क्यों बहरा है सीमा भविष्य ?
ब्यूरो (मोहम्मद रियाज मलिक )। विश्व स्वास्थ संगठन की परिभाषा के अनुसार “व्यक्ति में उम्र, लिंग, सामाजिक, सांस्कृतिक कारकों में क्षति एवं अक्षमता के कारण जो नुकसान या पिछड़ापन हो जाता है, उसे विकलांगता कहते हैं।”
भारत पाक सीमा से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर पड़ोसी देश की सीमा पर मुहल्ला पराल कोट स्थित है, यहां की कुल आबादी का 20 प्रतिशत हिस्सा विकलांगता से पीड़ीत है और ये विकलांगता “नही सुनने की बीमारी” है अर्थात बहरापन। इस संबध मे 2011 की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि इस समय जम्मु कशमीर मे बहरेपन से कुल 74096 लोग पीड़ीत हैं इनमे 42744 पुरुष जबकि 31352 महिलाएँ हैं।
जम्मू-कश्मीर जिला पूंछ की तहसील मंडी से गांव खेत 12 किलोमीटर और वहां से छमर गांव तक करीब चार किलोमीटर जाने के बाद परालकोट का गांव आबाद है जहां आधिकतर लोग सुनने की क्षमता से वंचित हैं। दूसरी ओर इन लोगों के पास इस बीमारी के उपचार के लिए पर्याप्त धन भी नही है । मजदूरी करके ये किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। जीवन की मूलभूत सुविधाओं से वंचित क्षेत्र के निवासीयों की समस्या है “बहरापन”। बहरेपन के कारण स्कुल मे पढ़ने वाले बच्चे अपनी पढ़ाई ठिक तरह से पुरी नही कर पाते और बीच मे ही पढ़ाई छोड़ देते हैं।
आश्चर्य है कि जिस सीमा क्षेत्र पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार अरबों रुपये पानी की तरह बहाती है और देश के नेता राज्य को भारत का अभिन्न अंग कहते कहते थक जाते हैं उन्हें भी इस क्षेत्र की खबर नहीं है। इस बारे मे क्षेत्र के निवासी मोहम्मद इस्माइल ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि “पराल कोट का यह प्यारा सा गांव हर प्रकार की प्राकृतिक सुंदरता से मालामाल है, झरने,बड़ी-छोटी घाटियाँ, नदी,कई प्रकार के पक्षी इस क्षेत्र की शान मे चार चांद लगाते हैं। लगभग दो सदी पुराने इस गांव मे इस समय दो सौ लोग निवास करते हैं।
सावजियाँ पंचायत के वार्ड नंबर चार मे आने वाले इस गांव मे कई वर्षों से लोग प्राकृतिक बहरेपन का शिकार है। स्कूल में हमारे बच्चे न सुनने की वजह से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते, परिणामस्वरुप गांव मे कोई भी सरकारी कर्मचारी नहीं है”। उन्होंने गुलाम अहमद पिता श्री उस्मान भट्ट जिनकी उम्र लगभग 90 वर्ष है, एक अन्य महिला जान बीबी आयु 65 साल से अधिक है उनके बारे विस्तार से बताते हुए कहा कि “इतनी आयु के बाद भी ये लोग पूरी तरह स्वस्थ हैं, केवल बहरेपन के कारण इन्हे काफी परेशानी उठानी पड़ती है”।
वह इस क्षेत्र के युवाओं का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि तलत बशीर उम्र 30 साल, रियाज अहमद उम्र 40 साल के युवा हैं जो सभी काम अच्छी तरह कर लेते हैं लेकिन जब बात करने की बारी आती है तो इशारों से ही काम लेना पड़ता है। वह बच्चों का उदाहरण देते हुए कुछ नामों की चर्चा करते हैं, जैसे- अशफाक अहमद, उमर इसमाईल, तनवीर अहमद, आदि स्कूल जाते हैं मगर दूसरे बच्चों को देखकर शिक्षकों द्वारा पढ़ाए जाने वाले पाठ को समझने की नाकाम कोशिश करते हैं। क्योंकि यह कुछ सुन नही पाते।
इन बच्चों के माता पिता ने बताया कि “हम कई बार अपने बच्चों को लेकर डॉक्टरों के पास लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर जम्मू तक गए लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। डॉक्टरों ने एक ही बात कहकर वापस कर दिया कि अपने परिवार से बाहर विवाह करो, ताकि आने वाली पीढ़ी बहरी न हों”। मजेदार बात यह है कि इसी वार्ड की एक महिला ने बताया कि” मैं यहाँ अन्य दूरदराज क्षेत्र से शादी करके आई हूँ मगर मेरी भी एक बेटी सुनने मे असमर्थ है”। ऐसे में डॉक्टरों द्वारा दिए जाने वाले जवाब का क्या जवाब है?।
इस संबंध में जब बहरेपन के शिकार लोगों से इशारों में बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने दुसरे लोगो द्वारा अपनी बात बताया ” लोकतंत्र की ओर से हमारे लिए क्या यही पुरस्कार है? मात्र वोट के लिए हमेशा से हमारा इस्तेमाल होता रहा है, और दुनिया को ये दिखाने की कोशिश की जाती रही है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन यह बताने की तकलीफ नहीं की गई कि हम कश्मीरी किसका हिस्सा हैं?।
पंचायत के मौजूदा सरपंच और पूर्व सेवानिवृत्त हेडमास्टर ने बताया “इस गांव की आबादी कम है मगर बहरापन एक बड़ी समस्या है, कई बार हमने उच्च अधिकारियों तक इस संवेदनशील मुद्दे को पहुंचाया स्वास्थ विभाग को भी इस बारे में सूचित किया गया, यहां के पानी की जांच करने की मांग की गई। बच्चों को पूंछ जिला अस्पताल में चेकअप के लिए ले गए मगर कहीं से भी कोई सहायता नहीं मिली है।
“दूसरी ओर प्रशासन और स्वास्थ विभाग के अधिकारी से जब बात की गई तो मंडी ब्लाक के चिकित्सा अधिकारी ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि” हमारे ज्ञान में ऐसा कोई क्षेत्र है ही नहीं। लेकिन अगर ऐसा कोई क्षेत्र होगा तो हम जल्द ही एक टीम भेजकर निरीक्षण करवाएंगे “। इस आश्वासन को एक महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी अब तक कोई इस ईलाके में नहीं गया।
पुंछ ज़िला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने ऐसे क्षेत्रों से अनजान होने की बात करते हुए कहा कि “हम इस समय उनके लिए मौके पर किसी विशेषज्ञ डॉक्टर को नहीं भेज सकते क्योंकि जिला पुंछ में हमारे पास एक ही विशेषज्ञ है जिसका हर जगह पहुंचना मुश्किल है” पेंशन के बारे में पूछे जाने पर कहा कि “यहाँ पूंछ आकर जांच कराएं अगर हकदार होंगें तो पेंशन के लिए प्रमाण पत्र दिया जाएगा।”
मेडिकल अधिकारी से बात करने के बाद जब स्थानीय लोगों को यह बात बताई गई तो उन्होंने कहा कि इससे पहले भी हमें ऐसा ही ख्वाब दिखाया गया था। लोगों की निराशा और नाराजगी का आलम यह है कि यहाँ के विकलांग लोग आपस में इशारों से एक दूसरे से सवाल कर रहे हैं कि बहरे हम या स्वास्थ विभाग या फिर सरकार ???
(चरखा फीचर्स)