अंतिम चरण में बीजेपी को बड़ा ज़ख्म दे सकते हैं हार्दिक,अल्पेश और जिग्नेश

अंतिम चरण में बीजेपी को बड़ा ज़ख्म दे सकते हैं हार्दिक,अल्पेश और जिग्नेश

नई दिल्ली। गुजरात में विधानसभा चुनावो के दूसरे और अंतिम चरण में कल मतदान होना है। पहले चरण में उम्मीद से कम मतदान होने से राज्य की सत्ताधार बीजेपी को धक्का लगा है। इसलिए अब बीजेपी की निगाहें कल होने वाले चुनाव पर टिकी हैं।

दूसरे चरण के चुनाव में मध्य गुजरात और उत्तर गुजरात के 14 जिलों के 93 विधानसभा क्षेत्रो में वोट डाले जायेंगे। इसमें 53 सीटें उत्तर गुजरात की और 40 विधानसभा सीटें मध्य गुजरात के इलाके हैं। इनमे गुजरात का आदिवासी विस्तार वाला क्षेत्र भी शामिल है।

2012 के विधानसभा चुनावो में दूसरे चरण में 71.85 प्रतिशत मतदान हुआ था। 2012 के विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण की 93 सीटों में से कांग्रेस ने 37 और बीजेपी ने 56 सीटें जीती थीं।

दूसरे चरण के चुनाव में 93 सीटों में से 54 सीटें देहात के इलाके से हैं जिनमे आदिवासी विस्तार भी शामिल हैं। 2012 के चुनाव में बीजेपी देहात के इलाको की 54 सीटों में से मात्र 23 सीटें ही जीत सकी थी जबकि कांग्रेस ने अपनी सहयोगी एनसीपी के साथ मिलकर ग्रामीण क्षेत्रो में 31 सीटें जीती थीं।

दूसरे चरण में करीब डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी हैं जहाँ ओबीसी, दलित और मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं। जिस पार्टी को दो समुदाय का कॉम्बिनीशन वोट मिलता है वही चुनाव जीतता है। करीब दो दशकों तक बीजेपी से जुड़े रहे ओबीसी और दलित समुदाय के मतदाताओं में इस बार सेंध लग चुकी है।

ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और गुजरात में दलित चेहरा बनकर उभरे जिग्नेश मेवाणी करीब 18 से 20 सीटों पर बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। वहीँ अहमदाबाद की 16 विधानसभाओं पर भी इस बार समीकरण बदल चुके है। इसलिए ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि दूसरे चरण में बदले समीकरणों का कांग्रेस को बड़ा फायदा मिल सकता है।

1990 से लेकर अब तक बीजेपी का इन 16 विधानसभाओं में बड़ा दबदबा रहा है। पिछले विधानसभा चुनावो में भारतीय जनता पार्टी यहाँ 16 में से 14 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार पाटिदारो की नाराज़गी के चलते पाटीदार बाहुल्य पांच विधानसभा क्षेत्रो में समीकरण पूरी तरह पलट गए हैं।

घटलोदिया, निकोल, मणिनगर, साबरमती और ठक्करबापा नगर विधानसभा क्षेत्रो में पाटीदार मतदाता ही हार जीत तय करते आये हैं। इन विधानसभाओं में शुरू से ही अधिक तादाद होने के चलते पाटीदार मतदाताओं का ही दबदबा रहा है।

इससे पहले कल पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने अहमदाबाद में रोड शो के बाद एक सभा को सम्बोधित करते हुए बीजेपी के लिए अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए थे। उन्होंने अपने भाषण में पाटीदार युवाओं को सन्देश दिया था कि हमने बीजेपी के साथ जैसा सौराष्ट्र और सूरत में क्या ठीक वैसा ही अहमदाबाद में करेंगे।

वहीँ अहमदाबाद की चार अन्य विधानसभा सीटों पर दलित मुस्लिम और ओबीसी हार जीत का फैसला करते हैं। पुराने परिणामो को देखकर पता चलता है कि जिस पार्टी को दलित, मुस्लिम और ओबीसी में से दो समुदायों का समर्थन मिलता है वही चुनाव जीतता है।

इन चार विधानसभाओं में जमालपुर-खाड़िया, दरियापुर, दनीलीमादा और वेजलपुर में पिछले चुनावो में बीजेपी दलित और ओबीसी कॉम्बिनेशन पर चुनाव जीतती रही है लेकिन इस बार दलित बीजेपी से नाराज़ हैं, वहीँ ओबीसी मतदाताओं पर अल्पेश ठाकोर के प्रभाव के चलते बीजेपी के परम्परागत वोट बैंक में बड़ी सेंध लग चुकी है तथा मुसलमान पहले से कांग्रेस के साथ रहे हैं।

जानकारों की माने तो 16 में से ये 11 सीटें जीतना बीजेपी के लिए इस बार लोहे के चने चबाने जैसा है। वहीँ साबरमती और असरवा पर कांग्रेस के सिटिंग एमएलए हैं। 2012 के चुनाव में अहमदाबाद में ये दोनों सीटें ही कांग्रेस जीत पाई थी।

दो दशकों से अधिक समय तक बीजेपी के साथ खड़े रहे पाटीदारो में इस बार बीजेपी को लेकर एक राय नहीं है। जानकारों के अनुसार गुजरात में चुनावो के एलान से पहले ही पाटीदारो में बीजेपी का विरोध था। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने जगह जगह सभाएं करके अपनी ताकत दिखाई। जिसके परिणाम स्वरुप बड़ी तादाद में पाटीदार हार्दिक पटेल के साथ बताये जाते हैं।

वहीँ अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बीजेपी के परम्परागत रहे ओबीसी वोटबैंक में बड़ी सेंध लग चुकी है। ऐसे में ओबीसी मतदाताओं पर आँख बंद कर भरोसा करना बीजेपी के लिए बड़ी भूल साबित हो सकती है।

तीसरा बड़ा फेक्टर दलित मतदाताओं को लेकर है। ऊना काण्ड के बाद दलितों का चेहरा बनकर उभरे जिग्नेश मेवाणी ने दलितों को बीजेपी के खिलाफ जाग्रत करने का काम किया है। जिसका असर दूसरे चरण के चुनाव में दिखना तय है।

वहीँ आदिवासी वोटो की आस लगाए बैठी बीजेपी के लिए एक बड़ा संकट कांग्रेस द्वारा नेशनल ट्राइबल पार्टी को 3 विधानसभा सीटें देना है। नेशनल ट्राइबल पार्टी का आदिवासी विस्तारो में अच्छा दबदबा है और वह बीजेपी के परम्परागत वोट बैंक में सेंधमारी कर चुकी है।

देखना है कि इतनी मुश्किलों के बावजूद बीजेपी गुजरात का दुर्ग बचाने में सफल रहती है अथवा नहीं। कल अंतिम चरण के मतदान के बाद गुजरात चुनाव की साफ़ तस्वीर निकल कर सामने आएगी।

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TeamDigital