30 लाख से ज़्यादा प्रवासी मजदूरों की नाराज़गी चुनाव में बनेगी BJP-JDU की मुसीबत

पटना ब्यूरो। बिहार के लोगों को काम की तलाश में देशभर के कौन कौन में देखा जा सकता है। यही कारण है कि कोरोना संक्रमण के चलते लागू हुए लॉकडाउन में सबसे ज़्यादा मुसीबतें बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों ने ही झेलीं।
बिहार के रहने वाले लोग देश के कई राज्यों तक फैले हुए हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र , गुजरात, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों के अलावा बिहार के लोग केरल, कर्णाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु यहाँ तक कि गोवा में भी मौजूद हैं।
लॉकडाउन लागू होने के बाद जब बिहार के प्रवासी मजदूरों ने अलग अलग राज्यों से नीतीश सरकार से वापस बुलाने के लिए बंदोबस्त करने की गुहार लगाई तो खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान सामने आया। जिसमे कहा गया कि कोरोना संक्रमण के चलते जो जहाँ है वह वहीँ रहे।
प्रवासी मजदूरों की नीतीश सरकार से नाराज़गी यहीं से शुरू हो गयी थी। सोशल मीडिया पर वायरल कई वीडियो में बिहार के प्रवासी मजदूरों को यह कहते देखा गया कि वे फंसे हुए हैं, उनके पास पैसे खत्म हो गए हैं और खाने का कोई बंदोबस्त नहीं हैं। इसके बावजूद नीतीश अपनी जिद्द पर अड़े रहे।
हालांकि नीतीश कुमार ने राजस्थान के कोटा से छात्रों को वापस लाने के फैसले का भी विरोध किया था। उनका कहना था कि इससे कोरोना संक्रमण और फैलेगा और ये लॉकडाउन का उल्लंघन होगा।
प्रवासी मजदूरो की मदद के नाम पर नीतीश सरकार ने मजदूरों के बैंक खातों में पांच सौ रुपये डालने का एलान अवश्य किया लेकिन एक परिवार की आजीविका महज पांच सौ रुपये में कैसे चल सकती है। इस पर प्रवासी मजदूर लगातार सोशल मीडिया पर अपने वीडियो के माध्यम से सवाल उठाते रहे।
अब चूँकि बिहार के अधिकांश प्रवासी मजदूर अपने घरो को वापस लौट आये हैं। कुछ प्रवासी मजदूरों ने सैकड़ो किलोमीटर का फासला पैदल, साइकिल, रिक्शा से तय किया तो कुछ हाल में चलाई गयी विशेष ट्रेनों से घर पहुंचे हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में करीब 34 लाख प्रवासी मजदूरों की वापसी हुई है जो कि एक बड़ी तादाद है। बिहार में इस वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं, ऐसे में प्रवासी मजदूरों की नाराज़गी बीजेपी-जेडीयू के लिए मुश्किलें अवश्य खड़ी कर सकती है।
यही कारण है कि पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह अभी से चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। बिहार बीजेपी ने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से अमित शाह के संवाद की व्यवस्था की है। यह बर्चुअल मीटिंग की तरह ही होगा।
दूसरी तरफ ज़मीनी हकीकत यह है कि प्रवासी मजदूरों और उनके परिजनों में नीतीश सरकार के खिलाफ बड़ी नाराज़गी है, जो लच्छेदार भाषणों से दूर होती नहीं दिख रही। हालांकि चुनावो में अभी खासा समय बाकी है लेकिन यदि कोरोना मामला लंबा खिंचा तो प्रवासी मजदूरों की नाराज़गी की छाया चुनावो पर भी नज़र आना तय है।
वहीँ चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि इस बार बिहार बदलाव का गवाह बनेगा। राजनैतिक विश्लेषक और लोकभारत के ग्रुप एडिटर राजा ज़ैद के मुताबिक ‘बिहार की जनता नीतीश को कुछ कर दिखाने के लिए पहले ही काफी समय दे चुकी है। कोरोना संक्रमण में हुए लॉकडाउन से बिहार के प्रवासी मजदूरों को यह तो समझ आ गया है कि राज्य की जनता को लेकर नीतीश सरकार कितनी संवेदनशील है।’
उन्होंने कहा कि ‘अभी विपक्ष बिखरा हुआ है, और यदि चुनाव आते आते विपक्ष एकजुट नहीं हुआ तो बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड को इसका लाभ मिलेगा। यहाँ देखने वाली बात यह भी है कि क्या चुनाव आने तक प्रवासी मजदूर अपनी आपबीती याद रखेंगे या चुनाव आते ही अपने ज़ख्मो को भूलकर फिर धर्म और जाति के आधार पर अपने वोटों का बंदरबांट करेंगे।’