अलीगढ एनकाउंटर: और उलझती जा रही पुलिस की कहानी
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अलीगढ़। पिछले दिनों दो युवाओं के लाइव एनकाउंटर मीडिया को दिखाने का दावा करने वाली अलीगढ़ पुलिस की रिपोर्ट कई मायनो में तथ्यों से मेल नहीं खा रही।
पुलिस की एफआईआर के मुताबिक 2007 में इन दोनों ने लोगों को बंधक बनाकर लूट की वारदात को अंजाम दिया था और लूट के दौरान एक व्यक्ति को इन्होंने गोली भी मारी थी।
पुलिस दावा कर रही है कि एनकाउंटर में मारे गए नौशाद और मुस्तकीम ने एनकाउंटर से एक महीने पहले 6 साधुओं की हत्या भी की थी। इतना ही नहीं पुलिस का यह भी दावा है कि एनकाउंटर में मारे गए नौशाद और मुस्तकीम बड़े अपराधी थे और 11 साल पहले इन दोनों को गाजियाबाद जिला न्यायालय ने 10-10 साल की सजा हुई थी जिसमें से 7 साल की सजा ये दोनो डासना जेल में काट चुके थे।
नौशाद की मां मुताबिक एनकाउंटर में मौत के समय उसकी उम्र महज 17 वर्ष जबकि मुस्तकीम की उम्र 22 वर्ष थी । यदि पुलिस के दावे को सच मान लिया जाए और यदि गाज़ियाबाद जिला न्यायालय से मिली दस वर्ष की सजा में से नौशाद और मुस्तकीम 7 साल डासना जेल में काट चुके है तो दस वर्ष पूर्व नौशाद की उम्र सात वर्ष और मुस्तकीम की उम्र 12 वर्ष रही होगी।
ऐसे में सवाल उठता है कि यदि पुलिस का ये दावा सही है तो घटना के समय सात वर्ष के नौशाद और 12 वर्ष के मुस्तकीम को किस आधार पर डासना जेल में रखा गया। जबकि उसकी उम्र के चलते उन्हें बाल सुधार गृह भेजा जाना चाहिए था।
वहीँ नौशाद की मां का दावा है कि पुलिस दस वर्ष पहले की हापुड़ की जिस घटना में उसके बेटे को आरोपी बता रही है उस समय वह 6-7 साल का था। नौशाद की मां का सवाल है कि क्या 6- 7 साल का बच्चा हथियार चला सकता है ? क्या वह इस उम्र में इतना समझदार होता है कि शातिर अपराधी की तरह अपराध करने की काबिलियत रखता हो ?
जहाँ पुलिस एक तरफ यह दावे भी कर रही है कि एनकाउंटर में मारे गए मुस्तकीम और नौशाद की उम्र तीस वर्ष के आसपास है। वहीँ मृतक के परिजन इसे सिरे से ख़ारिज कर रहे हैं।
अहम सवाल यह है कि एनकाउंटर के बाद पुलिस बरामदगी के नाम पर अपराधियों के पास से कोई ऐसा बड़ा हथियार बरामद नहीं दिखा सकी जिससे लगे कि अपराधियों को ज़िंदा नहीं पकड़ा जा सकता था।
वहीँ दूसरी तरफ एनकाउंटर के तुरंत बाद पुलिस ने दावा किया था कि उसने मीडिया की मौजूदगी में एनकाउंटर किया था। जबकि एनकाउंटर करने वाली टीम और वहां पहुंचे मीडिया वालो के इस पर अलग अलग बयान भी सामने आये हैं।
फिलहाल मामला अभी उलझा हुआ है और अब एनकाउंटर में मारे गए मुस्तकीम और नौशाद के परिवार को यूनाइटेड अगेंस्ट हेट का सहारा मिला है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूनाइटेड अगेंस्ट हेट जल्द यह मामला लेकर मानव अधिकार आयोग और सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।
क्या कहता है रिहाई मंच:
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि मुठभेड़ के नाम पर मारे गए मुस्तकीम और नौशाद के परिजनों को पूरा एक हफ्ता गैरकानूनी तरीके से हाउस एरेस्ट किया गया। सवाल उठाने पर यूनाईटेड अगेन्स हेट की टीम पर अतरौली थाने में भगवा भीड़ द्वारा हमला करने की कोशिश हुई। इसके पहले सामाजिक कार्यकर्ता मारिया आलम पर भी इसी थाने में हमला करने की ऐसी कोशिश हुई थी।
एएमयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष फैजुल हसन और मशकूर अहमद के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। यह सब साफ करता है कि योगी की पुलिस सच्चाई को दफन करना चाहती है। उन्होेंने कहा कि मुस्तकीम और नौशाद की लाश बिना रीति रिवाज केे दफन कर दी गई पर अब इंसाफ की आवाज को दफन नहीं होने दिया जाएगा।
रिहाई मंच का प्रतिनिधिमंडल इरफान के घर गढ़ी पहुंचा तो उनकी पत्नी समीरा की तबीयत काफी खराब थी ऐसे में उनकी साली रुबीना से बात हुई। उन्होंने बताया कि 16 सितंबर को साढ़े सात बजे के करीब हाजी इमरान आए थे और इरफान को बुलाकर ले गए। थोड़ी दूर स्थित मस्जिद के नीचे पुलिस खड़ी थी जो उसे लेकर जाने लगी तो विरोध किया लेकिन पुलिस नहीं मानी। इसके बाद मुहल्ले वाले अतरौली थाने गए जहां बताया गया कि वो हरदुआगंज थाने पर है। रुबीना उस वक्त अलीगढ़ में थी। वो रात के एक बजे के करीब थाना हरदुआगंज पहुंची पर उसके होने से इनकार कर दिया गया।
अगली सुबह वो इरफान की पत्नी को लेकर एसएसपी कार्यालय गई जहां एडीशनल एसपी से मुलाकात कर इरफान के उठाए जाने की शिकायत की। तीसरे दिन 18 को वह सुबह 8 बजे अतरौली थाना पहुंची तो वहां हाजी इमरान मौजूद थे। इरफान की पत्नी ने पूछा कि मेरे शौहर कहां हैं तो उसने पहचानने से साफ इनकार कर दिया। बार-बार सवाल करने पर उसे अंदर कर देने की धमकी से चुप करा दिया गया।
किसी तरह वहां से अलीगढ़ एसएसपी कार्यालय पहुंचे कि तभी गाड़ी से उतारे जा रहे इरफान ने चिल्लाकर आवाज दी। हम इरफान से मिलने को दौड़ पड़े लेकिन पुलिस ने हमें रोक दिया। कप्तान अजय साहनी के कार्यालय में ले जाई गई। जैसे ही समीरा ने इरफान का नाम लिया और बताया कि उसकी पत्नी हूं तो उन्होंने बिना आगे बात किए बच्चों समेत हमें महिला पुलिस की हिरासत में रखवा दिया। सुबह से लेकर देर रात हम नजरबंद रहे। बच्चों को बुखार चढ़ गया था पर वे हमें छोड़ने को तैयार न थे। उल्टी सीधी बातें कर रहे थे।
रिहाई मंच ने कहा कि हालात और परिजनों के बयान बताते हैं कि उठाए गए लड़के एसएसपी अजय साहनी की पकड़ में थे। हाजी इमरान की भूमिका भी उतनी ही संदिग्ध है। इरफान को लेकर वही गया था तो आखिर अतरौली थाने में उसकी पत्नी से क्यों कहा कि वह इरफान को नहीं जानता। यहां गौरतलब है कि 16 तारीख को मुस्तकीम और नौशाद को हाजी इमरान ही घर से बाहर लेकर आए थे जिसके बाद पुलिस ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया और बाद में मुठभेड़ की आड़ में मार दिया। हर गिरफ्तारी से ठीक पहले हाजी इमरान का चेहरा आता है। ऐसे में उनकी भूमिका की जांच इस पूरे मुठभेड़ की असलियत सामने लाने के लिए जरुरी है।
रिहाई मंच की विज्ञप्ति के मुताबिक अतरौली ब्राह्मनपुरी मोहल्ले के रहने वाले डाक्टर यासीन की पत्नी निहानाज बताती हैं कि 16 सितंबर को रात 8ः45 के करीब थानाध्यक्ष अतरौली आए और उनके पति को लेकर चले गए। उन्होंने 17 सितंबर को सुबह ही मुख्यमंत्री, आईजी लखनऊ, डीआईजी परिक्षेत्र अलीगढ़, एसपी अलीगढ़, थानाध्यक्ष अतरौली और थाना हरदुआगंज को फैक्स के माध्यम से भेजे षिकायती पत्र में कहा है कि जब उन्होंने अपने पति को पुलिस द्वारा उठाकर ले जाने का विरोध किया तो उनके साथ अभद्र व्यवहार किया गया।
स्थानीय पुलिस नहीं बता रही कि उनके पति को किस स्थान पर रखा गया है। उनके पति का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उन्होंने 17 सितंबर को ही यह अंदेशा व्यक्त कर दिया था कि उनके पति को किसी फर्जी मुकदमे में फंसाकर जेल में ठूंसा जा सकता है या फर्जी मुठभेड़ दिखाकर हत्या की जा सकती है। यासीन के भाई रईस बताते हैं कि उनके भाई की क्लीनिक को दिखाकर हाजी इमरान इरफान के घर की तरफ पुलिस को लेकर चला गया था। कंपाउंडर से पूछकर पुलिस उनके घर आई थी।
यासीन की गिरफ्तारी में भी निशानदेही हाजी इमरान ने ही की। वह चुन-चुनकर लोगों को पकड़वाने का काम कर रहे थे। स्थानीय लोगों ने बताया कि वो सिकन्दराबाद इलाके से है और उसपर मुकदमे भी दर्ज हैं। हाजी इमरान के मकान में ही मुस्तकीम और नौशाद का परिवार रहता है। परिजनों के हाउस अरेस्ट पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ जो मुकदमा दर्ज हुआ है उसमें भी हाजी इमरान का नाम है।
विज्ञप्ति अनुसार ऐसा यूं ही नहीं है कि अतरौली से उठाए गए व्यक्तियों के परिजन अतरौली थाने के बाद हरदुआगंज भागते रहे। यह हवा बहने लगी थी कि हरदुआगंज में ही पुलिस कोई घटना अंजाम देने की तैयारी में है। इसे 17 सितंबर को यासीन की पत्नी निहानाज द्वारा फैक्स किए गए पत्र में भी देखा जा सकता है जिसकी प्रतिलिपि वो थानाध्यक्ष हरदुआगंज को भी भेजती हैं। याद रहे कि हरदुआगंज उनका थाना क्षेत्र नहीं है। इसी तरह इरफान की साली 16-17 की रात 1 बजे थाना हरदुआगंज पहुंच जाती हैं।
विज्ञप्ति अनुसार पहली नजर में हम पाते हैं कि साधू और कल्याण सिंह के बेटे भाजपा सांसद राजबीर के करीबी रिश्तेदारों की हत्या के बाद पुलिस पर काफी दबाव था। इसी के चलते पुलिस ने अतरौली के जरदोजी मजदूरों को हाजी इमरान के जरिए चिन्हित कर उठवाया जो जरदोजी के व्यापार का ठेकेदार भी है।
विज्ञप्ति अनुसार 18 सितंबर को एसएसपी अजय साहनी का यह कहना कि योगी सरकार को बदनाम करने के लिए की गई अलीगढ़ में साधुओं की हत्या प्रशासनिक व्यक्ति का नहीं बल्कि भाजपा सरकार के प्रवक्ता का बयान लगता है। ऐसा रणनीतिक तौर पर किया गया कि भाजपा का एजेंडा पूरा हो और साथ ही कानून व्यवस्था को लेकर पुलिस पर उठ रहे सवालों को भी पीछे धकेला जा सके। इस पूरे मामले में अतरौली व हरदुआगंज थाना और एसएसपी अजय साहनी समेत हाजी इमरान की भूमिका सवालों के घेरे में है। इनका जवाब काॅल रिकार्ड से साफ हो जाएगा। वहीं जब 17 सितंबर को डाक्टर यासीन की पत्नी निहानाज ने जो फैक्स मुख्यमंत्री, आईजी लखनऊ, डीआईजी परिक्षेत्र अलीगढ़, एसपी अलीगढ़, थानाध्यक्ष अतरौली और थाना हरदुआगंज को भेजा उस पर संज्ञान क्यों नहीं लिया गया। यह फर्जी मुठभेड़ को लेकर शासन-प्रशासन के बीच आम सहमति की ओर इशारा करता है।