गुजरात में बीजेपी की नई मुश्किल : आदिवासी इलाकों में रफ्तार पकड़ रहा है ‘भीलिस्तान आंदोलन’
नई दिल्ली । पाटीदार पटेल आंदोलन और दलित आंदोलन से जूझ रही गुजरात बीजेपी के लिए एक नई मुश्किल पैदा हो रही है । यह मुश्किल राज्य के आदिवासी इलाकों से उठी आदिविसियों की आवाज़ है । धीमे धीमे यह आंदोलन पूरे आदवासी क्षेत्रो में फैलता जा रहा है ।
गुजरात में भाजपा लगभग दो दशक से सत्ता में है लेकिन पहली बार उसके लिए राजनीतिक जमीन बचाना मुश्किल होता दिख रहा है। उसका साथ देने वाला पटेल समुदाय आंदोलन की मांग को लेकर उसके खिलाफ खड़ा है। ऊना में दलित युवकों की पिटाई ने समस्या को और बढ़ा दिया। पटेलों को फिर से अपने पाले में लाने के लिए भाजपा सौराष्ट्र क्षेत्र को काफी प्रतिनिधित्व दे रही है।
मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और गुजरात भाजपा अध्यक्ष जीतू वाघानी दोनों सौराष्ट्र से आते हैं। हालांकि रुपाणी जैन समुदाय से हैं और उन्हें आनंदीबेन पटेल की जगह सीएम बनाया गया। आनंदीबेन पटेल समुदाय से हैं।। रुपाणी के सीएम बनाए जाने से नाराज पटेलों को साधने के लिए नितिन पटेल को डिप्टी सीएम बना दिया गया। साथ ही गुजराज भाजपा अध्यक्ष जीतू वाघानी भी पटेल समुदाय से हैं।
पिछले साल हुए तालुका और पंचायत चुनावों में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में जीत दर्ज की थी। उसने राजकोट, सुरेंद्रनगर, अमरेली और मोरबी में पंचायत चुनावों में जीत दर्ज की थी। हालांकि शहरी निकायों में भाजपा ने अपना दबदबा बनाए रखा था। लेकिन कांग्रेस ने कई दशक बाद भाजपा को चुनौती दी थी।
जानकार लोगों का कहना है कि मोदी के पीएम बनते ही गुजरात में भाजपा के लिए समस्याएं शुरू हो गई। इन्हें देखते हुए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपने लिए अवसर देख रही हैं। आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिनों गुजरात का दौरा भी किया था। वे पाटीदार आंदोलन को भी समर्थन दे रहे हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा को गुजरात में काफी चीजों को फिर से अपने पाले में लाना होगा।