बबिता जोसफ की कविता: हो गया बेबस बहुत आदमी
छोड़ दे दर्प सभी ,
जाग भी अब ए गिरी
पिघल जाए दिल तेरा अब सही
बह चले तेरे अश्रुओं से एक नदी
हो गया बेबस बहुत अब आदमी
मर के भी न मिल रही दो गज जमीं
छिप गईं रेत में सब शफरियाँ,
सिसक रही कीच में कुमुदनियाँ।
मर गईं है अब सब इंद्रियां,
उगल रही जहर चंद अशर्फियाँ।
बिक रही हवा,बिक रहा नीर भी,
मिट रही आस , घुट रही सांस भी,
हो गया है बेबस बहुत अब आदमी,
मर के भी न मिल रही दो गज जमीं
बह चले तेरे अश्रुओं से एक नदी
छोड़ दे दर्प सभी ,
जाग भी अब ए गिरी।
—बबिता जोसफ
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