नागरिकता विधेयक पर संसद परिसर में प्रदर्शन, पूर्वोत्तर राज्यों में आज बंद

नागरिकता विधेयक पर संसद परिसर में प्रदर्शन, पूर्वोत्तर राज्यों में आज बंद

नई दिल्ली। नागरिकता (संशोधन) विधेयक सोमवार को भले ही लोकसभा में पास हो गया हो लेकिन अभी राज्यसभा में सरकार की अग्नि परीक्षा बाकी है। वहीँ इस विधेयक को लेकर जहाँ वामदलों के सदस्यों ने संसद परिसर में प्रदर्शन किया तो दूसरी तरफ पूर्वोत्तर के राज्यों में आज भारत बंद का आह्वान किया गया है।

इससे पहले कल भारी हंगामे के बीच लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पास हो गया था। लोकसभा में इस विधेयक के विरोध में 80 तो पक्ष में 311 वोट पड़े।

आज नागरिकता (संशोधन) विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों के छात्र संगठनों की तरफ से संयुक्त रूप से बुलाया गया 11 घंटे का बंद सुबह पांच बजे शुरू हो गया है। नागरिकता (संशोधन) विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध प्रदर्शन जारी है और कुछ जगह आगजनी की ख़बरें हैं।

असम में इस विधेयक (सीएबी) के खिलाफ कई तरह से विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं जिनमें नग्न होकर प्रदर्शन करना और तलवार लेकर प्रदर्शन करना भी शामिल है। एसएफआई, डीवाईएफआई, एआईडीडब्ल्यूए, एसआईएसएफ, आइसा, इप्टा जैसे 16 संगठनों ने संयुक्त बयान में विधेयक को रद्द करने की मांग की और मंगलवार को सुबह पांच बजे से 12 घंटे का असम बंद का आह्वान किया। हालांकि नगालैंड में जारी होर्नबिल फेस्टिवल की वजह से उसे बंद के दायरे से छूट दी गई है।

इस बंद के आह्वान के मद्देनजर असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। गृह मंत्री अमित शाह के मणिपुर को इनर लाइन परमिट (आईएलपी) के दायरे में लाने की बात कहने के बाद राज्य में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे द मणिपुर पीपल अगेंस्ट कैब (मैनपैक) ने सोमवार के अपने बंद को स्थगित करने की घोषणा की।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वह किसी भी कीमत पर विभाजनकारी विधेयक का विरोध करेंगी और देश के किसी भी नागरिक का दर्जा घटाकर शरणार्थी का करने नहीं दिया जाएगा।

कल लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच जमकर बहस हुई। विपक्ष इस विधेयक को भारतीय संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ बता रहा है। विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक देश के अल्पसंख्यको के खिलाफ एक बड़ी साजिश है।

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि यह विधेयक संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करता है। नागरिकता संशोधन विधेयक पर लोकसभा में चर्चा में भाग लेते हुए मनीष तिवारी ने कहा कि भारत के संविधान में शरण देने के लिए मजहब को आधार नहीं बनाया गया है।

उन्होंने कहा कि कोई भी शरणार्थी वह चाहे जिस मजहब का हो, यदि भारत से शरण (मदद) मांगता है तो बिना उसका मजहब देखे हम उसे शरण दें। मगर इस विधेयक के प्रावधान में यहां विरोधाभास है। मनीष तिवारी ने कहा कि यह विधेयक भारत के संविधान की परंपरा, मूलभूत अवधारणा की अवहेलना करता है।

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TeamDigital