इतिहास के पन्नो में दफन क्रांतिकारियों को फिर से ज़िंदा करने को जामिया के शाह आलम कर रहे साईकिल यात्रा
ब्यूरो (मेहदी हसन एैनी का़समी द्वारा) । इतिहास के पन्नों पर हर दौर में कुछ एैसे जांबाज़ पैदा होते हैं जो अपने धुन की वजह से एक अलग ही मुका़म बना ले जाते हैं । एैसा तो बहुत हुआ है कि कोई माउन्ट एवरेस्ट फ़तह करना चाहता है तो कोई तैराकी चैम्पियन बनना चाहता है लेकिन आप ने एैसा बहूत कम सुना होगा कि कोई शख्स महीने से साईकिल लेकर बीहड,चंबल,बुंदेलखंड के वीरानों और खंडहरों में सिर्फ़ इसलिये मारा मारा फिर रहा हो कि उसे उन क्रांतिकारियों को दोबारा जिंदा करना है जो इतिहास के पन्नों में दफ़न हो गये, जो गुमनामी की वजह से हमारी आंखों से ओझल हो चुके हैं ।
जी आशचर्यचकित होने की ज़रूरत नही है । एैसे ही एक जुनूनी इंसान की कहानियाँ देख और सुन कर सीना फख्र से चौडा़ हो जाता है!जिसने आज फिर जेहन में बहूत कुछ ताजा़ कर दिया है । बात है जामिया मिल्लिया के रिसर्च स्कालर शाह आलम की जो पिछले 32 दिनों से से क़रीब 800 कि.मी का सफ़र साइकिल से कर चुके हैं ।
इस एतिहासिक सफ़र में उन्होंने जहां चंबल के कई राजों से पर्दा उठाया है तो वहीं महोबा जालोन जैसे सूखे से पीडि़त इलाकों के ग़रीबों व पात्रों की आवाज़ वहां के नौकरशाहों व् आला अधिकारियों तक पहुंचायी है । यही नहीं,शाह आलम ने इस दौरे में जहां फूलन देवी के घर का दरवाजा़ खटखटाया तो वहीं अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल जी के पैतुृक गांव पहुंच कर उनके जर्जर हुयी पड़ी पुस्तकालय की हालत भी देश वासियों तक पहुंचायी ।
शाह आलम के इस दौरे से बुंदेल खंड की दूर्दशा जहां खुलकर सामने आई है वहीं विकास की बात करने वाली सरकार की निति से भी पर्दा उठा है । बस्ती जि़ला के रहने वाले शाह आलम के पिता एक क्रांतिवीर थे और उनकी तरबियत के नतीजे में शाह आलम के दिल में क्रांतिकारियों की मुहब्बत कूट कूट कर भरी हुयी है । वो शूरू से ही उन शहीदों व क्रांतिकारियों पर काम कर रहे हैं जिन्होंने अपने प्राण क्रांति के लिये त्याग देकर इस देश में हमें आजा़दी की सांस लेने का अवसर परदान किया पर आज वो गुमनाम हो चुके हैं ।
इतिहास के पन्नों पर भी उन्हें वो मुका़म नहीं मिल सका है जिसके वो पात्र थे. शाह आलम का यह जुनून उन्हीं को उजागर करके दुनिया के सामने लाने के लिये है । जामिया मिल्लया से एम.फिल करने वाले शाह आलम के इस दौरे को प्रिंट मीडिया ने तो थोडी़ बहूत जगह दी है.पर हमारी इलेकट्रानिक मीडिया जो छोटी छोटी बातों को कवर करती है ।
शायद उस के लिये शाह आलम की यह कु़रबानी ब्रेकिंग न्यूज़ का दरजा नहीं रखती.इसी लिये अभी तक शाह आलम के इस यात्रा को न्यूज़ में भी जगह नहीं मिल सकी है ।
हालांकि शाह आलम की यह कोई पहली यात्रा नहीं है इससे पहले भी उन्होंने 2002 में चित्रकूट से अयोध्या तक सांप्रदायिक सद्भाव के लिए, मेहंदीगंज बनारस से सिंहचर तक, 2005 में इंडो-पाक पीस मार्च दिल्ली से मुल्तान(पाकिस्तान) तक, 2005 में ही सांप्रदायिक सौहार्द के लिए कन्नौज से अयोध्या, 2007 में कबीर पीस हॉर्मोनी मार्च अयोध्या से मगहर, 2009 में कोसी से गंगा तक बिहार में पुनर्वास का हाल जानने के लिए पैदल यात्राएं की हैं। इसके अलावा भी उन्होंने और कई यात्राएं की हैं।
हम शाह आलम की इस हिम्मत व जुनून को सलाम करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शाह आलम की यह यात्रा देश को बदलने में बड़ा किरदार निभायेगी ।