सीएए पर तुरंत रोक से सुप्रीमकोर्ट का इंकार, संविधान पीठ करेगी सुनवाई, केंद्र से मांगा जवाब

सीएए पर तुरंत रोक से सुप्रीमकोर्ट का इंकार, संविधान पीठ करेगी सुनवाई, केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर दाखिल 140 से अधिक याचिकाओं को सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ के पास भेजने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को 4 हफ्ते का वक्त दिया है।

अदालत ने कहा कि सरकार को इन सभी याचिकाओं पर चार हफ्तों में जवाब देना होगा। जबकि कोर्ट ने सीएए पर अंतरिम रोक पर कोई आदेश जारी नहीं किया। शीर्ष अदालत ने सभी हाई कोर्ट को सीएए से जुड़े मामले की सुनवाई नहीं करने को कहा है।

चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने मामले की सुनवाई की। बता दें कि सीएए की संवैधानिक वैधता को इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग, पीस पार्टी, असम गण परिषद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, जमायत उलेमा ए हिन्द, जयराम रमेश, महुआ मोइत्रा, देव मुखर्जी, असददुद्दीन ओवेसी, तहसीन पूनावाला व केरल सरकार सहित अन्य ने चुनौती दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाओं को सुनने के लिए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित की जाएगी। चीफ जस्टिस ने कहा है कि पांच जजों की बेंच इस मामले पर सुनवाई करेगी कि इसपर स्टे लगाना है या नहीं। अब इस मसले को चार हफ्ते बाद सुना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र का पक्ष सुने बिना सीएए पर कोई स्थगन आदेश जारी नहीं करेगा। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा है कि हम अभी कोई भी आदेश जारी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि काफी याचिकाओं को सुनना बाकी है।

सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन एक्ट पर दायर याचिकाओं को अलग-अलग कैटेगरी में बांट दिया है। इसके तहत असम, नॉर्थईस्ट के मसले पर अलग सुनवाई की जाएगी। जबकि, उत्तर प्रदेश में जो सीएए की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है उसको लेकर भी अलग से सुनवाई की जाएगी।

सीजेआई बोबड़े ने कहा कि सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को दो वर्गों में विभाजित करनी होगी- एक त्रिपुरा और असम के बारे में और दूसरी सामान्य याचिकाएं।

अदालत ने सभी याचिकाओं की लिस्ट जोन के हिसाब से मांगी है, जो भी बाकी याचिकाएं हैं उनपर केंद्र को नोटिस जारी किया जाएगा। सीजेआई ने कहा कि असम और त्रिपुरा मामलों को अलग-अलग करने के लिए एक साथ क्लब किया जाएगा। कोर्ट ने सिब्बल से इन मामलों की पहचान करने में सहायता करने को कहा।

सुनवाई के दौरान कानून को चुनौती देने वाले पक्ष की दलील रखते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जबतक इस मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तबतक इस को निलंबित कर दिया जाना चाहिए। सिब्बल ने संविधान पीठ के गठन की मांग की। सिब्बल ने कहा कि नागरिकता देकर वापस नहीं ली जा सकती है। उन्होंने दलील दी कि इसपर कोई अंतरिम आदेश जारी होना चाहिए। सिब्बल ने कहा कि हम कानून पर रोक की मांग नहीं कर रहे हैं बल्कि इसे दो महीने के लिए निलंबित कर दें।

केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सरकार को 143 याचिकाओं में से लगभग 60 दलीलों की प्रतियां दी गई हैं। उन्होंने कहा कि यह उन दलीलों का जवाब देने का समय चाहता है जो इस पर नहीं दी गई हैं। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इन याचिकाओं पर जवाब देने के लिए सरकार दो हफ्तों का वक्त चाहिए।

सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), कांग्रेस नेता जयराम रमेश, राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर की गई याचिकाएं भी शामिल हैं। बाद में दायर याचिकाओं में 10 जनवरी से लागू होने वाले कानून के संचालन पर भी रोक लगाने की मांग की गई है। दरअसल, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को मंजूरी दी थी जिससे यह कानून बन गया था।

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