प.बंगाल: कांग्रेस और लेफ्ट के सामने चुनौती ममता को हराने की नहीं, बीजेपी को रोकने की भी है

नई दिल्ली (राजाज़ैद)। पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव से कई महीने पहले ही बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंकना शुरू कर दिया है। चुनाव के एलान से पहले ही पार्टी के कद्दावर नेताओं के पश्चिम बंगाल दौरे ये बताने के लिए काफी हैं कि बीजेपी पश्चिम बंगाल की सत्ता तक पहुंचने के लिए हर तिकड़म लगाएगी।
हालांकि ज़मीनी हकीकत अभी भी बीजेपी के लिए राहत देने वाली नहीं हैं। शहरी इलाको में बीजेपी ज़रूर अपनी जड़ें जमा चुकी हैं लेकिन पश्चिम बंगाल के उस कौने कौने में बीजेपी का अभी नाम लेने वाला नहीं हैं जिसके बूते वामपंथियों ने लगातार कई चुनाव जीते और वामपंथियों के बाद ममता ने उसी रणनीति से पश्चिम बंगाल की सत्ता पर कब्ज़ा जमाया।
संक्षिप्त में कहा जाए तो बीजेपी अब ममता बनर्जी को टक्कर देने की स्थति में पहुंच गई है लेकिन उसकी पूरी उम्मीदें अभी भी सेकुलर मतों के विभाजन पर टिकी हैं। बीजेपी के रणनीतिकार यह मानकर चल रहे हैं कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में लेफ्ट व कांग्रेस के गठजोड़ की मौजूदगी से सेकुलर मतों के विभाजन का लाभ बीजेपी को मिलेगा।
294 सीटों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में बीजेपी के पास 16 विधायक हैं। जबकि राज्य में सरकार बनाने के लिए 148 विधायकों की आवश्यकता होगी। ऐसे में 16 सीटों से 148 सीटों तक पहुंचना बीजेपी के लिए लोहे के चने चबाने से कम नहीं होगा। हां, यह अलग बात है कि इस चुनाव में बीजेपी की सीटों में करिश्माई तौर पर बढ़ोत्तरी हो सकती हैं।
लेफ्ट और कांग्रेस पर भी बीजेपी को रोकने की ज़िम्मेदारी:
पश्चिम बंगाल में वामपंथियों और कांग्रेस के बीच गठबंधन लगभग तय सा है। दोनों दल मिलकर राज्य की सभी 294 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे। ऐसे में कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं। कांग्रेस और लेफ्ट के सामने ममता को हराना चुनौती नहीं है बल्कि बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना भी है।
कांग्रेस सूत्रों की माने तो पश्चिम बंगाल में फ़िलहाल पार्टी का लक्ष्य सिर्फ किंग मेकर बनने तक का ही है। यदि बीजेपी की सीटें बढ़ती हैं और तृणमूल कांग्रेस बहुमत से दूर रहती है तो बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए राज्य में गठबंधन सरकार बनाई जा सकती है।
सूत्रों ने कहा कि चूंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से रिश्ते मधुर रहे हैं, इसलिए संभव है कि ममता बनर्जी चुनावो को लेकर अभी से सोनिया के सीधे संपर्क में हों।
सूत्रों ने कहा कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के सामने अपना अस्तित्व बनाये रखने की भी चुनौती है। इसलिए उसे पिछले चुनाव जितना या उससे बेहतर प्रदर्शन करना होगा। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी और ममता बनर्जी के बीच दशकों पुराना छत्तीस का आंकड़ा है। यही कारण हैं कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की जगह वामपंथियों से गठबंधन करना कांग्रेस की मज़बूरी है।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के प्रभारी जितिन प्रसाद ने हाल ही में कहा कि राज्य में अधिकांश कांग्रेस नेताओं की राय है कि वाम दलों से गठबंधन किया जाए। यह पूछे जाने पर कि लेफ्ट और कांग्रेस के तृणमूल कांग्रेस से गठबंधन की भी चर्चाएं चल रही हैं? इसके जबाव में जितिन प्रसाद ने कहा कि ऐसी चर्चा जो कर रहे हैं वो ही लोग बताएंगे। वाम दलों के साथ हमारा जमीन पर संयुक्त कार्यक्रम चल रहा है और प्रदेश सरकार का विरोध किया जा रहा है। फिर ऐसी बात कहां से आ गई?