लॉकडाउन में नजमुद्दीन नजमी हजारों लोगों के लिए बने मसीहा
गया(फ़ौजिया रहमान खान): एक ओर जहां वैश्विक महामारी कोरोना ने एक को दूसरे से दूर होने पर मजबूर किया। तो वहीं संक्रमण वाली बीमारी को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने लोगों को एक दूसरे से करीब भी किया है। जहां एक ओर लॉकडाउन के कारण लोग मजबूर हो कर एक जगह से दूसरी जगह प्रस्थान कर रहे थे। वहीं गरीबों के लिए अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करना भी चुनौतिपूर्ण था।
इन परिस्थितियों में समाजसेवी और मानवता पर विश्वास रखने वाले लोग समाज से निकलकर उनकी सहायता को आगे आए। और एक दूसरे की मदद से उन गरीबों तक राशन और जरूरत का सामान पहुंचाने का प्रयास किया। इन्ही में से एक नाम नजमुद्दीन नजमी का भी लिया जाना चाहिए। जो जिले के शेरघाटी सब डिवीजन के उत्तरवारी मोहल्ला निवासी हैं।
बचपन से मिली सेवा की प्रेरणा:
नजमी ने बताया कि उनको बचपन से ही दूसरों की सहायता करने में रूचि थी। वह मानवता पर विश्वास रखते हैं और यह मानते हैं कि इंसान कोई भी हो, कैसा भी हो यदि वह संकट में है तो पहले उसकी सहायता करनी चाहिए। वह यह भी कहते हैं कि पारिवारिक माहौल से उन्हें लोगों की सेवा करने की प्रेरणा मिली।
अब तक लगभग 15 लाख रुपये लोगों की सेवा में खर्च कर चुके हैं:
नजमी ने बताया कि उनका शहर जीटी रोड पर स्थित है। उनहों ने देखा कि कुछ प्रवासी इस विकट परिस्थिति में अपने घर लौट रहे हैं। साथ ही वे भूख और अन्य मूलभूत जरूरतों की कमी से जूझ रहे हैं। उन्हे यह देख कर बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपने घर वालों, रिशतेदारों और दोस्तों से बात कर डेढ़ लाख रुपए जमा किया और जीटी रोड के किनारे लोगों की सेवा शुरू कर दी। देखते ही देखते लोग उनसे जुड़ते चले गए और न वे केवल वॉलिंटियर बने बल्कि वित्तीय सहयोग भी दिया।
उन्होंने उन पैसों और लोगों की सहायता से और लोगों की सेवा करने की ठानी। यहां तक कि रमजान के पवित्र महीने में 2000 असहाय लोगों को किट दिया। एक किट में लगभग एक हजार रुपए का राशन था। ऐसे ही ईद के मौके पर भी न केवल किट दिया। बल्कि प्रति व्यक्ति 500 रूपये के हिसाब से 70000 रूपये ग़रीबों को दवाओं और दूसरे खर्चों के लिए दिये। उन्होने पड़ोस के राज्य झारखंड के कई शहरों में भी काम किया है। कुछ स्थानों पर अभी भी काम चल रहा है।
हजारीबाग में सरकार द्वारा संचालित एक कोरोना स्क्रीनिंग सेंटर पर लोग भूख प्यास से परेशान हो रहे थे तो सरकार के साथ मिल कर पके भोजन, मौसमी फल, फ्रूट और ठंडे पानी की बोतलें लोगों तक पहुंचा कर सहायता की। इस बीच जीटी रोड पर प्रवासियों की सेवा जारी रही। अब तक नजमी लोगों की सहायता प्रदान करने में लगभग 1500000 रुपए खर्च कर चुके हैं।
यह राशि लोगों ने उन्हे ग़रीबों की सेवा के लिए दी थी। उन्होंने बताया कि एक छात्र द्वारा सहायता राशि में मिले 100 रूपये ने उन्हें ग़रीबों की सेवा करने के लिए और मज़बूत कर दिया।
सोशल मीडिया लोगों को जोड़ने का बना माध्यम:
वॉलिंटियर के तौर पर कार्य करने वाले हजारीबाग के आमिर ने बताया कि वह केरल में मेडिकल की पढ़ाई करते हैं। लॉकडाउन के कारण आमिर अपने घर में खाली बैठ थे, तो सोशल मीडिया पर नजमी के कार्य को देख कर उसे बहुत अच्छा लगा और वह भी इनके साथ जुड़ गए।
आमिर ने कहा कि उनकी तरह 50 अन्य वॉलिंटियर जो मेडिकल, इंजीनियरिंग इत्यादि की विभिन्न जगहों पर पढ़ाई कर रहे हैं। वह भी इनके अच्छे कामों से प्रेरित होकर लॉकडाउन का समय इनके साथ लगा रहे हैं। उनका मानना है कि गरीब और असहाय लोगों की सेवा करके दिली सुकून मिल रहा है।