झारखंड की राह पर जा सकती है बिहार की सियासत, कांग्रेस नेताओं से मिल सकते हैं पीके

नई दिल्ली (राजाज़ैद)। झारखंड में भारतीय जनता पार्टी की हार के बाद भविष्य के विधानसभा चुनावो को लेकर जहाँ विपक्ष अभी से बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की रणनीति के तहत काम कर रहा है। वहीँ बिहार की राजनीति भी झारखंड की राह पर चलती दिख रही है।
बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने सीटों के बंटवारे को लेकर बयान देकर फिलहाल यह साफ़ कर दिया है कि यदि बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश का साथ चाहती है तो उसे जनता दल यूनाइटेड को ज़्यादा सीटें देनी होंगी।
वहीँ सूत्रों की माने तो संसद में नागरिकता कानून पर मोदी सरकार का समर्थन करने के बाद जनता दल यूनाइटेड को अल्पसंख्यक मतदाताओं के पार्टी से दूर जाने की चिंता सताने लगी है। हालाँकि डेमेज कण्ट्रोल के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि यदि नागरिकता कानून को एनआरसी से जोड़ा जाता है तो जनता दल यूनाइटेड मोदी सरकार का साथ नहीं देगा।
कहा कुछ भी जाए लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि बिहार में अल्पसंख्यको के बीच एक साफ़ सन्देश जा चूका है कि नीतीश कुमार ने नागरिकता कानून पर सरकार का समर्थन कर बीजेपी का साथ दिया है और आगामी विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा अल्पसंख्यक मतदाताओं में सिर चढ़कर बोलेगा।
सूत्रों की माने तो नीतीश कुमार और उनके करीबियों के बीच यह चर्चा भी हुई है कि यदि विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का साथ छोड़ दिया जाए तो जनता दल यूनाइटेड के पास कौन कौन से विकल्प हैं। सूत्रों के मुताबिक एक विकल्प राजद, कांग्रेस के महागठबंधन में वापसी का है तो दूसरा विकल्प महागठबंधन को तोड़कर उसमे से कांग्रेस को अलग कर गठबंधन करने का है।
वहीँ सूत्रों का कहना है कि जनता दल यूनाइटेड दूसरे ऑप्शन पर ठहर सकता है। वह राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन में शामिल होने की जगह महागठबंधन में से कांग्रेस को तोड़कर नया मोर्चा बनाने के विकल्प पर काम कर सकता है।
बिहार में पिछले कुछ महीनो में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं से अल्पसंख्यको के दिलो में नीतीश कुमार की जगह कम हुई है और अब नागरिकता कानून को लेकर संसद में मोदी सरकार का समर्थन किये जाने के बाद नीतीश कुमार अल्पसंख्यक मतदाताओं के सहारे चुनावी नैया पार करने की स्थति में नहीं है।
वहीँ किशनगंज में आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) नेता असदुद्दीन ओवैसी के भाषण की एक लाइन पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि ओवैसी नीतीश कुमार को साथ आने का प्रस्ताव दे रहे हैं। ओवैसी ने अपने भाषण में कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल किया है, उन्हें देशहित में बीजेपी का साथ छोड़ देना चाहिए, यदि वे ऐसा करते हैं तो हम उनके साथ आने को तैयार हैं। ओवैसी के भाषण से साफ़ है कि वे समझ चुके हैं कि आगामी चुनाव में नीतीश कुमार को सीएम बनने के लिए अल्पसंख्यक मतो की दरकार है।
वहीँ जनता दल यूनाइटेड के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के बयान से भी साफ़ है कि पार्टी के अंदर नागरिकता कानून को लेकर एक राय नहीं है। प्रशांत किशोर ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि केवल नीतीश कुमार ही बता सकते हैं कि जनता दल यूनाइटेड ने किन कारणों से नागरिकता कानून पर संसद में मोदी सरकार का साथ दिया।
गौरतलब है कि बिहार में 2020 के नवंबर दिसंबर तक विधानसभा चुनाव होने हैं। फिलहाल इतना तय है कि बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजनैतिक समीकरणों का बदलना तय हो चूका है। फिर चाहे नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़ें और महागठबंधन में अपनी वापसी करें या वे महागठबंधन को तोड़कर कांग्रेस के साथ कोई नई साझेदारी करें।