गुलबर्ग सोसायटी मामले में आगे की कानूनी लड़ाई लड़ेंगी ज़किया जाफरी

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नई दिल्ली । गुलबर्ग सोसाइटी मामले में कोर्ट के फैसले पर दंगों की पीड़िता जाकिया जाफरी ने असंतोष जाहिर किया है, उन्होंने कहा कि यह आधा न्याय है, जिसे मिलने में भी 14 साल लग गए, जब तक जान है तब तक लडेंगे।

जाकिया जाफरी ने कहा कि जिन लोगों को बरी किया गया उस फैसले के बारे में आगे और सोचना पड़ेगा। मुझे अफसोस है कि 36 लोगों को छोड़ दिया गया। मैंने अब तक अपनी लड़ाई लड़ी है। आगे भी लड़ूंगी। तीस्ता सीतलवाड़ और दूसरे वकील मेरे साथ हैं, वो मेरा केस लड़ेंगे।

जाफरी, जिन्होंने लंबी कानूनी लडा़ई लड़ी थी और उसके बाद वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था, ने आज के फैसले पर पर असंतोष जताया, जिसमें एसआईटी की विशेष अदालत के जज पी बी देसाई ने 60 जीवित आरोपियों में से 24 को दोषी तथा 36 को निर्दोष बताया था। उन्होंने पत्रकारों से कहा,‘इस फैसले से संतोष कैसे हो सकता है। 15 साल बीतने के बाद भी यह फैसला मिला तो कैसे संतोष होगा। मेरी लडा़ई खत्म नहीं हुई। अब वकीलों से राय लेनी पड़ेगी और फिर मुझे लडा़ई शुरू करनी पडे़गी। जब तक जान में जान है तब तक लडेंगे।’

उन्होंने कहा, यह आधा अधूरा फैसला है। आधे से अधिक लोग छूट गये। मुझे लगता है कि एसआईटी ने सही तरीके से जांच नहीं की।  गुलबर्ग सोसायटी दंगा केस में विशेष अदालत ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। साल 2002 के गुलबर्ग सोसायटी दंगा मामले में गुजरात की विशेष अदालत ने 24 लोगों को दोषी ठहराया है।

विशेष अदालत ने इस दंगा मामले में बीजेपी पार्षद बिपिन पटेल सहित 36 लोगों को बरी किया है। कोर्ट ने जिन 36 लोगों को बरी किया है, उनमें एक पुलिस इंस्पेक्टर और भाजपा पार्षद शामिल है। कोर्ट ने कहा कि 34 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया जा रहा है। यह भी कहा कि साजिश के तहत ये घटनाक्रम को अंजाम नहीं दिया गया है।

क्या है मामला : 

बता दें 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में अयोध्या से वापसी की यात्रा कर रहे 58 हिंदू कारसेवकों को ट्रेन के डिब्बे में ही जला कर मार डाला गया था। इस हत्याकांड के लिए मुसलमानों पर उंगली उठी और इसी गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में तीन दिन तक चली सांप्रदायिक हिंसा में 1,000 से भी अधिक मुसलमानों की जान गई।

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