गीता कुमारी की कविता: मां की ममता
घुटनों से रेंगते-रेंगते
कब पैरों पर खड़ी हुई
तेरी ममता की छांव में
जाने मैं कब बड़ी हो गई
काला टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है
मैं ही मैं हूं हर जगह
प्यार ये तेरा कैसा है
माँ की ममता बड़ी निराली
जीवन में लाती है हरियाली
जिसने भी समझी माँ की ममता
खुशियों भरा जीवन वो है पाता
सीधी-साधी भोली-भाली
मैं ही सबसे अच्छी हूँ
कितनी भी हो जाऊँगी बड़ी
माँ मैं आज भी तेरी बच्ची हूँ
(चरखा फीचर)
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