गुजरात: अगर शहरी इलाको में चल गए केजरीवाल तो गड़बड़ा जायेगा बीजेपी का गणित
नई दिल्ली। गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी भी हाथ पैर मार रही है। हालांकि राज्य में आम आदमी पार्टी के संगठन के लिहाज से देखा जाए तो आप से किसी बड़े करिश्मे की उम्मीद नहीं है, हालांकि शहरी इलाको में आम आदमी पार्टी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को डेंट अवश्य दे सकती है।
चुनाव विश्लेषकों की माने तो आम आदमी पार्टी का संगठन सिर्फ शहरी इलाको तक ही सीमित है। गुजरात के ग्रामीण इलाको में अभी भी आम आदमी पार्टी का कोई संगठन नहीं है। फिलहाल ये कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी गुजरात के कुछ बड़े शहरो तक सिमट कर रह गई है। इनमे अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा जिलों सहित करीब एक दर्जन शहरी इलाके शामिल हैं।
ऐसे हालातो में सबसे ज़्यादा चिंता की लकीरें बीजेपी के माथे पर देखी जा सकती हैं। शहरी इलाके में भाजपा के वोट बैंक में आम आदमी पार्टी की सेंधमारी करीब 20-25 सीटों पर मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।
जानकारों की माने तो आम आदमी पार्टी का लक्ष्य वे मतदाता हैं जो अन्य राज्यों से आकर गुजरात में काम कर रहे हैं। खासकर मिलो और फैक्ट्रियों में काम करने वाले मतदाताओं पर आम आदमी पार्टी की नज़रें टिकी हैं।
जानकारों के मुताबिक, जिस मतदाता पर आम आदमी पार्टी चोट कर रही है वह मतदाता पिछले चुनावो में सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा रहा है। ऐसे में आम आदमी पार्टी जितने वोट जुटाएगी उनमे से एक बड़ा प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी के मतदाताओं का होगा।
पिछले चुनावो पर नज़र डालें तो कांग्रेस और भाजपा के बीच मतों की लड़ाई ग्रामीण इलाको में होती रही है। जबकि शहरी इलाको में भारतीय जनता पार्टी हमेशा कांग्रेस पर बढ़त लेती रही है। इसके अलावा कांग्रेस- भाजपा के बीच आदिवासी बाहुल्य इलाको में अपनी पैंठ बनाने की होड़ रही है।
फ़िलहाल एक बात तय है कि आम आदमी पार्टी जिस रणनीति के तहत चुनाव लड़ने का इरादा करके गुजरात के चुनावी मैदान में उतरी है, उस रणनीति से वह गुजरात में सत्ता के दरवाजे तक नहीं पहुंच सकती। यह अलग बात है कि वह राज्य में अपना प्रतिनिधित्व स्थापित करने के नाम पर शहरी इलाको में 2-3 सीटें जीत ले।
यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि गुजरात की राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियां पंजाब और दिल्ली से कहीं अलग हैं। यही कारण हैं कि आम आदमी पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में खुद को समेट लिया है। जहां तक गुजरात का सवाल है तो यहां सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए आम आदमी पार्टी के प्रयास तक तब पर्याप्त नहीं है जब तक गांव-देहात में उसका मजबूत संगठन खड़ा नहीं होता।
वहीँ इस बात को स्वीकार किया जा सकता है कि आम आदमी पार्टी शहरी इलाको में कुछ सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के लिए मुसीबत अवश्य बन सकती है, खासकर वे सीटें जो 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के बहुत कम मार्जिन से जीती थीं।
फिलहाल आम आदमी पार्टी की तरफ से राज्य में सत्ता बनाये जाने के दावे अवश्य किये जा रहे हैं लेकिन इन दावों में कितनी सच्चाई है यह तभी पता चलेगा जब चुनाव परिणामो का एलान होगा।