काश सरकार ने मानी होती मनमोहन और राहुल की बात, तो बच जाती इकॉनोमी और लोगों की जान
नई दिल्ली(राजा ज़ैद)। देश में कोरोना महामारी से न सिर्फ आम जनजीवन अस्त व्यस्त हो चुका है बल्कि बड़ी तादाद में लोगों की जान भी गई और देश की अर्थ व्यवस्था भी ध्वस्त हो गई। नोट बंदी की मार झेल चुका ये देश अब कोरोना महामारी की कीमत चुका रहा है।
कोरोना भले ही दुनिया के सभी देशो की अर्थव्यवस्था और ज़िंदगियों के लिए काल साबित हुआ है लेकिन आज देश जहां खड़ा है उसके लिए हम सिर्फ महामारी को ज़िम्मेदार ठहराकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। हमे आज नहीं तो कल देश को जबाव देना पड़ेगा।
भारत में कोरोना महामारी के बड़ा रूप धारण करने से काफी पहले ही पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भविष्य में पैदा होने वाली परिस्थियों को लेकर सरकार को आगाह किया था लेकिन कोरोना को लेकर राहुल की चेतावनी को गंभीरता से लेने की जगह बीजेपी के कई ज़िम्मेदार नेताओं ने उनका उपहास बनाया।
यह वह वक़्त था, जब हमारे पास कोरोना से लड़ने के लिए तैयारियों का पर्याप्त समय था। यदि हम उसी समय बड़े फैसले लेते तो शायद आज स्थिति बदली हुई होती और देश में कोरोना महामारी अफरा तफरी और बड़ी तादाद में मौतों का कारण नहीं बनती।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा कोरोना महामारी को लेकर सरकार को आगाह किया गया लेकिन इसके बावजूद सरकार ने अंतराष्ट्रीय फ्लाइटों पर तत्काल रोक नहीं लगाई और न ही एयरपोर्ट पर कोरोना जांच की शुरुआत की।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने को लेकर भी सरकार को आगाह किया था लेकिन इस पर भी सरकार नहीं जाएगी और आज जो स्थिति है वो हम सब के सामने है।
वहीँ कोरोना महामारी के बीच पिछले वर्ष मार्च में देश में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने सरकार से अपील की थी कि वह गरीब परिवारों, छोटे कामगारों और छोटे तथा माध्यम कारोबारियों को तत्काल मदद उपलब्ध कराये जिससे वे अपने कर्मचारियों को लॉकडाउन के दौरान वेतन दे सकें।
इतना ही नहीं डा मनमोहन सिंह ने सरकार के उस फैसले से भी असहमति जताई थी जिसमे सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से सरकार पर पड़े आर्थिक बोझ को कारण बताते हुए 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और 61 लाख पेंशनभोगियों को दिए जाने वाला महंगाई भत्ता रोकने का फैसला किया था।
एक साल में भी तैयारी नहीं:
पिछले वर्ष कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन झेल चुके देश में एक साल के अंदर कोरोना से लड़ाई को लेकर क्या तैयारियां की गईं ये आज ज़मीन पर दिखाई पड़ रही हैं। कोरोना मरीजों की तादाद बढ़ने के साथ साथ सरकारी इंतजामों की पोल खुलने लगी है। कहीं ऑक्सीजन नहीं है तो कहीं वेंटिलेटर या बैड उपलब्ध नहीं हैं।
ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर हमने एक बर्ष में कोरोना के खिलाफ क्या तैयारियां कीं? जहां तक ऑक्सीजन की शॉर्टेज की बात है तो स्वास्थ्य को लेकर बनी संसदीय समिति ने भी सरकार को भविष्य के बारे में आगाह किया था।
नवंबर 2020 में संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को सुझाव दिया था कि देश में ऑक्सीजन उत्पादन और ओक्सिजन का स्टोरेज बढ़ाने की आवश्यकता है लेकिन आज जो देश में हालात हैं, उनसे पता चलता है कि सरकार ने संसदीय समिति की रिपोर्ट पर भी गंभीरता नहीं दिखाई है।
इतना ही नहीं संसद की एक स्थाई समिति (स्टेंडिंग कमेटी) ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को सुझाव दिया था कि अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या और ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाया जाए।
स्वास्थ्य संबंधी संसदीय समिति ने सरकार से कहा था कि कोरोना को ध्यान में रखकर देश के सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारने के लिए काम शुरू किया जाए। समिति ने सरकार को भेजे अपने सुझाव में कहा कि अभी भी सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटरों और बैड की संख्या अपर्याप्त है।
समिति ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान हम यह अनुभव कर चुके हैं कि सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं को विस्तार की आवश्यकता है। भविष्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर ऑक्सीजन भंडारण और उत्पादन की क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिए।