चाणक्य फिर फेल: 200 सांसदों, दर्जनभर मंत्रियों, कई मुख्यमंत्रियों की फ़ौज के बाद भी हार
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद अब परिणामो का आंकलन शुरू हो गया है। कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ होना गंभीर मामला इसलिए नहीं माना जा रहा क्यों कि पिछले चुनाव में भी कांग्रेस जीरो पर थी। इसलिए उसे न फायदा हुआ न नुकसान, हालाँकि उसके वोट शेयर में कमी अवश्य हुई है लेकिन सीटों के मामले में उसकी स्थति पिछले चुनाव जैसी ही है। अहम सवाल बीजेपी को लेकर उठ रहे हैं।
2014 के बाद प्रदेश दर प्रदेश जीतने वाली बीजेपी अब प्रदेश दर प्रदेश हार भी रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड हारने के बाद दिल्ली में भी बीजेपी की पराजय कई सवालो को जन्म अवश्य देती है। बीजेपी ने हाल ही में हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने जोड़तोड़ से सरकार अवश्य बना ली है लेकिन वह जिस जीत के दावे कर रही थी वहां तक नहीं पहुँच पाई।
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की पराजय के बाद सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्यों कि पार्टी ने चुनाव में पूरी ताकत झौंकी थी। पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को बनाये जाने के बावजूद पूरा चुनाव गृहमंत्री अमित शाह ही लीड कर रहे थे।
कभी चुनावी चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह ने चुनाव में 200 सांसदों, दर्जनभर केंद्रीय मंत्रियों, कई मुख्यमंत्रियों यहाँ तक कि बीजेपी शासित कई प्रदेशो के मंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतारा था। इतनी बड़ी चुनावी फ़ौज होने के बावजूद बीजेपी चुनावी समुद्र में डूब कर रह गई।
दिल्ली चुनाव में विकास के मुद्दों से दूर गई बीजेपी ने शाहीन बाग़ जैसे अनावश्यक मुद्दों को उठाकर बीजेपी नेताओं ने ध्रुवीकरण करने की कोशिश अवश्य की लेकिन अंततः उसे सफलता नहीं मिली। वहीँ केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के बयानों के चलते भी बीजेपी को बड़ा नुकसान माना जा रहा है।
अगर चुनाव परिणामो का आंकलन किया जाए तो निश्चित तौर पर ये बीजेपी के लिए बड़े खतरे की घंटी है। जानकारों की माने तो 70 विधानसभाओं वाले दिल्ली जैसे छोटे राज्य में बीजेपी के इतनी ताकत झौंकने के बाद सिर्फ 8 सीटें जीत पाने का मतलब साफ़ है कि जनता ने बीजेपी के सांप्रदायिक भाषणों, बड़बोले नेताओं और गोली मारो के नारो को साफतौर पर नकार दिया है।
जानकारों का कहना है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम बीजेपी और अमित शाह के लिए एक बड़ा सबक हैं। पार्टी और पार्टी के नेताओं को समझना पड़ेगा कि हर बार ध्रुवीकरण और हिंदुत्व की राजनीति सफल नहीं होती।