राफेल डील: कांग्रेस के आरोपों पर सीएजी की मुहर, चिदंबरम ने उठाये सवाल
नई दिल्ली। राफेल लड़ाकू विमान को लेकर फ्रांस की एविएशन कंपनी दसॉ एविएशन से हुई डील को लेकर नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने रक्षा मंत्रालय की आलोचना की है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के द्वारा 23 सितंबर को संसद में पेश हुई रिपोर्ट में सौदे की कई कमियों को उजागर किया गया है।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लड़ाकू विमान बनाने वाली फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन और यूरोप की मिसाइल निर्माता कंपनी एमबीडीए ने 36 राफेल जेट की खरीद से संबंधित सौदे के हिस्से के रूप में भारत को उच्च प्रौद्योगिकी की पेशकश के अपने ऑफसेट दायित्वों को अभी तक पूरा नहीं किया है।
रिपोर्ट में कैग ने कहा कि 60 हजार करोड़ रुपये की इस डील में मुख्य बात टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की थी, जो कि 2015 में ही तय हो गया था लेकिन दसॉल्ट एविएशन और MBDA ने इनमें से किसी भी बात को पूरा नहीं किया है। DRDO को कावेरी जेट इंजन बनाने के लिए इन टेक्नोलॉजी की जरूरत है।
कैग ने कहा है, ”36 मध्यम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) से संबंधित ऑफसेट अनुबंध में विक्रेताओं ‘मैसर्स दसॉ एविएशन और मैसर्स एमबीडीए ने शुरुआत में डीआरडीओ को उच्च प्रौद्योगिकी प्रदान करके अपने ऑफसेट दायित्व के 30 प्रतिशत का निर्वहन करने का प्रस्ताव किया था।”
कैग द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ”डीआरडीओ लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए इंजन (कावेरी) के स्वदेशी विकास में तकनीकी सहायता प्राप्त करना चाहता है। अब तक विक्रेताओं ने इस तकनीक के हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की है।”
लेखा परीक्षक ने कहा कि हालांकि, विक्रेता अपनी ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को निभाने में विफल रहे, लेकिन उन्हें दंडित करने का कोई प्रभावी उपाय नहीं है। कैग ने कहा, ‘‘यदि विक्रेता द्वारा ऑफसेट दायित्वों को पूरा नहीं किया जाये, विशेष रूप से जब मुख्य खरीद की अनुबंध अवधि समाप्त हो जाती है, तो ऐसे में विक्रेता को सीधा लाभ होता है।’’
कैग ने कहा कि चूंकि ऑफसेट नीति के वांछित परिणाम नहीं मिले हैं, इसलिये रक्षा मंत्रालय को नीति व इसके कार्यान्वयन की समीक्षा करने की आवश्यकता है। मंत्रालय को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ-साथ भारतीय उद्योग को ऑफसेट का लाभ उठाने से रोकने वाली बाधाओं की पहचान करने तथा इन बाधाओं को दूर करने के लिये समाधान खोजने की जरूरत है।
कैग ने रिपोर्ट में कहा कि 2005 से 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हजार करोड़ रुपये के कुल 46 ऑफसैट साइन हुए। दिसंबर 2018 तक कंपनियों को 20 हजार करोड़ रुपये का ऑफसैट डिस्चार्ज करना था, लेकिन अबतक सिर्फ 11 हजार करोड़ रुपये का ही हुआ है।
कैग ने राफेल डील के तरीके पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुछ मामलों में वेंडर के द्वारा इनवॉयस डेट और खरीद की तारीख पूरी तरह अलग है। कई जगह इन डील में वेंडर ने शिपिंग बिल, लैंडिंग बिल, ट्रांजैक्शन का प्रूफ साझा ही नहीं किया है।
चिदंबरम ने उठाये सवाल:
राफेल डील पर शुरू से सवाल उठा रही कांग्रेस ने कैग रिपोर्ट आने के बाद सरकार पर नए सिरे से हमला बोला है। पूर्व वित्त मत्री पी चिदंबरम ने कहा कि “CAG ने पाया कि राफेल विमान के विक्रेताओं ने ऑफसेट अनुबंध के तहत ‘प्रौद्योगिकी हस्तांतरण’ की पुष्टि नहीं की है।”
उन्होंने ट्वीट कर कहा कि “ऑफसेट दायित्वों को 23-9-2019 को शुरू होना चाहिए था और पहली वार्षिक प्रतिबद्धता 23-9-2020 तक पूरी होनी चाहिए थी, जो कि कल थी। क्या सरकार बताएगी कि वो दायित्व पूरा हुआ कि नहीं? क्या CAG ने ‘जटिल समस्याओं का पिटारा’ खोलने वाली रिपोर्ट दी है?”