जस्टिस चंद्रचूड़ की नसीहत: असहमति दबाने के लिए न हो आतंक निरोधी कानूनों का दुरुपयोग

जस्टिस चंद्रचूड़ की नसीहत: असहमति दबाने के लिए न हो आतंक निरोधी कानूनों का दुरुपयोग

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार का नाम लिए बिना नसीहत की है कि असहमति को दबाने के लिए आतंक निरोधी कानूनों का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आतंकवाद निरोधी कानूनों सहित दूसरे आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल असहमति की आवाज को दबाने या नागरिकों के उत्पीड़न के लिए नहीं करना चाहिए। चुनौतीपूर्ण समय में मौलिक अधिकारों की रक्षा में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का कर्तव्य है कि वह सामाजिक-आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक समूह के अधिकारों की रक्षा करे।

जस्टिस चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी अमेरिकन बार एसोसिएशन, सोसायटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स और चार्टर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ आर्बिट्रेटर्स द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में “चुनौतीपूर्ण समय में मौलिक अधिकारों की रक्षा में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका” विषय पर सामने आई है। अर्णब गोस्वामी केस का संदर्भ देते हुए उन्होंने आपराधिक कानूनों के दुरुपयोग को लेकर टिप्पणी की।

उन्होंने कहा, “जैसा की मैंने अर्णब गोस्वामी बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में कहा था, ‘हमारे कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता के हनन होने के खिलाफ वे रक्षा की पहली पंक्ति में बने रहें। एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता का हनन होना काफी ज्यादा है। हमें हमेशा अपने फैसलों के गहरे प्रणालीगत निहितार्थ के बारे में सचेत रहना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप को “जूडिशियल एक्टिविज्म” बताया, लेकिन जब कार्यपालिका और विधायिका की कार्रवाई मौलिक मानवाधिकारों का हनन करती है तो संविधान के रक्षक होने के नाते यह कोर्ट का कर्तव्य है कि इस पर रोक लगाए। उन्होंने कोविड के दौरान सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप को लेकर कहा, “मानवीय संकट के वक्त कोर्ट मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता है। कोर्ट ने सरकार से उसकी नीतियों के औचित्य पर जवाब मांगा था।”

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कार्यपालिका और विधायिकों को जिम्मेदार ठहराने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया है, चाहे वह किसी असंवैधानिक कानून या फैसले को खत्म करना हो या खास नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप कर रोक लगाना हो। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और भारत के लोगों की दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले पहलुओं में इसकी भागीदारी को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

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