दिशा रवि को मिली ज़मानत, कोर्ट ने बिना नाम लिए की सरकार और जांच एजेंसियों को नसीहत
नई दिल्ली। गूगल टूलकिट मामले में सामाजिक कार्यकर्त्ता दिशा रवि को आज दिल्ली की एक अदालत ने एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर ज़मानत दे दी है। अदालत ने अपने फैसले में किसी का नाम लिए बिना कहा कि किसी नागरिक को सिर्फ इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता कि उसने सरकारी नीतियों के प्रति असहमति जताई है।
दिशा रवि को जमानत देते हुए एडिशनल सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने कहा कि अभियुक्त के खिलाफ पुराना कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। पुलिस ने दिशा के खिलाफ जो सबूत दिए हैं, वे नाकाफी और सतही हैं। इसलिए 22 साल की लड़की को जमानत देने के सामान्य नियम को तोड़ने का कोई कारण नहीं दिखता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार की जमीर के रखवाले होते हैं। उन्हें सिर्फ इसलिए सीखचों के पीछे नहीं डाला जा सकता कि उन्होंने सरकारी नीतियों के प्रति असहमति जताई है।
इतना ही नहीं जज धर्मेंद्र राणा ने अपने फैसले में लिखा कि “जांच एजेंसी को सिर्फ उनके अनुमान के आधार पर एक नागरिक की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”
जज राणा ने अपने फैसले में ऋग्वेद का उदाहरण देते हुए लिखा कि ऋग्वेद में विचारों की भिन्नता का सम्मान करने की बात कही गई है। उन्होंने अपने फैसले में उन्होंने लिखा है, “हमारी 5000 साल पुरानी सभ्यता कभी भी अलग-अलग विचारों के खिलाफ नहीं रही है। हमारे संस्थापक पितामहों ने अभिव्यक्ति की आजादी को स्वीकार करते हुए विचारों की भिन्नता का सम्मान किया था। असहमति का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 में भी दिया गया है।”
पीजेएफ के साथ संबंधों पर कोर्ट ने स्पष्ट कहा, “तथाकथित टूलकिट या पीजेएफ के साथ संबंधों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाया गया है। इसलिए सिर्फ टूलकिट या पीजेएफ के साथ अपने संबंध के सबूत को नष्ट करने के मकसद से व्हाट्सएप चैट को डिलीट करना निरर्थक हो जाता है।”
सेशन कोर्ट के जज धर्मेंद्र राणा ने अपने फैसले में यह भी लिखा कि “संचार की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती है। मेरे विचार में अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में दूसरे देशों के लोगों को जोड़ना भी शामिल है। किसी भी नागरिक को कानून के दायरे में रहकर सर्वश्रेष्ठ तरीके से सूचना देने और प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है, और इसमें विदेशी ऑडियंस में शामिल है।”