नोटबंदी पर सुप्रीमकोर्ट ने कहा, ‘हमे अपनी लक्ष्मण रेखा पता है लेकिन नोटबंदी की जांच ज़रूरी’

नोटबंदी पर सुप्रीमकोर्ट ने कहा, ‘हमे अपनी लक्ष्मण रेखा पता है लेकिन नोटबंदी की जांच ज़रूरी’

नई दिल्ली। 8 नवंबर 2016 को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा देश में लागू की गई नोट बंदी की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक से हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है।

,मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर ‘लक्ष्मण रेखा’ से अवगत है, लेकिन यह तय करने के लिए 2016 के नोटबंदी के फैसले की जांच करनी होगी कि क्या यह मुद्दा केवल “अकादमिक” अभ्यास बन गया है।

जस्टिस एस ए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब संविधान पीठ के सामने कोई मुद्दा उठता है, तो जवाब देना उसका कर्तव्य है। इस मामले की सुनवाई कर रही पांच जजों की पीठ में जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस वी रमासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं।

याद दिला दें कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान 8 नवंबर 2016 को अचानक ही पांच सौ और एक हज़ार के नोट को चलन से बाहर कर दिया गया था। रात 8 बजे नोट बंदी का एलान होने के साथ ही कई शहरो में एटीएम पर लंबी लाइने लग गईं थी। वहीँ करीब एक सप्ताह तक बैंको और एटीएम पर लोगों की लंबी लंबी कतारें देखी गयीं।

इस मामले पर अपनी बात रखते हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा कि जब तक नोटबंदी से संबंधित अधिनियम को उचित परिप्रेक्ष्य में चुनौती नहीं दी जाती, तब तक यह मुद्दा अनिवार्य रूप से अकादमिक ही रहेगा।

उन्होंने तर्क दिया कि 1978 में बड़े मूल्य वाले बैंक नोटों को लेकर नोटबंदी अधिनियम पारित किया गया था, ताकि कुछ बड़े नोटों का जनहित में नोटबंदी की जा सके और अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक धन के अवैध हस्तांतरण पर लगाम लगाई जा सके।

वहीँ केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का समय ‘‘बर्बाद’’ नहीं करना चाहिए। तुषार मेहता की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि वह ‘संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी’ जैसे शब्दों से हैरान हैं, क्योंकि पिछली बेंच ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान बेंच के समक्ष रखा जाना चाहिए।

इस पर संविधान पीठ ने कहा, ‘‘इस पहलू का जवाब देने के लिए कि यह कवायद अकादमिक है या नहीं या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है, हमें इसकी सुनवाई करनी होगी। सरकार की नीति और उसकी बुद्धिमता, इस मामले का एक पहलू है।’’

वहीँ एक अन्य पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है। उन्होंने कहा कि इस तरह की नोटबंदी के लिए संसद के एक अलग एक्ट की आवश्यकता है।

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