सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक से तलब किये नोटबंदी के फैसले से संबंधित दस्तावेज
नई दिल्ली। 8 नवंबर 2016 को देश में लागू की गई पांच सौ और एक हज़ार रूपये की नोट बंदी को लेकर सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को नोट बंदी लागू करने के फैसले से संबंधित दस्तावेज तलब किये हैं।
केंद्र के 2016 में नोटबंदी के फैसले को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए, न्यायमूर्ति एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि, वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम और श्याम दीवान सहित याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनीं।
शीर्ष अदालत ने पक्षकारों को 10 दिसंबर तक लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा, ‘‘मामले को सुना गया। फैसला सुरक्षित रखा जाता है। भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के वकीलों को संबंधित रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया जाता है।’’ अटॉर्नी जनरल ने पीठ के समक्ष कहा कि वह सीलबंद लिफाफे में प्रासंगिक रिकॉर्ड जमा करेंगे।
इससे पहले मंगलवार को शीर्ष अदालत ने कहा था कि आर्थिक नीति के मामलों में न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे का मतलब यह नहीं है कि अदालत हाथ जोड़कर बैठ जाएगी, यह देखते हुए कि सरकार जिस तरह से निर्णय लेती है, उसकी हमेशा जांच की जा सकती है।
500 रुपये और 1000 रुपये के करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने और नोट बंदी लागू करने को “गहरा त्रुटिपूर्ण” बताते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने तर्क दिया था कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को शुरू नहीं कर सकती है, जो केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है।
बता दें कि केंद्र ने हाल ही में सुप्रीमकोर्ट में दिए एक हलफनामे में कहा था कि नोट बंदी का फैसला एक “सुविचारित” निर्णय था और यह फैसला नकली करेंसी, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था।