ये तीन मुद्दे लिखेंगे शिवराज सरकार के अंत की आखिरी दास्तां

भोपाल ब्यूरो। मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों के चुनाव से पहले बीजेपी के लिए तीन मुद्दे मुसीबत बन गए हैं और ये दो मुद्दे मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के अंत की दास्तां लिख सकते हैं।
अब तक बीजेपी यह कह कर शोर मचाती रही कि कमलनाथ सरकार के दौरान किसानो की क़र्ज़ माफ़ी नही हुई लेकिन विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के जबाव में खुद राज्य सरकार के मंत्री लिखित में दे चुके हैं कि कमलनाथ सरकार के 15 महीनो के कार्यकाल के दौरान करीब 27 लाख किसानो का क़र्ज़ माफ़ किया।
उपचुनाव में यह मुद्दा जोर पकड़ने वाले है। राज्य में किसान पहले से ही शिवराज सरकार से नाराज़ चल रहे हैं। ऐसे में किसान क़र्ज़ माफ़ी पर बीजेपी का झूठ उजागर होने के बाद किसानो के बीच शिवराज सरकार की पैंठ कम हुई है और भरोसा घटा है।
मध्य प्रदेश की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव होना है, उन इलाको में अभी लाखो किसान ऐसे हैं जिनके नाम क़र्ज़ माफ़ी के लिए रजिस्टर हो चुके थे लेकिन इस बीच कमलनाथ सरकार जाने के कारण वे क़र्ज़ माफ़ी से वंचित रह गए और राज्य में नई बनी शिवराज सरकार ने क़र्ज़ माफ़ी को लेकर कोई कदम नहीं उठाया। इसका बहुत बड़ा असर उपचुनाव में देखने को मिलेगा।
वहीँ दूसरा अहम मुद्दा चयनित और अतिथि विद्वान् शिक्षकों का है। राज्य में शिक्षक भर्ती- 2018 वर्ग 01, वर्ग 02 की प्रक्रिया काफी समय से लटकी है। इसके लिए कई शिक्षक संघ पिछले काफी समय से संघर्ष कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में करीब 76 हज़ार अतिथि शिक्षक हैं।
शिवराज सरकार से शिक्षकों की नाराज़गी का असर उपचुनाव वाली 28 सीटों पर दिखाना तय माना जा रहा है। वहीँ दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अतिथि विद्वान शिक्षकों के ज़ख्मो पर मरहम लगाते हुए एलान किया है कि राज्य में कांग्रेस सरकार की वापसी होने पर पहली कैबिनेट बैठक में ही अतिथि शिक्षकों को नियमित करने का फैसला लिया जाएगा।
वहीँ शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया को लेकर कमलनाथ ने कहा कि “प्रदेश में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को बीच में रोक देने के कारण बड़ी संख्या में उच्च माध्यमिक तथा माध्यमिक चयनित शिक्षक परेशान होकर दर-दर भटक रहे हैं। बेरोजगारी के कारण वे इस महामारी में आर्थिक व मानसिक परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं।”
यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि राज्य के अतिथि विद्वान शिक्षकों को कई अन्य संगठनों का भी समर्थन प्राप्त है। ऐसे में शिक्षकों से जुड़े कई संगठनों का विरोध बीजेपी को महंगा पड़ सकता है।
इन दो मुद्दों के अलावा भी कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनका बीजेपी और शिवराज सिंह चौहान के पास कोई जबाव नहीं है और बीजेपी नेता इन मुद्दों से लगातार मुंह मोड़ते रहे हैं।
वहीँ हाथरस में दलित युवती के साथ हुई गैंग रेप और हत्या का मामले की आंच उत्तर प्रदेश से सटे ग्वालियर चंबल इलाके तक पहुंच गई है। उपचुनाव में इस इलाके की 16 सीटें शामिल हैं। इनमे अधिकांश सीटों पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं की अच्छी तादाद है। कांग्रेस का प्रयास है कि उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ हुए अपराधों पर उठी आवाज़ को उपचुनाव तक ज़िंदा रखा जाए।
अगले कुछ दिनों में कांग्रेस भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों में दलित और अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ हो रहे अपराध का मामला जोर शोर से और ये बीजेपी के लिए सबसे बड़े खतरे की घंटी साबित हो सकता है।
हालांकि चुनाव में कमबैक करने के लिए बीजेपी पूरी एड़ी चोटी का दम लगा रही है लेकिन उसके पास इन तीन अहम मुद्दों क़ी काट नहीं है। वहीँ दूसरी तरफ कमलनाथ चुनाव प्रचार में पसीना बहा रहे हैं और पूरी कांग्रेस उनके नेतृत्व में एकजुट खड़ी है। जिसका पूरा असर उपचुनाव में दिखने की संभावना है।