बंगाल के बाद असम में भी धीमी हुई चाल, क्या विधानसभा चुनाव में बीजेपी रहेगी खाली हाथ?

बंगाल के बाद असम में भी धीमी हुई चाल, क्या विधानसभा चुनाव में बीजेपी रहेगी खाली हाथ?

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी जो सोच रही थी वह अब उसके लिए एक स्वप्न जैसा होता जा रहा है। पूरे चुनाव पर तृणमूल कांग्रेस ने एक बार फिर पकड़ बना ली है।

ज़मीनी हकीकत बयां कर रही है कि चुनाव के एलान से पहले ही रफ्तार से चली भारतीय जनता पार्टी अब पश्चिम बंगाल में हथियार डालने के कगार तक पहुंच गई है। इसकी अहम् वजह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का वह दांव है जिसे उन्होंने बीजेपी से छीन कर उसी के खिलाफ चल दिया है।

पश्चिम बंगाल को लेकर भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद थी कि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को पार्टी में शामिल करने से ममता बनर्जी अकेले पड़ जाएंगी और वे बीजेपी के हमलो को नहीं झेल पाएंगी लेकिन इसके उलट ममता बनर्जी चुनाव में और ज़्यादा ताकतवर होकर उभरी हैं।

चुनावी जानकारों की माने तो ममता बनर्जी बीजेपी को उसी की भाषा मे जबाव देने में सक्षम हैं और वे पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा द्वारा चुनावी सभाओं में लगाए जा रहे हर एक आरोप ला चुन चुन कर जबाव दे रही हैं।

चुनाव एलान होने के साथ ही आये चुनावी सर्वेक्षणों में भले ही भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस में कांटे की टक्कर होने की बात कही गई हो लेकिन आज स्थिति पूरी तरह पलट चुकी है। जानकारों की राय में आज बंगाल में बीजेपी 50 सीटों से पीछे खड़ी है।

वहीँ दूसरी तरफ असम में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी असहज महसूस कर रही है। इसके पीछे अहम कारण कांग्रेस का “पांच गारंटी” का नारा बताया जा रहा है। असम में कांग्रेस छत्तीसगढ़ की तर्ज पर चुनाव लड़ रही है। यहां चुनाव की कमान भी स्वयं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल संभाल रहे हैं।

पार्टी सूत्रों की माने तो कांग्रेस घोषणा पत्र के पांच बड़े वादों को लेकर शुरू किया गया 5 गारंटी अभियान भूपेश बघेल की ही देन है। सूत्रों ने कहा कि असम चुनाव में प्रियंका गांधी की एंट्री के बाद तस्वीर बदल चुकी है।

चाय बागानों में श्रमिकों से संवाद करना, उनके साथ समय बिताना, भोजन करना ये सभी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है लेकिन इस रणनीति को लिखने वाला कोई और नहीं बल्कि खुद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही हैं।

असम में चुनावो को कवर कर रहीं सिमी कलिता का कहना है कि असम में चुनावो का एलान होने से पहले बीजेपी कांग्रेस से कम से कम 30 सीटों की लीड लेती दिख रही थी लेकिन चुनावो के एलान के बाद राहुल गांधी, प्रियंका गांधी की सभाएं और दोनों नेताओं द्वारा छात्रों, चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों के साथ संवाद ने कांग्रेस के लिए संजीवनी की तरह काम किया है।

उन्होंने कहा कि आज की स्थिति में देखा जाए तो कांग्रेस और बीजेपी बराबर के पायदान पर खड़े हैं लेकिन इस बार सबसे अहम बात यह भी है कि बीजेपी को सेकुलर वोटों के बंटवारे का फायदा नहीं मिल रहा क्यों कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।

सिमी कलिता बताती हैं कि असम के कुछ इलाको में बिहार और झारखंड के मतदाताओं की खासी तादाद हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कहने पर ही कांग्रेस ने तीनसुकिया जैसे इलाके में राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव की सभा और रोड शो का आयोजन किया। इसका फायदा कहीं न कहीं कांग्रेस को चुनाव में अवश्य मिलने वाला है।

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कहां खड़ी है बीजेपी:

पश्चिम बंगाल और असम को छोड़ दें तो तमिलनाडु, केरल में बीजेपी पहले से ही खाली हाथ है। इन दोनों राज्यों में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए महज कुछ सीटें ही उसका टारगेट हो सकता है। वहीँ पुडुचेरी में भी बीजेपी पूरी तरह से एनडीए के घटक दलों पर निर्भर है।

पुडुचेरी एक छोटा राज्य है इसके बावजूद भी यहां बीजेपी की डगर को आसान नहीं माना जाता। राज्य में सिर्फ विधानसभा की 33 सीटें हैं। इनमे से 30 सीटों के लिए चुनाव होता है बाकी 3 सीटों के लिए सदस्य मनोनीत किये जाते हैं।

यहां कांग्रेस और डीएमके का गठबंधन है, वहीँ बीजेपी का एआइएडीएमके से गठबंधन है। जानकारों की माने तो तमिलनाडु की चुनावी हवा का असर पुडुचेरी तक पड़ता है। फिलहाल तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन पूरे चुनाव पर हावी है। ऐसे में माना जा रहा है कि पुडुचेरी का चुनाव भी बीजेपी एआइएडीएमके गठबंधन के लिए एकतरफा नहीं होगा और डीएमके पुडुचेरी में भी बीजेपी और एआइएडीएमके गठबंधन के लिए कड़ी चुनौती पेश करेगा।

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