असम : बिहार फॉर्मूले से दूर भागना कांग्रेस के लिए साबित हुआ बड़ी भूल

Tarun-gagoi

नई दिल्ली ।असम में भाजपा बहुमत की तरफ बढ़ रही है ज़ाहिर है यहाँ भाजपा गठबंधन की सरकार बनना तय है । असम में 15 वर्षो तक शासन करने वाली कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव परिणाम किसी बड़े झटके से कम नहीं हैं । कांग्रेस ने ऐसी क्या भूल की जो परिणाम उसके विपरीत हो गए कांग्रेस इस पर ज़रूर चिंतन करेगी ।

बिहार में कांग्रेस ने लालू की पार्टी आरजेडी और नीतीश की जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और बीजेपी को पटखनी दी लेकिन असम में वह बिहार वाला फॉर्मूला नहीं अपना सकी। पार्टी पर बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ से गठबंधन का दबाव था लेकिन गोगोई उसे अंजाम तक नहीं पहुंचा सके। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस से मुस्लिम वोट छिटका और बीजेपी को इसका फायदा हुआ।

तरुण गोगोई 15 साल से राज्य के सीएम की कुर्सी पर थे। लेकिन राज्य में उन्हें लेकर इस बार गुस्सा चरम पर था। विकास से दूर राज्य में गोगोई पर कांग्रेस आलाकमान का भरोसा अंतिम वक्त तक उसी तरह बना रहा जिस तरह हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर था। राज्य में गोगोई के करीबी हेमंत बिस्व सर्मा ने वैसा ही विद्रोह किया जैसा हरियाणा में कांग्रेस के बड़े नेताओं ने हुड्डा के खिलाफ किया था। लेकिन गोगई पर हद से ज्यादा भरोसा कांग्रेस को भारी पड़ गया।

असम में महागठबंधन कराने के लिए नीतीश कुमार ने बिहार के अपने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को असम भेजा। प्रशांत किशोर ने गोगोई से मुलाकात की और सूत्रों के मुताबिक अजमल से गठबंधन की सलाह दी। लेकिन गोगोई ने यह कहकर इस सलाह को झिड़क दिया कि मैं 15 साल से सत्ता में हूं और मुझे किसी प्रशांत किशोर की जरूरत नहीं पड़ी और न ही पड़ेगी।

चुनाव विशेषज्ञ और विरोधी दल मानते हैं कि अजमल और बीजेपी का पर्दे के पीछे ‘गठबंधन’ है। यह बहुत कुछ वैसा ही था जैसे बिहार में ओवैसी की एंट्री पर हुआ था। बदरुद्दीन अजमल राज्य में मुस्लमों के बड़े नेता हैं और बांग्लादेश से आए मुस्लिम उनका वोट बैंक हैं। वह ज्यादा सीटों की मांग लेकर अंत समय तक अड़े रहे। नतीजा हुआ कि कांग्रेस का उनसे गठबंधन नहीं हो सका। जानकार बताते हैं कि अगर अजमल कांग्रेस के साथ होते तो आज तस्वीर बदल सकती थी।

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