झारखण्ड में सोनिया का मंत्र आया काम, थाम दिया बीजेपी का अभियान
नई दिल्ली। महाराष्ट्र के बाद झारखंड में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में कामयाब रही कांग्रेस ने फिलहाल बीजेपी की कांग्रेस मुक्त भारत अभियान वाली सोच को किनारे खड़ा कर दिया है। चुनावी नतीजों से साफ़ हो गया है कि झारखंड के मतदातों को बीजेपी का एजेंडा पसंद नहीं आया है।
भले ही बीजेपी इस बात से इंकार करे लेकिन झारखंड के चुनाव परिणाम पीएम मोदी और रघुवरदास सरकार का रिपोर्ट कार्ड हैं। झारखंड चुनाव में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झौंकी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा करीब एक दर्जन केंद्रीय मंत्री, उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ तथा करीब दो दर्जन बीजेपी सांसदों ने झारखंड में सभाओं को सम्बोधित किया था।
इतना ही नहीं चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी सहित बीजेपी के कद्दावर नेताओं ने मोदी सरकार के कामकाजो का चढ़ बढ़कर ज़िक्र किया था। यहाँ तक कि चुनाव प्रचार में राम मंदिर से लेकर कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को भी बीजेपी नेताओं ने अपनी उपलब्धि बताकर पेश किया था।
इतना सब कुछ होने के बावजूद झारखंड का मतदाता इस बार बीजेपी के झांसे में नहीं आया और पूरे चुनाव के दौरान मतदाताओं ने अपनी ख़ामोशी को बरकरार रखा। जब चुनाव परिणाम आये तो मतदाताओं की ख़ामोशी ही बीजेपी के लिए हताशा बनकर सामने आई।
झारखंड में कांग्रेस-जेएमएम-राजद गठबंधन की विजय का श्रेय कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सोनिया गांधी के दिए मंत्र से ही कांग्रेस महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने में कामयाब हुई है।
पार्टी सूत्रों की माने तो कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस और जेएमएम नेताओं को साफ़ तौर पर सन्देश दिया था कि वे चुनाव प्रचार में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने जैसे मुद्दों से दूर रहें। सूत्रों ने कहा कि सोनिया गांधी चाहती थीं कि पार्टी का कोई नेता गलत बयान न दे। यहाँ तक कि पीएम मोदी का नाम लेकर निजी हमले करने की भी मनाही थी।
दरअसल सोनिया गांधी जानती थीं कि चुनाव के दौरान बीजेपी हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा उठाकर ध्रुवीकरण की कोशिश अवश्य करेगी, और यह हुआ भी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसी तरह के कुछ मुद्दों को अपनी सभाओं में उठाया तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी इससे पीछे नहीं रहे और चुनाव प्रचार में पाकिस्तान का नाम भी शामिल हो गया।
बीजेपी द्वारा उठाये गए मुद्दों को कांग्रेस और जेएमएम ने बड़े डिप्लोमेटिक तरीके से नज़रअंदाज किया और चुनाव प्रचार को राज्य की रघुवर दास सरकार की नाकामियों पर ही केंद्रित रखा। इतना ही नहीं कांग्रेस और जेएमएम ने स्थानीय मुद्दों को भी चुनाव प्रचार का बड़ा हथियार बनाकर पेश किया। जानकारों की माने तो राज्य के मुद्दे मोदी सरकार की उपलब्धियों और दावों पर भारी पड़े।
सोनिया गांधी राजनीति में अब परिपक्य हो चुकी हैं। उन्होंने कभी नरसिम्हाराव के ज़माने में आईसीयू में जा चुकी कांग्रेस को ज़िंदा किया था। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने लगातार दस वर्ष तक कांग्रेस को केंद्र की सत्ता में रखा, जिसके प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह थे।
पार्टी नेताओं का कहना है कि सोनिया गांधी हड़बड़ी में कोई फैसला नहीं लेतीं और न ही कोई फैसला पार्टी पर थोपती हैं। महाराष्ट्र में गैर बीजेपी दलों की सरकार बनवाने में सोनिया गांधी की बड़ी भूमिका को कोई नहीं नकार सकता। उन्होंने अंतिम फैसला लेने से पहले हालातो का रुख पड़ा, उसके बाद ही उन्होंने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को बातचीत के लिए समय दिया।