राफेल डील पर कांग्रेस ने नए सिरे से शुरू की सरकार की घेराबंदी

राफेल डील पर कांग्रेस ने नए सिरे से शुरू की सरकार की घेराबंदी

नई दिल्ली। राफेल डील को लेकर फ़्रांस के एक न्यूज़ पोर्टल द्वारा किये गए खुलासे को लेकर कांग्रेस ने इस मामले में नए सिरे से सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी है। मंगलवार को कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इस ‘घोटाले’ पर पर्दा डालने के लिए केंद्र सरकार और सीबीई एवं प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के बीच साठगांठ हुई।

पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ‘‘जब पग-पग पर सत्य साथ है, तो फ़िक्र की क्या बात है? मेरे कांग्रेस साथियों- भ्रष्ट केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ ऐसे ही लड़ते रहो। रुको मत, थको मत, डरो मत!’’

कांग्रेस और राहुल गांधी की ओर से ये आरोप उस वक्त लगाए गए हैं जब फ्रांस के पोर्टल ‘मीडिया पार्ट’ ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि राफेल निर्माता कंपनी दसॉल्ट की ओर से बिचौलियों को कम से कम 75 लाख यूरो की रिश्वत देने के लिए कथित फर्जी रसीदों का उपयोग किया गया है।

हालांकि फ़्रांसीसी पोर्टल द्वारा राफेल विमान सौदे को लेकर किये गए खुलासे पर फिलहाल रक्षा मंत्रालय एवं दसॉल्ट की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीँ कांग्रेस ने इस मामले में सरकार पर सच छिपाने का आरोप लगाया है।

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने संवाददाताओं से बातचीत में आरोप लगाया, ‘‘मोदी सरकार द्वारा “राफेल डील” में भ्रष्टाचार, रिश्वत और मिलीभगत को दफनाने के लिए “ऑपरेशन कवर-अप” एक बार फिर उजागर हो गया है। नवीनतम खुलासे से राफेल घोटाले पर पर्दा के लिए मोदी सरकार-सीबीआई-ईडी के बीच संदिग्ध साठगांठ का पता चलता है।’’

उनके मुताबिक, ‘‘ 4 अक्टूबर 2018 को भाजपा के दो पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और एक वरिष्ठ वकील ने राफेल सौदे में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए निदेशक, सीबीआई को शिकायत सौंपी। 11 अक्टूबर 2018 को मॉरीशस सरकार ने अपने अटॉर्नी जनरल के माध्यम से राफेल सौदे से जुड़े कमीशन के कथित भुगतान के संबंध में सीबीआई को दस्तावेजों की आपूर्ति की थी।’’

खेड़ा ने आरोप लगाया, ‘‘23 अक्टूबर 2018 को पीएम मोदी की अगुवाई वाली एक समिति ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को मध्यरात्रि में तख्तापलट कर हटा दिया और अपने चहेते अधिकारी एम नागेश्वर राव को सीबीआई प्रमुख नियुक्त किया। यह सीबीआई के माध्यम से राफेल के मामले को दफनाने की एक साजिश का हिस्सा था।’’ कांग्रेस प्रवक्ता ने दावा किया, ‘‘राफेल घोटाला तथाकथित 60-80 करोड़ रुपये का कमीशन भुगतान नहीं है। यह सबसे बड़ा रक्षा घोटाला है और केवल कोई स्वतंत्र जांच ही घोटाले का खुलासा करने में सक्षम है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने अंतरराष्ट्रीय निविदा के बाद 526.10 करोड़ रुपये में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहित राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए बातचीत की थी। मोदी सरकार ने वही राफेल लड़ाकू विमान (बिना किसी निविदा के) 1670 करोड़ में खरीदा और भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बिना मिले 36 जेट की लागत में अंतर लगभग 41,205 करोड़ है।’’

खेड़ा ने सवाल किया, ‘‘क्या मोदी सरकार जवाब देगी कि हम भारत में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बिना उन्हीं 36 विमानों के लिए 41,205 करोड़ रुपये अतिरिक्त क्यों दे रहे हैं? किसने पैसा कमाया और कितनी रिश्वत दी?’’ उन्होंने ‘मीडिया मार्ट’ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आरोप लगाया, ‘‘बिचौलिए सुशेन गुप्ता ने 2015 में भारत के रक्षा मंत्रालय से भारतीय वार्ता दल (आईएनटी) से संबंधित गोपनीय दस्तावेजों को भारत के रुख का विवरण देते हुए पकड़ा था। वार्ताकारों से बातचीत के अंतिम चरण के दौरान और विशेष रूप से उन्होंने विमान की कीमत की गणना कैसे की। इससे दसॉल्ट एविएशन (राफेल) को साफ और सीधे तौर पर फायदा हुआ।’’ उन्होंने दावा किया कि प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी में बिचौलियों से रक्षा मंत्रालय के कई ‘गुप्त दस्तावेज’ बरामद हुए।

उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या मोदी सरकार में “हाईकमान” के साथ ऐसी कोई बैठक हुई थी? ईडी ने घोटाले की जांच के लिए इन सबूतों को आगे क्यों नहीं बढ़ाया? तब मोदी सरकार ने दस्तावेजों को लीक करने वाले राजनीतिक कार्यकारी या रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने डसॉल्ट के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? भारत के राष्ट्रीय रहस्य किस ‘चौकीदार’ ने बेचे ?’’

खेड़ा ने आगे सवाल किया, ‘‘जुलाई 2015 में अंतर-सरकारी समझौते में रक्षा मंत्रालय के जोर देने के बावजूद, सितंबर 2016 में प्रधानमंत्री और मोदी सरकार द्वारा ‘भ्रष्टाचार विरोधी खंड’ को हटाने की मंजूरी क्यों दी गई थी? क्या यही कारण है कि सीबीआई-ईडी ने 11 अक्टूबर, 2018 से आज तक राफेल सौदे में भ्रष्टाचार की जांच से इनकार कर दिया?’’ उन्होंने यह भी पूछा, ‘‘भारतीय वायु सेना से परामर्श किए बिना राफेल विमानों की संख्या को 126 से घटाकर 36 कैसे व क्यों कर दिया? उन्होंने भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और एचएएल द्वारा राफेल के निर्माण से इनकार क्यों किया?

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