महिला सशक्तिकरण : कानून और संविधान की दृष्टि से

महिला सशक्तिकरण : कानून और संविधान की दृष्टि से

ब्यूरो (अमरीन शाहीन, लखनऊ)। महिला सशक्तिकरण के बारे में जानने से पहले हमे ये जान लेना चाहिए कि सशक्तिकरण क्या होता है। सशक्तिकरण का तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है, जिससे उसमे वह योग्यता आ जाती है जिसमें वह अपने जीवन के सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे हैं जहाँ महिलाएं परिवार और समाज बंधनो से मुक्त होकर अपने निर्णयो की निर्माता खुद हों।

अपनी निजी स्वतंत्रता और स्वयं के फैसले लेने के लिए अधिकार देना ही महिला सश्क्तिकरण है। महिलाओं को उपयुक्त औरस्वच्छ पर्यावरण की आवश्यकता है । जिससे वे हर क्षेत्र में खुद का फैसला ले सकें, चाहे वे स्वयं, बच्चे, परिवार, समाज या देश के लिए हो। देश को पूरी तरह विकसित बनाने के लिए और विकास के लक्ष्य को पाने के लिए एक बहुत ही ज़रूरी हथियार के रूप में है महिला सशक्तिकरण ।

पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा कहा गया मशहूर वाक्य ” लोगो को जगाने के लिए,महिलाओ का जागृत होना जरूरी है।

महिला सशक्तिकरण भौतिक या आध्यात्मिक,शारीरिक या मानसिक,सभी स्तर पर महिलाओ मे आत्मविश्वास पैदा कर उन्हे सशक्त बनाने की प्रक्रिया है।इस दिशा मे दुनिया मे कई देश,कई महत्वपूर्ण उपाय काफी समय पूर्व से कर चुके है। भारतवर्ष मे भी इस दिशा मे कुछ रचनात्मक कदम उठाए जा रहे है। पुरूष प्रधान समाज मे महिलाओ को आरक्षण दिया जाना और वह भी राजनीति जैसे क्षेत्र मे वास्तव मे एक आश्चर्य की बात है।

महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता क्यो पड़ी:

सदियो से पुरुषो द्वारा महिलाओ पर किए गए वर्चस्व और भेदभाव के कारण महिला सशक्तीकरण के लिए आवश्यकता पैदा हुई है। सैकड़ो औरते दुनियाभर मे पुरुषो द्वारा किया गया भेदभावपूर्ण व्यवहार की लक्ष्य बनी है। भारत अलग नही है,भारत एक जटिल देश है। जहां पर देवी की पूजा की जाती है, अपनी बेटियो,माताओ और बहनो को महत्व दिया जाता है।

वही दूसरी ओर परम्पराओ, रीति-रिवाजो और धार्मिक मान्यताओ की आड़ मे उनपर दुराचार भी किया गया है। हर धर्म मे महिलाओ को सम्मान देना सीखाया जाता है, लेकिन अनेक कुरीतिया और प्रथाए ऐसी है, जिनके चलते औरतो को प्रताड़ित किया जाता रहा है। उदाहरण के लिए:- सती प्रथा, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, यौन हिंसा,यौन उत्पीड़न, घर या काम के स्थान पर, वेश्यावृत्ति, बलात्कार, मानव तस्करी, घरेलू हिंसा आदि।

संवैधानिक मौलिक अधिकार :

भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुसार पुरुषो की तरह सभी क्षेत्रो मे महिलाओ को बराबर अधिकार देने के लिए कानूनी स्थिति है। भारत मे बच्चो और महिलाओ के उचित विकास हेतु इस क्षेत्र मे महिला और बाल-विकास अच्छे से कार्य कर रहा है ।

संविधान के अनुच्छेद-14 मे कानूनी समानता, अनुच्छेद-15 (3) मे जाति, धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव न करना।

अनुच्छेद-16 (1) मे लोक सेवाओ मे बिना भेदभाव के अवसर की समानता। अनुच्छेद-19 (1) मे समान रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

अनुच्छेद-21 मे स्त्री एवं पुरुषो दोनो को प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित न करना।

अनुच्छेद-23-24 मे स्त्री एवं पुरुष दोनो को ही शोषण के विरूद्घ अधिकार समान रूप से प्राप्त।

अनुच्छेद-25-28 मे धार्मिक स्वतंत्रता दोनो को समान रूप से प्राप्त।

अनुच्छेद-29-30 मे शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार।

अनुच्छेद-32 मे संवैधानिक उपचारो का अधिकार।

अनुच्छेद-39(घ) मे पुरुषो एवं स्त्रियो दोनो को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार।

अनुच्छेद-42 महिलाओ हेतु प्रसुति सहायता प्राप्ति की व्यवस्था।

अनुच्छेद-51(क)(ड) मे भारत मे सभी लोग ऐसी प्रथाओ का त्याग करे जो स्त्रियो के सम्मान के विरुद्ध हो।

अनुच्छेद-33 (क) मे प्रस्तावित 84वे संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा मे महिलाओ के लिए आरक्षण की व्यवस्था।

अनुच्छेद-332 (क) मे प्रस्तावित 84वे संशोधन के ज़रिए राज्यो की विधानसभाओ मे महिलाओ के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।

गर्भावस्था मे ही मादा भ्रूण हत्या करने के उद्देश्य से लिंग परीक्षण को रोकने हेतु पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 निर्मित किया गया।इसका पालन न करने वालो को 10-15 हजार रुपए का जुर्माना तथा 3-5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के लिए 1961 मे ‘दहेज निषेध अधिनियम’ बनाया गया। 1986 मे इसे भी संशोधित कर समयानुकूल बनाया गया।

विभिन्न संस्थाओ मे कार्यरत महिलाओ के स्वास्थ्य लाभ के लिए अवकाश की विशेष व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद-42 के अनुकूल करने के लिए 1961 मे प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम पारित किया गया। इसके चलते 135 दिनो का अवकाश मिलने लगा है।

भारतीय दंड संहिता मे महिलाओ के लिए कानून:

दहेज हत्या से जुड़े कानूनी प्रावधान- दहेज हत्या को लेकर भारतीय दंड संहिता(आई.पी.सी.) मे स्पष्ट प्रावधान है। इसके अंतर्गत धारा-304(बी),302,306 एवं 498-ए आती है।

दहेज हत्या का अर्थ है, औरत की जलने या किसी शारिरिक चोट के कारण हुई मौत या शादी के 7 साल के अंदर किन्ही सन्देहजनक कारण से हुई मृत्यु। इसके सम्बन्ध मे धारा-304 (बी) मे सजा दी जाती है, जो कि सात साल कैद है। इस जुर्म के अभियुक्त को जमानत नही मिलती।

आई.पी.सी की धारा-302 मे दहेज हत्या के मामले मे सजा का प्रावधान है। इसके तहत किसी औरत की दहेज हत्या के अभियुक्त का अदालत मे अपराध सिध्द होने पर उसे उम्र कैद या फांसी हो सकती है।

अगर ससुराल वाले किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक या भावनात्मक रूप से हिंसा का शिकार बनाते है,जिसके जिसके चलते वह औरत आत्महत्या कर लेती है, तो धारा-306 लागू होगी, जिसके तहत दोष साबित होने पर जुर्माना और 10 साल तक की सजा हो सकती है।
पति या रिश्तेदार द्वारा दहेज के लालच मे महिला के साथ क्रूरता और हिंसा का व्यवहार करने पर आई.पी.सी की धारा-498 (ए) के तहत कठोर दंड का प्रावधान है।

यौन अपराध एवं बलात्कार सम्बन्धित कानून:

देश मे बलात्कार के लगभग 80% मामलो मे सबूतो के अभाव, धीमी पुलिस जांच मे अभियुक्तो को सजा नही मिल पाती थी, लेकिन नए कानून के अनुसार बलात्कार के मामलो मे चिकित्सा सबूत अपर्याप्त होने के बाद भी महिला का बयान ही काफी समझा जाना चाहिए। अधिकतर औरते ऐसी घटनाओ की रिपोर्ट कराने से भी डरती है, क्योंकि इससे उनका और उनके परिवार का सम्मान जुड़ा होता है ।

बलात्कार की शिकार महिला को महिला वकील देने का प्रावधान किया जा रहा है, क्योंकि सिर्फ महिला ही एक महिला को सही तरह समझ सकती है। अगर कोई पीड़ित महिला चाहे तो अपनी पसंद से वकील चुन सकती है।

आई.पी.सी की धारा-375 के तहत जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग करता है, तो उसे बलात्कार कहते है। बलात्कार तब माना जाता है;यदि कोई पुरुष स्त्री के साथ
-उसकी इच्छा के विरुद्ध।
-उसकी सहमति के बिना।
-उसकी सहमति डरा धमका कर ली गई हो।
-उसकी सहमति नकली पति बना कर ली गई हो, जबकि वह उसका पति नही हो।
-उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह दिमागी रूप से कमजोर या पागल हो।
-उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह शराब या अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश मे नही हो।
-यदि वह 16 वर्ष से कम उम्र की है, चाहे उसकी सहमति से हो या बिना सहमति के।
-15 वर्ष से कम उम्र की पत्नि के साथ।

धारा-376 भारतीय दंड संहिता या आई.पी.सी मे बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान है, जिसके अंतर्गत बलात्कार के आरोपी को कम से कम सात वर्ष का कारावास या फिर आजीवन के लिए यानी दस वर्ष की अवधि का हो सकता है। किन्तु यदि वह स्त्री जिसके साथ बलात्कार हुआ हो, वह अपराधी की पत्नी हो और 12 वर्ष से कम आयु की नही है तो वह दोनो मे से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकती है।

अन्य यौन अपराध से संबंधित कानून :

धारा-354 आई.पी.सी मे कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की मर्यादा को भंग करने के लिए उस पर हमला या जबरदस्ती करता है तो उसे दो वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है।

छेड़खानी पर कानून – धारा-509,294 आई.पी.सी के अनुसार कोई भी शब्द, इशारा या मुद्रा जिससे महिला की मर्यादा का अपमान हो ।

यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री की मर्यादा का अपमान करने की नीयत से किसी शब्द का उच्चारण करता है, या कोई ध्वनि निकालता है, या कोई इशारा करता है, या किसी वस्तु का प्रदर्शन करता है तो उसे एक साल की कैद या जुर्माना या दोनो की सजा होगी।

निष्कर्ष:

कोई भी देश उन्नति पर तब तक नही पहुंच सकता, जब तक उस देश की महिलाए कन्धे से कन्धा मिला कर ना चले। देश की तरक्की के लिए महिलाओ को सशक्त बनाना होगा। एक बार जब महिला अपना कदम आगे बढ़ा लेती है, तो परिवार आगे बढता है और राष्ट्र का विकास होता है ।

महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु इसे प्रति एक परिवार मे बचपन से ही प्रचारित व प्रसारित करना आवश्यक है। इसके लिए यह भी मूल रूप के ध्यान रखना चाहिए कि महिलाओ को एक बेहतर शिक्षा प्राप्त हो।

कानूनी अधिकार के साथ महिलाओ को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा पास किए गए कुछ अधिनियम इस प्रकार है-
1) अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956
2) दहेज रोक अधिनियम 1961
3) एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976
4) मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987
5 ) लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994
6) बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006
7) कार्यस्थल पर महिलाओ का यौन शोषण एक्ट 2013

पूर्ण समाज को मिलकर महिला सशक्तिकरण पर बल देना होगा ताकि महिलाए भी देश की अर्थव्यवस्था मे बराबर का योगदान प्रदान कर पाए। इसके लिए एक अहम बात है कि हमे अपनी सोच और विचार बदलने होगे। एक नई सोच के साथ महिला सशक्तिकरण को बढावा देना होगा।

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