एनआरसी: भारी गड़बड़ियां आ रही सामने, परिवार के कुछ सदस्यों के नाम शामिल, कुछ के गायब
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नई दिल्ली। असम में आज जारी हुई राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट में भारी गड़बड़ियां सामने आ रही हैं। शनिवार को जारी हुई एनआरसी की फाइनल लिस्ट में एनआरसी की सूची में 3 करोड़ 11लाख 21 हजार 4 लोगों को शामिल किया गया है जबकि सूची से 19 लाख 6 हजार 657 लोगों को बाहर रखा गया है।
फाइनल लिस्ट जारी होने के बाद कुछ ऐसे उदाहरण सामने आ रहे हैं जिन्हे देखकर लगता है कि शायद आंकड़ों की अनदेखी की गयी है। एनआरसी की फाइनल सूची में एक ही घर में जन्मे दो भाइयों में से एक का नाम एनआरसी में शामिल है वहीँ दूसरे भाई का नाम शामिल नहीं हैं। कहीं पत्नी का नाम एनआरसी में शामिल है तो पति का या बच्चो का नाम एनआरसी में शामिल नहीं हैं।
फाइनल असम एनआरसी लिस्ट में भारतीय सेना से रिटायर्ड ऑफिसर 52 वर्षीय सनाउल्लाह का नाम भी शामिल नहीं है। फाइनल लिस्ट में सनाउल्लाह की दोनों बेटी और एक बेटे का नाम भी नहीं है। हालांकि सनाउल्लाह की पत्नी का नाम इसमें शामिल है।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के दक्षिण अभयपुरी से विधायक अनंत कुमार मालो और उनके बेटे का नाम भी एनआरसी की लिस्ट में शामिल नहीं है।
एनआरसी लिस्ट जारी होने के बाद एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि बीजेपी को सबक सीखना चाहिए। उन्हें हिंदू और मुस्लिम के आधार पर देशभर में एनआरसी की मांग को बंद कर देना चाहिए। उन्हें सीखना चाहिए कि असम में क्या हुआ। अवैध घुसपैठियों का भ्रम टूट गया है।
उन्होंने कहा, ‘ये मेरा अपना संदेह है कि बीजेपी नागरिकता संशोधन बिल के जरिए बीजेपी ऐसा बिल ला सकती है, जिससे सभी गैर मुस्लिमों को नागरिकता दे सकती है, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।’
ओवैसी ने कहा कि असम के कई लोगों ने मुझे बताया कि माता-पिता के नाम लिस्ट में हैं जबकि बच्चों के नहीं। उदाहरण के तौर पर मोहम्मद सनाउल्लाह ने सेना में काम किया। उनका मामला हाई कोर्ट में लंबित है. मुझे उम्मीद है कि उन्हें न्याय मिलेगा।
कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने कहा कि इस कदम के बाद बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों को इस लिस्ट से निकाल दिया गया है। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि जिन लोगों को लिस्ट से निकाला गया है उनके अधिकार क्या होंगे।
सीपीएम ने कहा कि जब तक उनकी अपील नहीं सुनी जाती, अधिकारों और सुविधाओं को लेकर यथास्थिति बनी रहनी चाहिए। साथ ही जिन लोगों को विदेशी घोषित किया जाता है उन्हें डिटेंशन कैंप में भेजने की वर्तमान व्यवस्था बंद हो क्योंकि यह मूलभूत मानवाधिकारों का उल्लंघन है।