जस्टिस लोया के बेटे ने कहा ‘पिता की मौत का राजनीतिकरण नहीं चाहते’
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नई दिल्ली। जस्टिस बीएच लोया के बेटे ने कहा है कि वे अपने पिता की मौत से दुखी हैं। वे नहीं चाहते कि इस मामले का राजनीतिकरण किया जाए। इससे पहले शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट के चार जजों द्वारा चीफ जस्टिस के नाम लिखे गए पत्र में जस्टिस लोया की मौत को संदिग्ध बताते हुए उनकी मौत की हाई लेवल जांच की मांग की गयी थी।
जस्टिस लोया के बेटे अनुज ने कहा कि उनका परिवार मीडिया रिपोर्ट्स दुखी है, उन्होंने कहा कि उनके परिवार को और परेशान न किया जाए, वह इससे बाहर निकलना चाहते हैं।
अनुज ने कहा कि उन्हें अपने पिता की मौत को लेकर किसी पर संदेह नहीं है और न ही उनके परिवार की तरफ से किसी का नाम लिया गया है। उन्होंने कहा कि इस मामले का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए।
वहीँ दूसरी तरफ जस्टिस लोया के पारवारिक मित्र काटके ने कहा कि जस्टिस लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है, लोग उनके परिवार को बेवजह परेशान कर रहे हैं।
इस मामले में उनके वकील अमीत नाइक ने कहा कि जस्टिस लोया की मौत से जुड़ी कोई कॉन्ट्रोवर्सी नहीं है। इस मामले को राजनीतिक रंग देने की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा कि जस्टिस लोया की मौत एक दुखद घटना है और हम इस मुद्दे के राजनीतिकरण के शिकार नहीं होना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले को वैसा ही रहने दिया जाए जैसा यह है।
क्या है पूरा मामला :
सीबीआई के स्पेशल कोर्ट के जज बीएच लोया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिस मामले में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मुख्य आरोपी थे. 30 दिसंबर 2014 को सीबीआई के स्पेशल सीबीआई जज एमबी गोसावी अमित शाह को इस आरोप से बरी कर देते हैं।
सीबीआई इस फैसले के ख़िलाफ़ ऊपरी अदालत में अपील नहीं करती और आज दिन तक यह साफ़ नहीं हो पाया कि सीबीआई इस मामले में अपील करेगी भी या नहीं।
जस्टिस लोया से पहले सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई करने वाले जज उत्पट 6 जून 2014 को आदेश देते हैं कि अमित शाह 20 जून को कोर्ट में हाज़िर हों, नहीं आते हैं। जज उत्पट अगली सुनवाई की तारीख़ 26 जून तय करते हैं मगर 25 जून को उनका तबादला हो जाता है। यहाँ से सारा मामला संदिग्ध हो जाता है।
जस्टिस उत्पट के तबादले के बाद सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर मामले की सुनवाई के लिए जस्टिस बीएच लोया आते हैं। जज लोया अमित शाह को निजी तौर पर हाज़िर होने की शर्त से छूट इसलिए देते हैं क्यों कि वे दस हज़ार पेज की चार्जशीट को फिर से देखना चाहते थे।
जस्टिस लोया ने अपनी भाजी नूपुर से इस बात को शेयर किया था कि सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर को लेकर जस्टिस लाया तनाव में थे। उन्होंने अपनी भांजी से कहा था कि इसे कैसे समझा जाए, इसमें बहुत लोग शामिल हैं, इससे कैसे निपटा जाए।
कारवां की रिपोर्ट के अनुसार 31 अक्तूबर को जज लोया ने पूछा कि अमित शाह हाज़िर क्यों नहीं हैं। शाह के वकील कहते हैं कि उन्होंने खुद हाज़िर ना होने की छूट दी है। इस पर जस्टिस लोया याद दिलाते हैं कि छूट तब था जब शाह राज्य के बाहर हों, उस दिन शाह मुम्बई में थे। इसके बाद 1 दिसंबर 2014 की सुबह नागपुर में जस्टिस लोया की मौत होती है।
मौत का कारण हार्ट अटैक बताया जाता है लेकिन मौत से जुड़े जो पहलु सामने आये हैं वे बेहद संगीन प्रतीत होते हैं। जस्टिस लोया को सीने में दर्द की शिकायत के बाद उन्हें ऑटो से अस्पताल ले जाया गया। जिस अस्पताल में उन्हें ले जाया गया, वहां ईसीजी की मशीन काम नहीं कर रही थी।
फिर उन्हें ऑटो से दूसरे अस्पताल ले जाय जाता है। जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया जाता है। आखिर एक जज को अस्पताल ऑटो में क्यों ले जाया गया? उन्हें अस्पताल लेकर कौन गया था ? जस्टिस लोया की मौत के बाद इन सब सवालो ने कई रहस्यों को जन्म दे दिया है।
इतना ही नहीं जस्टिस लोया की बहिन ने कारवां के रिपोर्टर से कहा कि जस्टिस लोया के शव का पोस्टमार्टम किया गया था। हार्ट अटैक एक सामान्य मौत है, इसमें पोस्टमार्टम क्यों किया गया। वहीँ उन्होंने दूसरा बड़ा सवाल जस्टिस लोया के शव को लेकर उठाया। उन्होंने कहा कि जस्टिस लोया के शर्ट पर पीछे की तरफ खून के निशान थे।
जस्टिस लोया की बहिन ने एक के बाद एक कई ऐसे सवाल उठाये हैं जिससे यह मामला और गंभीर हो जाता है। एक जज की संदिग्ध मौत पर सवाल उठना जायज है। खुद को राष्ट्रवादी और देशभक्त का तमगा लेकर बैठे गोदी मीडिया की इस मामले में ख़ामोशी से यह मामला और भी संगीन हो जाता है।