अपनी पीठ थपथपाने से पहले इस सुसाईड नोट को पढ़े सरकार

नई दिल्ली(राजाज़ैद)। कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र देशभर में जारी लॉकडाउन के बीच मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल का एक साल पूरा होने का जश्न मना रही है।
बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने मोदी सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करते हुए कहा कि पहले कार्यकाल में मोदी जी ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया, साथ ही लंबे समय से जिन रिफॉर्म्स का इंतजार था वो किए,दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में भारत की एकता और अखंडता के लिए बोल्ड फैसलें लिये।
कोरोना संक्रमण के खिलाफ मोदी सरकार की तैयारियों पर तारीफ़ करते हुए नड्डा ने कहा कि ‘अन्य देशों के मुकाबले भारत ने मोदी जी के नेतृत्व में कोरोना की लड़ाई इस तरह से लड़ी जिसमें भारत की स्थिति संभली हुई रही। कोरोना की लड़ाई में जनभागीदारी, जनसहयोग, सबको साथ लेकर चलना और समय पर बोल्ड फैसलें लेना ये मोदी जी की खासियत रही है।’
वहीँ दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में मैगलगंज रेलवे स्टेशन पर भानु प्रताप गुप्ता का शव बरामद हुआ है। भानु प्रताप के शव के साथ ही एक सुसाईड नोट भी मिला है।
अगर इस सुसाईड नोट को ठीक से पढ़ा जाए तो साफ़ होता है कि सरकार जिन उपलब्धियों को बताकर अपनी पीठ थपथपा रही है वे महज कागजी हैं। सुसाईड नॉट में भानुप्रताप गुप्ता ने अपनी गरीबी और बेरोजगारी का जिक्र किया है।
सुसाईड नोट में भानुप्रताप ने अपना दर्द बयान करते हुए लिखा है कि लिखा है कि “राशन की दुकान से उसको गेहूं-चावल तो मिल जाता था, लेकिन ये सब नाकाफी थे। चीनी, चायपत्ती, दाल, सब्जी, मसाले जैसी रोजमर्रा की चीजें अब परचून वाला भी उधार नहीं देता था। मैं और मेरी विधवा मां लम्बे समय से बीमार हैं। गरीबी के चलते तड़प-तड़प के जी रहे हैं। शासन-प्रशासन से भी कोई सहयोग नहीं मिला। गरीबी का आलम ये है कि मेरे मरने के बाद मेरे अंतिम संस्कार भर का भी पैसा मेरे परिवार के पास नहीं है।”
कौन हैं सुसाईड करने भानुप्रताप गुप्ता:
भानूप्रताप गुप्ता मैगलगंज के रहने वाले थे और शाहजहांपुर में एक होटल पर काम करते थे। देश में लॉकडाउन लागू होने के बाद से भानूप्रताप का काम धंधा बंद हो गया था और वे लंबे समय से घर पर ही थे। काम बंद होने से भानू की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन कमज़ोर होती चली गयी।
पैसे न होने के कारण भानुप्रताप आर्थिक तंगी के उस मुकाम तक पहुँच चुके थे जहाँ से भुखमरी शुरू होती है। लॉकडाउन में काम न होने और कोई सहायता न मिलने से उनके घर में खाने के लिए एक दाना भी नहीं था। पैसो के आभाव में भानुप्रताप अपना और अपनी बूढ़ी मां का इलाज भी नहीं करा पा रहे थे। दोनों ही सांस की बीमारी से जूझ रहे थे। भानू के तीन बेटियां और एक बेटा हैं। घर पर बूढ़ी मां और बीमारी का बोझ था। घर की पूरी जिम्मेदारी भानू के कंधे पर थी। जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर भानू ने जिंदगी से हार मान ली और रेलवे ट्रैक पर लेट मौत को गले लिया।