सोमवार को लोकसभा में पेश होगा नागरिकता संशोधन बिल, पढ़िए- क्या है ये बिल

नई दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पेश करेगी। बुधवार को पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई केबिनेट की बैठक में इस बिल को लेकर चर्चा हुई और केबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी है।
मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल (जनवरी में) इसे लोकसभा में पास करा लिया था। लेकिन विपक्षी दलों के विरोध और सरकार के पास बहुमत के अभाव के चलते यह बिल राज्यसभा में बिल अटक गया था।
इस बिल में मुस्लिम आबादी बहुल पड़ोसी देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों (हिंदु, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी व ईसाई) को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।
विपक्ष इस बिल को लेकर पहले ही विरोध में है। नागरिकता संशोधन बिल को लेकर विपक्ष का कहना है कि यह बिल धार्मिक आधार पर भेदभाव को दर्शाता है। इसमें साफ़ तौर गैर मुस्लिमो को नागरिकता देने का साफ़ साफ़ ज़िक्र है। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर असम सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों में प्रदर्शन भी हुए हैं।
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कड़ी आपत्ति जताई है।
ओवैसी ने कहा कि ‘यह बिल संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के खिलाफ है। नागरिकता को लेकर एक देश में दो कानून कैसे हो सकते हैं। सरकार धर्म की बुनियाद पर ये कानून बना रही है। सरकार देश को बांटने की कोशिश कर रही है। सरकार फिर से टू नेशन थ्योरी को बढ़ावा दे रही है। सरकार चाह रही है कि मुसलमान देश में दोयम दर्जे का नागरिक बन जाए।’
औवेसी ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक बिल लाने के पीछे की सरकार की मंशा है कि वह हिंदुस्तान को एक धर्म आधारित देश बना दें। इस बिल के लागू होने के बाद हिंदुस्तान और इसराइल में अब कोई फर्क नहीं रहेगा। संविधान में धर्म के आधार पर नागरिकता देने की कोई बात ही नहीं है।
उन्होंने सवाल पूछा कि अगर कोई नास्तिक होगा तो आप क्या करेंगे? इस तरह का कानून बनाने के बाद हम पूरी दुनिया में हमारा मजाक बनेगा। भाजपा सरकार हिंदुस्तान के मुसलमानों को संदेश देना चाहती है कि आप अव्वल दर्जे के शहरी नहीं हैं बल्कि दूसरे दर्जे के शहरी हैं।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल:
भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे ‘नागरिकता अधिनियम 1955’ नाम दिया गया। मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे ‘नागरिकता संशोधन बिल 2019’ नाम दिया गया है।
नागरिकता संशोधन बिल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध यानी कुल 6 समुदायों के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसमें मुसलमानों का जिक्र नहीं है।
नागरिकता के लिए पिछले 11 सालों से भारत में रहना अनिवार्य है, लेकिन इन 6 समुदाय के लोगों को 5 साल रहने पर ही नागरिकता मिल जाएगी। इसके अलावा इन तीन देशों के 6 समुदायों के जो लोग 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हों, उन्हें अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।