हमारे बच्‍चों को निशाना बनाया जा रहा है, वक्‍त आ गया है कि हम एक हो जाएं

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सहारनपुर । बरेलवी आंदोलन के संस्‍थापक मौलाना अहमद रजा खान ‘अला हजरत’ के पड़पोते मौलाना तौकीर रजा खान एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुुए हाल ही में दारूल उलूम देवबंद पहुंचे थे। खान भारतीय मुसलमानों में सुन्‍नी समुदाय के दो विरोधी पंथों के बीच एकता स्‍थापित करने के मकसद से वहां गए थे।

उनके मुताबिक, मुसलमानों की एकता के लिए उन्‍होंने यह कदम एक युवा मुसलमान की मां के आंसुुओं के बाद उठाया है, जिसे हाल ही में आतंकवादी बताते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था। खान कहते हैं, “हमारे बच्‍चों को निशाना बनाया जा रहा है। वक्‍त आ गया है कि हम एक हो जाएं और युवा मुसलमानों को जेल में डालने वालों के खिलाफ लड़ें। हमारे बच्‍चे हमारी इकलौती संपत्ति हैं और उनपर हमले हो रहे हैं।

मालेगांव मामले को ही ले लीजिए, हमारे लड़कों को सजा हो गई या वे सालों, दशकों तक जेल में रहे, आखिरकार उन्‍हें रिहा कर दिया गया। तब तक उनकी इज्‍जत लुट चुकी थी और उनका आत्‍मविश्‍वास गायब हो चुका था। इन सब बातों से हमें एक होकर लड़ना होगा। कोई मुसलमान अच्‍छा या बुरा नहीं है।

हम सभी राज्‍य की भेदभावपूर्ण नीति के पीड़ि‍त हैं और यह सब सिर्फ शक के आधार पर किया गया।” मौलाना तौकीर रजा खान और देवबंद के बीच हुई मुलाकात चाय-नाश्‍ते पर हुई एक दोस्‍ताना मुलाकात थी, जिसमें करीब 25-30 लोग शामिल थे। एक घंंटे तक चली बैठक में मज़हबी फर्क पर बात नहीं हुई, बल्कि मुसलमानों के लिए खड़ी बड़ी मुसीबतों से साथ मिलकर लड़ने की बात की गई।

इसी महीने की शुरुआत में, दिल्‍ली पुलिस की स्‍पेशल सेन ने दिल्‍ली के बाहरी इलाकों और उत्‍तर प्रदेश में देर रात छापेमारी कर 13 युवा मुस्लिमों को उठाया था। पुलिस का दावा था कि उन्‍होंने जैश-ए-मोहम्‍मद के मॉडयूल का खुलासा किया है, जो देश में हुई “मुस्लिम विरोधी” घटनाओं का बदला लेने के लिए देशभर में बम धमाके करने वाले थे। उसके बाद, दिल्‍ली पुलिस ने “सबूतों के अभाव” में उनमें से 10 युवकों को छोड़ दिया। जबकि बाकी तीन- सज्‍जाद, समीर अहमद और शकीर अंसारी को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुलिस ने दावा किया कि उन्‍होंने रिहा किए गए चार युवकों के लिए मनोवैज्ञानिक का इंतजाम किया है जो उन्‍हें “उग्रवाद से बाहर निकलने” में मदद करेगा। पुलिस ने बाकी छह के मां-बाप से कहा कि वह ध्‍यान रखें कि “लड़के रास्‍ते से भटके नहीं”। गिरफ्तारी के कुछ ही दिन बाद मौलाना तौकीर रजा खान उनके परिवारवालों से मिलने गए। 8 मई को वह शकीर के घर गए थे।

इन गिरफ्तारियों के अनपेक्षित परिणाम सामने आए जिन्‍होंने भारतीय मुस्लिमों को सोचने पर मजबूर कर दिया। खान ने अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि वह दोनों पंथों के बीच एक समान न्‍यूनतम एजेंडा कायम करना चाहते हैं, इससे पहले कि और मुसलमान युवकों को झूठे आरोपों में फंसाया जाए।

देवबंदी और बरलेवी, दोनों पैगम्‍बर मोहम्‍मद की श्रद्धा से जुड़े कुछ मतभेदों के साथ इस्‍लाम को मानते हैं। देवबंदी पंथ सुन्नियों के भीतर उपनिवेशवाद की प्रतिक्रिया के रूप में एक पुनरुत्‍थान आंदोलन के तौर पर शुरू हुआ था। जबकि बरेलवी पंथ या अहल-ए-सुन्‍नत वल जम्‍मत की स्‍थापना दक्षिण एशिया की परंपरागत रहस्‍यमयी प्रथाओं की रक्षा के लिए हुई थी।

देवबंदी ज्‍यादा सादगीपसंद माने जातेे हैं जबकि बरेलवी इस्‍लाम के अन्‍य पहलुओं की तरह धार्मिक स्‍थलों, गीतों और प्रशंसा पर जोर देेते हैं। भारत में स्‍थापित किए गए दोनों पंथों के बीच मतभेद सौ साल से भी ज्‍यादा पुराने हैं और अक्‍सर कड़वे और हिंसक विवाद होते रहे हैं। “लेकिन, अब एक साथ आने का वक्‍त आ गया है।” ये कहना है मौलाना तौकीर रजा खान का।

देवबंद के मोहतमीन, मौलाना अबुल क़सीम नोमानी ने कहा, “हमने हमेशा एकता के लिए उठाए गए कदमों का स्‍वागत किया है। हम मीलों तक साथ चलने के लिए तैयार हैं। हम एक शैक्षणिक संस्‍था हैं और ऐसी गतिविधियों से दूर रहते हैं, लेकिन हम अपने बीच के मतभेदों को भुलाने के लिए तैयार हैं अगर इससे मुसलमानों के बीच एकता बढ़ती है।”

जामिया मिलिया इस्‍लामिया के निदेशक, प्रोफेसर अख्‍तर उल वसी उस वक्‍त देवबंद में ही मौजूद थे, जब खान वहां पहुंचे। उन्‍होंने कहा, “पहले उठाए गए लड़के अनपढ़ थे, लेकिन अब पढ़े-लिखे और लायक लड़कों को उठाया जा रहा है। जिस भी इंसान को निशाना बनाया जाता है, वह अकेला नहीं, उसका पूरा परिवार और समुदाय अपनी साख खोता है। इसका असर बहुत बड़ा है। अगर मुस्लिम बच्‍चों को निशाना बनाने वाले हममें कोई फर्क नहीं देखते तो हम अपने आप में फूट क्‍यों पड़ने दें। हम यह लड़ाई एक होकर लड़नी होगी।”

वसी जोर देते हैं कि यह धार्मिक विवादों को सुलझाने की पहल नहीं है। वे कहते हैं, “हमें पंथों को कबूलना होगा क्‍योंकि यही इस्‍लाम को विविध और जनवादी बनाता है। भारत में, जब कभी बाढ़, तूफान, सूखा या अन्‍य मसले होते हैं तो वे हम सभी को प्रभावित करते हैं और हम सब उनसे जूझते हैं। इसी तरह, हम उन बातों पर एकमत होने की कोशिश कर रहे हैं जो हम सभी मुसलमानों को प्रभावित करती हैं।”

वसी कहते हैं, बरेलवी और देवबंदी एक बार थोड़े समय के लिए 1972 में एक साथ आए थे जब यह डर था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ खतरे में है, जिसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बनाया गया। आज, धर्म के अस्तित्‍व पर ही खतरा मंडरा रहा है, जिसकी वजह से ही दोनों पंथ फिर एक साथ हैं।”

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