नोट :.यह लेख नेशनल फाउन्डेशन ऑफ इंडिया द्वारा दी गई फैलोशिप के तहत लिखा गया है।