असम में हॉर्स ट्रेडिंग का डर: AIUDF के बाद BPF ने अपने उम्मीदवारों को छत्तीसगढ़ भेजा
नई दिल्ली। असम में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम 2 मई को घोषित किये जाएंगे लेकिन राज्य में कांग्रेस गठबंधन को अभी से बीजेपी द्वारा हॉर्स ट्रेडिंग किये जाने का डर सता रहा है। इसी कवायद के तहत अब कांग्रेस गठबंधन में शामिल बोडोलैंड प्यूपल्स फ्रंट (BPF) ने अपने सभी उम्मीदवारों को छत्तीसगढ़ भेज दिया है।
हालांकि असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव अपूर्वा भट्टाचार्य का कहना है कि बीपीएफ उम्मीदवारों चुनाव की थकान से खुद को रिफ्रेश करने छत्तीसगढ़ गए हैं।
गौरतलब है कि असम में तीसरे चरण के चुनाव के लिए मतदान से पहले बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के एक उम्मीदवार भाजपा में शामिल हो गये थे और बीजेपी उम्मीदवार का समर्थन करते हुए खुद को चुनाव से खुद को अलग कर लिया था।
वहीँ इससे पहले कांग्रेस गठबंधन में शामिल एआईयूडीएफ ने अपने 18 उम्मीदवारों को असम से जयपुर(राजस्थान) भेज दिया था और अभी भी उन्हें राजस्थान में ठहराया गया है।
राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनों जगह कांग्रेस की सरकार है। इसलिए माना जा रहा है कि बीजेपी की पहुंच से दूर करने के लिए कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों के उम्मीदवारों को परिणाम आने से पहले ही सुरक्षित जगह भेज दिया है जिससे परिणाम आने के बाद अंतिम समय पर बीजेपी तोडफ़ोड़ न कर पाए।
असम में तीसरे चरण के चुनाव के बाद आये कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में इस बात के संकेत दिए गए हैं कि राज्य में कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी गठबंधन के बीच 5 से 10 सीटों का फासला रह सकता है। इसी को ध्यान में रखकर कांग्रेस अभी से एक्टिव हो गई है।
असम में हुए विधानसभा चुनाव को लेकर एआईयूडीएफ प्रमुख बदरुद्दीन अजमल पहले ही राज्य में महागठबंधन की सरकार बनने का दावा कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि राज्य में इस बार परिवर्तन हो रहा है और कांग्रेस, एआईयूडीएफ तथा बीपीएफ गठबंधन की सरकार बनेगी।
हाल ही में बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि 2 तारीख को हमारी सरकार आएगी, खेला होबो और हम जीतेंगे। जिन लोगों को हॉर्स ट्रेडिंग करने की आदत है वह यह करेंगे। लेकिन इस बार हॉर्स ट्रेडिंग उस तरफ से नहीं हमारी तरफ से होगी। हमारे लोग कितने बाहर जा रहे हैं, मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है।
वहीँ चुनावी जानकारों की माने तो इस बार असम चुनाव में बीजेपी को सेकुलर वोटों के विभाजन का लाभ नहीं मिला है। जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस और एआईयूडीएफ के अलग अलग चुनाव लड़ने से बीजेपी को मतो के विभाजन का लाभ मिला था। दूसरा सीएए और एनआरसी को लेकर असम की जनता में बीजेपी सरकार के खिलाफ नाराज़गी है, इसलिए सम्भव है कि राज्य में बीजेपी की सत्ता से हाथ धोना पड़े।