रोज़गार के मामले फिसड्डी साबित हुई मोदी सरकार

नई दिल्ली। केंद्र में मोदी सरकार को तीन साल पूरे हो चुके हैं, कई क्षेत्र में सरकार का दावा है कि उसने काम किया है। बिजली उत्पादन, सड़क निर्माण से लेकर कई विभाग में बड़े कामों का केंद्र सरकार ने दावा किया है, लेकिन इन सबके बीच सरकार के सामने जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह कि पिछले तीन सालों में बेरोजगारी बड़ी संख्या में बढ़ी है।

लोगों को रोजगार देने में मौजूदा केंद्र सरकार तकरीबन विफल रही है और आज भी देश के युवा रोजगार की तलाश में यहां वहां भटक रहे हैं और एक अदद अच्छे दिन की तलाश कर रहे हैं।

पूर्व की मनमोहन सरकार पर नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान जमकर हमला बोला था और दावा किया था कि वह सरकार में आने के बाद बड़ी संख्या में बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराएंगे। लेकिन इन दावों से इतर अगर मनमोहन सरकार और मोदी सरकार के कार्यकाल पर नजर डालें तो मनमोहन सिंह की सरकार मोदी सरकार से इस मामले में आगे नजर आती है। नए रोजगार के सृजन में मोदी सरकार बुरी तरह से विफल रही है और यह पिछले आठ साल के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है।

लेकिन इन विकट परिस्थितियों में अगर आप यह उम्मीद लगाएं बैठे हैं कि आने वाले समय में रोजगार के रास्ते खुलेंगे तो आपके हाथ निराशा ही लगेगी, क्योंकि आने वाले निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना नहीं है कि रोजगार का सृजन तेजी से होगा। केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने पिछले आठ साल के जो आंकड़े जारी किए हैं उसपर नजर डालें तो 2015 में सिर्फ 1.55 लाख और 2016 में सिर्फ 2.31 लाख लोगों को रोजगार मिला है।

वहीं अगर मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान 2009 के वर्ष को देखें तो 10 लाख लोगों को नौकरी मिली थी। लेकिन मुश्किल यही नहीं नहीं, एक तरफ जहां केंद्र की मोदी सरकार नए रोजगार का सृजन करने में विफल रही है तो दूसरी तरफ देश में रोजगार देने में सबसे आगे रहने वाले आईटी सेक्टर की हालत भी काफी बदतर होती जा रही है। देश की कई बड़ी आईटी सेक्टर की कंपनियों में लोगों की नौकरी जा रही है और बड़े पैमाने पर कंपनियों में छंटनी चल रही है। आईटी सेक्टर के विशेषज्ञों की माने तो आने वाले समय में इस स्थिति के सुधरने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार में भाजपा का दावा था कि वह हर वर्ष दो करोड़ नए रोजगार पैदा करेगी। लेकिन जिस तरह से लगातार सरकार रोजगार सृजन के अवसर करने में विफल रही है उसने तमाम दावों की पोल खोल दी है। हालांकि भाजपा इस पूरे मुद्दे पर कहती है कि उसने रोजगार सृजन का वायदा किया था नौकरी देने का नहीं। पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि सरकार ने स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया जैसी योजना शुरु की है जिसके जरिए बड़ी संख्या में रोजगार पैदा हुए हैं।

आपको बता दें कि देश की तकरीबन पचास फीसदी आबादी की उम्र 35 वर्ष से कम है और 2020 तक औसत आयु घटकर 29 फीसदी पहुंच जाएगी, जोकि दुनिया में सबसे युवा आबादी होगी। आने वाले समय में इन युवाओं को हर वर्ष रोजगार मुहैया करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। केंद्र सरकार को हर वर्ष तरीबन 1.20 -1.50 करोड़ लोगों को रोजगार देना होगा। लेकिन आने वाले समय में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार के पास कोई खास योजना नजर नहीं आ रही है।

लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में 8 प्रमुख औद्याेेेगिक क्षेत्रों में सिर्फ 1.55 लाख और 2016 में 2.31 लाख नए रोजगार पैदा हुए थे। जबकि 2009 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के दौरान इन क्षेत्रों में 10.6 लाख नई नौकरियां आई थीं। फिलहाल पिछले एक दशक में नौकरियों की यह सबसे धीमी ग्रोथ है।

एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर साल 8-10 लाख इंजीनियर तैयार होते हैं। आईटी कंपनियों में छंटनी का यह दौर नौजवानों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। हर साल देश में 50-60 लाख नए नौकरी की कतार में जुड़ जाते हैं। बड़ी संख्या में लोग कृषि जैसे असंगठित क्षेत्रों के बजाय रोजगार के लिए सर्विस, मैन्युफक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर का रुख कर रहे हैं। इससे समस्या और भी विकराल हो गई है।

देश में बेरोजगारी की समस्या का एक पहलू यह भी है कि आधे से ज्यादा लोगों के पास पूरे साल काम नहीं है। बेरोजगारी पर लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 61 फीसदी के पास साल भर रोजगार होता है। जबकि 68 फीसदी परिवारों की मासिक आय 10 हजार रुपये से भी कम है। देश में करीब 16 करोड़ लोग अर्ध-बेरोजगारी का शिकार हैं।

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