उफ़ ! तमिल पुलिस का वहशीपन

उफ़ ! तमिल पुलिस का वहशीपन

जयराज और फ़ेनिक्स की निर्मम हत्या के विरोध में 


( मोहम्मद ख़ुर्शीद अकरम सोज़ )
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मेरी आँखों के आगे
कुछ ख़ूनी मंज़र नाच रहे हैं !
एक वो मंज़र जिसमें जॉर्ज फ़्लायड को
गला घोंट कर अमेरिकी पुलिस ने मार दिया
और पस-मंज़र में उसकी चीख़ें,
“मैं साँस नहीं ले सकता हूँ !”
यह मंज़र जैसे ही कुछ धुंधलाता है
एक नया ख़ूनी मंज़र
फिर आँखों में छा जाता है
यह मंज़र है देश का अपने जहाँ पुलिस का
राक्षसी चेहरा दहशत का पर्याय बना
उफ़ ! तमिल पुलिस का वहशीपन
जिसने सारी मानवता को शर्मसार किया
जयराज और उसके बेटे फ़ेनिक्स पर
तीन दिनों तक भयानक अत्याचार किया
उनके जिस्म के हर हिस्से पर
बर्बरियत से वार किया
कुचल-कुचल कर , पीट-पीट कर
आख़िर उनको निर्ममता से मार दिया
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ख़ून से लथ-पथ उनकी लाशें
देश से अब यह पूछ रही हैं
आज़ादी के बाद भी अब तक
पुलिस हमारी अंग्रेज़ों की राह पे क्यूँ है ?
आये दिन क्यूँ निर्दोषों पर
यह धौंस जमाया करती है ?
क़ानून को अपनी जेब में रखकर
क्यूँ जनता को सताया करती है ?
क्यूँ मासूमों के ख़ून से अपनी
प्यास बुझाया करती है ?
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यह घटना कोई नहीं है ,
आये दिन यह होता है, क्यूँकि
इनको इनके वहशीपन की
कोई सज़ा कब मिलती है ?
इनके विरुद्ध अदालत में कब
हाकिम की क़लम भी खुलती है ?
पुलिस की इस बर्बरता का सबब
यह भी है कि देश की जनता
ऐसी वहशी घटनाओं पर
आँखे बंद किये बैठी
ख़ामोशी से तमाशा देखती है
उसको यह अहसास नहीं कि
उसकी यह ख़ामोशी ही तो
ज़ालिम को बढ़ावा देती है
जिसके ज़ुल्म की ज़द में कभी भी
कोई भी आ सकता है
इसलिए जयराज औ’ फ़ेनिक्स के हत्यारों को
फांसी की सज़ा दिलवाने के लिए
इस देश की सारी जनता को
अब खुलकर सामने आना है
और सत्याग्रह के मार्ग पे चल कर
इक इक़लाब फिर लाना है !
इक इक़लाब फिर लाना है !
जयराज औ’ फ़ेनिक्स के हत्यारों को,
फांसी की सज़ा दिलवाना है !
इक इक़लाब फिर लाना है !
इक इक़लाब फिर लाना है !

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