मोरबी हादसा: गुजरात हाईकोर्ट की सरकार को फटकार, पूछा ‘किसी एक पर इतनी मेहरबानी क्यों”
अहमदाबाद। मोरबी पुल हादसे मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने पूरी घटना पर सरकार से जबाव तलब किया था। मंगलवार को हाईकोर्ट ने मोरबी पुल के रख रखाब के लिए नियमो को ताक पर रखकर दिए गए ठेके पर सवाल उठाये। कोर्ट ने मोरबी नगर निकाय से पूछा कि बिना टेंडर आमंत्रित किए ओरेवा ग्रुप को ठेका क्यों दिया गया ?
कोर्ट ने कहा कि पुल हादसे के बाद सरकार ने अपेक्षित कदम उठाये लेकिन पुल के मेंटिनेंस के लिए नगर निकाय और ठेका लेने वाली कंपनी के बीच मात्र डेढ़ पेज का एग्रीमेंट हुआ, इसके लिए कोई टेंडर जारी नहीं हुआ।
अदालत ने कहा, “राज्य ने गुजरात नगर पालिका अधिनियम की धारा 263 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया, क्योंकि प्रथम दृष्टया नगरपालिका ने चूक की है, जिसके कारण एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, जिसके परिणामस्वरूप 135 निर्दोष व्यक्तियों की मौत हुई।”
पीठ ने यह भी कहा कि 2017 में अनुबंध समाप्त होने के बावजूद ओरेवा समूह द्वारा पुल का रखरखाव जारी रखा गया था। नोटिस दिए जाने के बावजूद मोरबी नगर पालिका की अदालत में अनुपस्थिति पर, अदालत ने टिप्पणी की कि वे “समझदारी से काम कर रहे हैं”। यह भी कहा गया है कि, “नगरपालिका, एक सरकारी निकाय, ने चूक की है, जिसने अंततः 135 लोगों की जान ले ली।”
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि किस आधार पर रुचि की अभिव्यक्ति के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और बिना निविदा निकाले ही किसी व्यक्ति विशेष पर कृपा क्यों की गई।
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जानना चाहा कि क्या राज्य सरकार ने अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (ओरेवा समूह) के साथ वर्ष 2008 के MOU और वर्ष 2022 के समझौते में फिटनेस प्रमाणपत्र के संबंध में किसी तरह की शर्त लगाई थी, यदि ऐसा था तो इसे करने के लिए सक्षम प्राधिकार कौन था?
मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री ने कहा, यह समझौता सवा पन्ने का है जिसमें कोई शर्त नहीं है। यह समझौता एक सहमति के रूप में है। राज्य सरकार की यह उदारता 10 साल के लिए है, कोई निविदा नहीं निकाली गई, किसी तरह की रुचि की अभिव्यक्ति नहीं है।
अदालत ने पूछा, 15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बाद राज्य सरकार और मोरबी नगरपालिका द्वारा निविदा निकालने के लिए कौन से कदम उठाये गये? क्यों अभिव्यक्ति की रुचि के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और कैसे बिना निविदा निकाले किसी व्यक्ति विशेष पर कृपा की गई।
कोर्ट ने कहा कि 15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बावजूद अजंता (ओरेवा समूह) को पुल के रखरखाव और प्रबंधन का काम बिना किसी समझौते के जारी रखने के लिए कहा गया. कंपनी के साथ वर्ष 2008 में एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे जिसकी अवधि वर्ष 2017 में समाप्त हुई। कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या यह अवधि समाप्त होने के बाद संचालन और रखरखाव के उद्देश्य से निविदा निकालने के लिए स्थानीय प्राधिकारियों ने कोई कदम उठाए ?
गौरतलब है कि गुजरात के मोरबी जिले में मच्छु नदी पर बना ब्रिटिश काल का पुल 30 अक्टूबर को ढह गया था और हादसे में महिलाओं, बच्चों सहित 135 लोगों की जान चली गई थी।