‘मेनका को राजनीति में लाना चाहती थीं इंदिरा’
नई दिल्ली । एक किताब में दावा किया गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने पुत्र संजय के निधन होने के बाद चाहती थीं कि उनकी छोटी बहू मेनका गांधी राजनीति में उनकी मदद करे, लेकिन मेनका का झुकाव ऐसे लोगों की तरफ था जो राजीव गांधी के बड़े विरोधी थे।
इंदिरा गांधी के निजी चिकित्सक केपी माथुर ने अपनी नई किताब ‘द अनसीन इंदिरा गांधी’ में इस परिवार के बारे में कई अनजानी बातों पर चर्चा की है। माथुर ने किताब में लिखा है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने पुत्र संजय के निधन होने के बाद चाहती थीं कि उनकी छोटी बहू मेनका गांधी राजनीति में उनकी मदद करे, लेकिन मेनका ऐसे लोगों के साथ थीं, जो राजीव के विरोधी थे। जिस वजह से इंदिरा मेनका को राजनीति में नहीं ला सकीं। किताब की प्रस्तावना प्रियंका गांधी वाड्रा ने लिखी है।
किताब के कुछ और अंश
-संजय विचार मंच के लखनऊ सम्मेलन के दौरान इंदिरा विदेश दौरे पर थीं। उन्होंने मेनका को संदेश भेजा था कि वह इस सम्मेलन को संबोधित ह्यन करें, लेकिन मेनका नहीं मानीं।
-राजीव व सोनिया के विवाह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री और सोनिया के बीच तालमेल स्थापित होते समय नहीं लगा। सोनिया ने जल्द ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
– इंदिरा रविवार व छुट्टी के दिनों में किताबें पढ़तीं। उन्हें जीवनी और लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाएं पसंद थीं। वह अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों में आने वाले क्रॉसवर्ड पजल भी हल करती थीं। कई बार दोपहर के भोजन के बाद वह ताश खेलती थीं।
-पोखरण परमाणु परीक्षण के दिन इंदिरा बेचैन थीं। उनका पूरा ध्यान उनके बिस्तर के पास मेज पर रखे टेलीफोन पर था। वहां रखी एक नोटबुक पर गायत्री मंत्र लिखा था।
20 वर्ष तक साथ रहे माथुर
माथुर करीब 20 साल तक इंदिरा गांधी के चिकित्सक रहे। 1984 में उनके निधन तक वे रोज सुबह इंदिरा से मिलते थे। 151 पन्नों की किताब में दावा किया गया है कि 1966 में पीएम बनने के बाद इंदिरा बहुत तनाव और अनिश्चितता की स्थिति में रहती थीं।
आपातकाल से संतुष्ट नहीं थी इंदिरा
प्रधानमंत्री और संजय के खिलाफ गुस्सा बढ़ता गया और इंदिरा ने लोगों का भरोसा और सहानुभूति खो दी। जो हालात थे, उनसे प्रधानमंत्री भी संतुष्ट नहीं थीं, लेकिन उन्होंने किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया। शायद वह अपने छोटे पुत्र के प्रति बहुत ज्यादा प्यार की शिकार हो गईं।