नम्रता चौहान की कविता “ऑनलाइन शिक्षा मासूमो की परेशानी”
कमर का बोझ हुआ है हल्का
आँखों पर आकर ठहरा है
बच्चों के तन मन को देखो
मोबाईलो ने घेरा है
किससे अपना दर्द कहे
पीड़ित हैं इस दर्द से ये
जब सुनने वाला ही
हो गया अंधा बहरा है!!
गरीबों के बच्चे क्या
ऐसे पढ़ाई कर लेंगे
क्या ये मासूम बच्चे
रेडिएशन से लड़ लेंगे
क्या इन बच्चों की आँखों को
ईश्वर ने वरदान दिया
क्यूँ इन बच्चों को फिर
इतना कठिन फरमान दिया !!
कौनसी कीमत चुका कर
हम ये शिक्षा दिलवाएंगे
अपने कलेजे के टुकड़ो को
कितने रोग लगाएंगे
अनिद्रा, ब्रेन ट्यूमर जैसी
बीमारी बहुत हैं घातक
तनाव और नेत्र रोगों का
रेडिएशन ही है उत्पादक!!
मेरा कहना है बच्चों तक
अब किताबें पहुंचाई जाएं
जितनी जल्दी हो ये
ऑनलाइन शिक्षा रुकवाई जाए
वरना खतरनाक परिणाम
अब हमारे सामने आएगे
अपने बच्चों की जिंदगी से
हम खेल नहीं पाएंगे !!
वैसे भी ये शिक्षा
पैसे वालों तक ही सीमित है
जरा सोच कर देखो
इसकी कितनी जादा कीमत है
ऐसे तो ना जाने कितने
बच्चों के सपने बिखर जाएंगे
साधन ना होने पर
बच्चे शिक्षा ना ले पाएंगे !!
नम्रता चौहान
सीकर (राजस्थान )