एईएस का ईलाज है संभव, सही समय पर उपचार से बचाई जा सकती है जान

एईएस का ईलाज है संभव, सही समय पर उपचार से बचाई जा सकती है जान

पटना ब्यूरो : एईएस(एक्यूट इन्सेफ़लाईटीस सिंड्रोम) से पीड़ित बच्चों की संख्या में निरंतर वृद्धि को देखते हुए राज्य के साथ जिला स्वास्थ्य महकमा हाई अलर्ट पर है.

विगत कुछ दिनों में एईएस का विकराल रूप भी देखने को मिला है जिससे लोगों में इसके प्रति डर में भी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन इस रोग के लक्षण दिखते ही मरीज को अस्पताल में भर्ती कराने से मरीज की जान बचाई जा सकती है. लक्षण दिखने पर जितना ही शीघ्र मरीज को अस्पताल पर पहुँचाया जाएगा उतना ही मरीज के जान बचने की संभावना में वृद्धि होगी.

एईएस का ईलाज है संभव:

जिला सिविल सर्जन ने बताया कि एईएस लाइलाज रोग नहीं है. सही समय पर ईलाज प्रदान कर मरीज की जान बचाई जा सकती है. इसके लिए जिले के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में एईएस मरीजों के लिए अतिरिक्त बेड उपलब्ध कराये गए हैं.

उन्होंने बताया कि एईएस के लक्षणों के प्रति आम जागरूकता जरुरी है ताकि लोग लक्षण के आधार पर अपने बच्चों को शीघ्र ही नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करा सकें. इसके लिए जिले में रैपिड एक्शन टीम का भी गठन किया गया है एवं इन्हें हाई अलर्ट पर रखा गया है.

संभावित एईएस मरीजों को तुरंत अस्पताल तक पहुँचाना एवं सामुदायिक स्तर पर एईएस के प्रति आम जागरूकता फ़ैलाने की ज़िम्मेदारी इन्हें दी गयी है. उन्होंने बताया कि सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर एईएस के उपचार हेतु जरुरी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कर दी गयी है.

गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा प्रदान करने के लिए ऐसे मरीजों को श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल मुज्जफरपुर में रेफर करने की सुविधा भी सुनिश्चित की गयी है. इसके लिए सभी स्वास्थ्य केन्द्रों को निर्देशित किया गया है.

ये हैं चमकी बुखार के लक्षण :

अत्यधिक गर्मी की शुरुआत होने से एईएस से ग्रसित बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी शुरू होती है जो बारिश की शुरुआत पर ख़त्म हो जाती है. इनके लक्षणों को जानकर इसका सटीक उपचार संभव है.

  • तेज बुखार आना
  • चमकी अथवा पूरे शरीर या किसी खास अंग में ऐंठन होना
  • दांत का चढ़ जाना
  • बच्चे का सुस्त होना या बेहोश हो जाना
  • शरीर में हरकत या सेंसेशन का खत्म हो जाना
  • मानसिक स्थिति का बिगड़ जाना

सामान्य उपचार एवं सावधानियाँ:

कुछ उपायों के माध्यम से बच्चे को इस रोग से बचाया जा सकता है. इसके लिए बच्चे को तेज धूप से बचाएं, बच्चे को दिन में दो बार नहलाएं, गरमी बढ़ने पर बच्चे को ओआरएस या नींबू का पानी दें, रात में बच्चे को भरपेट खाना खिलाकर ही सुलाएं, तेज बुखार होने पर गीले कपडे से शरीर को पोछें, बिना चिकित्सकीय सलाह के बुखार की दवा बच्चे को ना दें, बच्चे की बेहोशी की हालत में उसे ओआरएस का घोल दें एवं छायादार जगह लिटायें एवं दांत चढ़ जाने की स्थिति में बच्चे को दाएँ या बाएं करवट लिटाकर अस्पताल ले जाएं. इसके अलावा तेज रौशनी से मरीज को बचाने के लिए आँख पर पट्टी का इस्तेमाल करें एवं यदि बच्चा दिन में लीची का सेवन किया हो तो उसे रात में भरपेट खाना जरुर खिलाएं.

यह करने से बचें:

बच्चे को मस्तिष्क ज्वर से बचाने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरुरी है.
बच्चों को खाली पेट लीची ना खिलाएं.
अधपके एवं कच्चे लीची बच्चों को खाने नहीं दें .
बच्चों को गर्म कपडे या कम्बल में ना लिटायें .
बेहोशी की हालत में बच्चे के मुँह में बाहर से कुछ भी ना दें .
बच्चे की गर्दन झुका हुआ नहीं रहने दें .

आपातकाल की स्थिति में निःशुल्क एम्बुलेंस के लिए टोल फ्री नंबर 102 पर संपर्क करें

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