अयोध्या विवाद: 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई, मस्जिद के अंदर कोई मूर्ति नहीं थी

अयोध्या विवाद: 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई, मस्जिद के अंदर कोई मूर्ति नहीं थी

नई दिल्ली। अयोध्या विवाद को लेकर सुप्रीमकोर्ट में चल रही नियमित सुनवाई के 29वें दिन मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने अपनी दलीलें जारी रखीं। धवन ने कोर्ट से कहा कि 22 दिसंबर 1949 तक मस्जिद में लगातार नमाज हुई।

उन्होंने कहा कि पौने पांच सौ साल पहले 1528 में मस्जिद बनाई गई थी और 22 दिसंबर 1949 तक लगातार नमाज हुई। तब तक वहां अंदर कोई मूर्ति नहीं थी। धवन ने कहा कि एक बार मस्जिद हो गई तो हमेशा मस्जिद ही रहेगी।

इतना ही नहीं राजीव धवन ने कहा कि हिन्दू पक्षकारो के पास विवादित भूमि पर कब्ज़े का कोई सबूत नहीं है। उन्होंने हाईकोर्ट के जस्टिस खान और जस्टिस अग्रवाल द्वारा दिए गए फैसले के कुछ अंशो को भी कोर्ट के समक्ष रखा। राजीव धवन ने कहा कि हिन्दू पक्षकारो का सिर्फ बाहरी अहाते पर अधिकार था।

राजीव धवन ने कहा कि औरंगजेब ने कई मंदिरो के लिए अनुदान दिया, इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि नाथद्वारा मंदिर को औरगजेब द्वारा दिए गए अनुदान के लिखित और मौखिक सबूत मौजूद हैं।

धवन ने कोर्ट में अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा कि बड़ी तादाद में लोग अगर किसी मंदिर में दर्शन पूजन करते हैं तो ये उसके ज्यूरिस्टिक पर्सन होने का कोई आधार नहीं है।

राजीव धवन ने हाईकोर्ट के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि हाई कोर्ट के फैसले की खामी यह है कि जिस तरह एक ही जगह के दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते, ठीक वैसे ही जैसे गुरुद्वारा और गुरुग्रंथ साहिब दो ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं हो सकते। सिर्फ गुरुग्रंथ साहिब जब गुरुद्वारा में होते हैं तभी वो गुरुद्वारा बनता है।

उन्होंने आगे कहा कि ठाकुर गोकुलनाथ जी वल्लभाचार्य ने 7 मूर्तियां अपने सातों पोतों को दी थी, जो गोकुल में है। उस पर ही विवाद हुआ, तब भी कोर्ट ने मूर्ति को ज्यूरिस्टिक पर्सन नहीं माना था।

धवन की इस दलील पर जस्टिस बोबड़े ने टोकते हुए पूछा कि बिना मूर्ति के भी तो कोई देवता हो सकता है जैसे आकाश तत्व, चिदंबरम नटराज ? इस पर धवन ने कहा कि लेकिन ऐसी जगह पर कुछ न कुछ निर्माण, ढांचा या आकार जरूर होना चाहिए जिससे ये विश्वास हो कि ये ज्यूरिस्टिक पर्सन है।

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TeamDigital