पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा ‘देश में खतरनाक प्रक्रिया चल रही है’
नई दिल्ली। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भारतीय संस्थानों को लेकर चिंता ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा कि भारत की संस्थाएं खतरे में हैं और देश में खतरनाक प्रक्रियाएं चल रही हैं।
हामिद अंसारी का यह बयान सुप्रीमकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्य सभा के लिए नॉमिनेट किये जाने के बाद आया है। माना जा रहा है कि पूर्व उपराष्ट्रपति देश की संवैधानिक संस्थाओं और न्याय पालिकाओं को लेकर यह बयान दिया है।
देश की संस्थाओं को लेकर पूर्व उप राष्ट्रपति ने कहा कि ‘जिन सिद्धांतों पर संविधान की प्रस्तावना तैयार की गई उसकी अवहेलना की जा रही है। देश में एक बहुत खतरनाक प्रक्रिया चल रही है, इसमें काफी कुतर्क शामिल है इसलिए अधिकतर नागरिकों द्वारा इसे समझ पाना आसान नहीं है।’
गौरतलब है कि पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को सरकार द्वारा राज्य सभा के लिए नामित किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जोसफ कुरियन ने भी आश्चर्य ज़ाहिर करते हुए इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के मूल्यों से समझौता बताया है।
उन्होंने मंगलवार को कहा कि उनके इस मनोनयन ने तय रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है। उन्होंने कहा कि देश मुख्य रूप से स्वतंत्र न्यायपालिका के कारण मूल संरचनाओं और संवैधानिक मूल्यों पर टिका है।
पूर्व जस्टिस कुरियन ने कहा कि “मुझे आश्चर्य है कि जस्टिस रंजन गोगोई जिन्होंने एक बार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए दृढ़ विश्वास और साहस का परिचय दिया था, उन्होंने कैसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता से समझौता किया है।”
जस्टिस जोसफ ने कहा, “इस एलाइनमेंट को मजबूत करने और न्यायपालिका को पूरी तरह से स्वतंत्र बनाने के लिए 1993 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत की गई थी। मैं जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर के साथ एक अभूतपूर्व कदम के साथ सार्वजनिक रूप से देश को यह बताने के लिए सामने आया था कि इस आधार पर खतरा है और अब मुझे लगता है कि न्यायपालिका को खतरा बड़े स्तर पर है।”
उन्होंने कहा कि यही कारण था कि मैंने अपने रिटायरमेंट के बाद कोई भी पद नहीं लेने का फैसला किया था। उन्होंने कहा, “भारत के एक पूर्व चीफ जस्टिस द्वारा राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनयन की स्वीकृति ने तय रूप से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है, जो कि भारत के संविधान की बुनियादी संरचनाओं में से एक है।”