भारत के मुख्य न्यायाधीश रमना ने संसद में बिना चर्चा बिल पास होने पर उठाये सवाल
नई दिल्ली। नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने संसद में कामकाज के तरीके पर सवाल उठाये हैं। उन्होंने संसद में बिना चर्चा बिल पास किये जाने को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि संसद में कार्यवाही के दौरान उचित बहस या चर्चा नहीं होती।
इतना ही नहीं चीफ जस्टिस रमना ने वर्तमान संसद की तुलना पहले के समय की संसद से की, जब संसद वकीलों से भरा हुआ रहता था। उन्होंने कहा कि वकीलों भी सार्वजनिक सेवा के लिए अपना समय संसद को दें।
सुप्रीम कोर्ट में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में सीजेआई रमना ने कहा कि पहले संसद के दोनों सदनों में बहस पॉजिटिव और समझदारी भरी हुआ करती थी, हर कानून पर विशेष चर्चा होती थी, मगर अब संसद के बनाए कानूनों में खुलापन नहीं रहा।
उन्होंने कहा, ‘ संसद के कानूनों में स्पष्टता नहीं रही। हम नहीं जानते कि कानून किस उद्देश्य से बनाए गए हैं। यह जनता के लिए नुकसानदायक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वकील और बुद्धिजीवी सदनों में नहीं हैं।’
जस्टिस रमना कहा, ‘अगर हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को देखें, तो उनमें से कई कानूनी बिरादरी से भी थे। लोकसभा और राज्यसभा के पहले सदस्य वकीलों के समुदाय से भरे हुए थे।’
उन्होंने कहा, ‘अब सदनों में जो कुछ हो रहा हैं, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। पहले सदनों में बहस बहुत रचनात्मक और सकारात्मक हुआ करती थी। मैंने फाइनेंशियल बिलों पर बहस देखी है, बहुत रचनात्मक प्वाइंट्स बनाए जाते थे। कानूनों पर चर्चा की जाती थी और विचार-विमर्श होता था। रमना ने कहा, ‘मैं वकीलों से कहना चाहता हूं कि अपने आप को कानूनी सेवा तक सीमित न रखें, सार्वजनिक सेवा भी करें। इस देश को भी अपना ज्ञान और बुद्धि दें।’
#WATCH | CJI Ramana says, "If you see debates which used to take place in Houses in those days, they used to be very wise, constructive…Now, sorry state of affairs…There's no clarity in laws. It's creating lot of litigation&loss to govt as well as inconvenience to public…" pic.twitter.com/8Ca80rt8wC
— ANI (@ANI) August 15, 2021
मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा कि यह नीतियों और उपलब्धियों की समीक्षा करने का समय है। 75 साल देश के इतिहास में कोई छोटी अवधि नहीं है। जब हम स्कूल जाते थे तब हमें गुड़ का टुकड़ा और एक छोटा झंडा दिया जाता था। आज भले ही हमें इतना कुछ मिल जाए लेकिन हम खुश नहीं हैं। हमारा संतृप्ति स्तर नीचे पहुंच गया है।’