2019 में यदि मिलकर लड़ा विपक्ष तो 100 सीटों का आंकड़ा नहीं छू पायेगी बीजेपी

नई दिल्ली। कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावो से एक बात बड़े साफ़ तौर पर सामने आयी है कि यदि 2019 का चुनाव विपक्ष मिलकर लड़ा तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल पैदा हो सकती है।
कर्नाटक विधानसभा चुनावो के परिणाम का आंकलन करने से पता चलता है कि तमाम सीटें ऐसी हैं जहाँ कांग्रेस या जनता दल सेकुलर के उम्मीदवार पांच हज़ार से भी कम वोटों से पराजित हुए हैं। जबकि इन्ही सीटों पर जनतादल सेकुलर और कांग्रेस उम्मीदवार को मिले वोटों को जोड़ा जाए तो वोटों की तादाद बीजेपी उम्मीदवार को मिले वोटों से कहीं ज़्यादा है।
ऐसे में जानकारों का कहना है कि यदि कांग्रेस और जनता दल सेकुलर में चुनाव पूर्व ही सीटों को लेकर गठबंधन हुआ होता तो बीजेपी मुश्किल से पचास सीटों का आंकड़ा ही छू पाती।
राष्ट्रीय स्तर पर इसी परिदृश्य को देखा जाए तो कम से कम 12 राज्यों में विपक्ष के गठबंधन की संभावनाएं बन रही हैं। ऐसे में यदि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का कोई गठबंधन बनता है तो निश्चित रूप से सेकुलर मतों का विभाजन रुकेगा तथा जिसका सीधा सीधा नुकसान बीजेपी को होगा।
बता दें की सेकुलर मतों का विभाजन रुकने के फलस्वरूप बीजेपी को उत्तर प्रदेश की फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा था।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों में अच्छी तादाद में सीटें जीती थीं लेकिन यदि 2019 में विपक्ष मिलकर चुनाव लड़ता है तो बीजेपी को इन्ही राज्यों में साख बचाना मुश्किल हो जायेगा।
हाल ही में वरिष्ठ नेता शरद यादव ने विपक्ष की एकता को लेकर एक बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि यदि विपक्षी दल अलग चलने की राजनीति करेंगे तो उन्हें बीजेपी सबक सिखाएगी। ठीक ऐसा ही कर्नाटक में देखने को मिला। यदि चुनाव पूर्व कांग्रेस और जेडीएस में गठबंधन हुआ होता तो बीजेपी उस हैसियत में ही नहीं होती कि सरकार बनाने की सोच पाती।
जानकारों की माने तो उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा, कांग्रेस और आरएलडी, बिहार में कांग्रेस और आरजेडी, पश्चिम बंगाल में त्रणमूल कांग्रेस और कांग्रेस, तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस, महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस, मध्य प्रदेश में बीएसपी और कांग्रेस, राजस्थान में बीएसपी और कांग्रेस, पंजाब में बीएसपी और कांग्रेस, कर्नाटक में जीडीएस और कांग्रेस, तेलंगाना में टीआरएस और कांग्रेस, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और कांग्रेस, केरल,और त्रिपुरा में वामपंथी और कांग्रेस,झारखण्ड में कांग्रेस आरजेडी और जेएमएम तथा जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस यदि सीटों का तालमेल कर चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है।
जानकारों के अनुसार सेकुलर मतो का जितना विभाजन होगा उतना बीजेपी को लाभ मिलेगा। ऐसे में 2019 के चुनाव के लिए विपक्ष को अभी से एकजुट होने की तैयारी करनी पड़ेगी।
चुनावी विशेषज्ञों की माने तो अब क्षेत्रीय दलों को साथ लिए बिना बीजेपी के दुर्ग को भेदना अकेले कांग्रेस के वश की बात नहीं है। इसका अहम कारण सेकुलर मतो का विभाजन है।
विशेषज्ञों के अनुसार बीजेपी के सैफ्रॉन एजेंडे के चलते सेकुलर मतों का विभाजन एक दो जगह नहीं बल्कि कई जगह हो जाता है। ऐसे में विपक्ष को चाहिए कि वह जिस राज्य में जो क्षेत्रीय पार्टी ताकतवर है उसे आगे रखकर चले। यदि विपक्ष ऐसा कर पाने में सफल होता है तो निश्चित रूप से बीजेपी सौ का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाएगी।
वर्ष 2014 के बाद हुए अधिकांश उपचुनावों में बीजेपी की पराजय का एक बड़ा कारण सेकुलर मतों का विभाजन न होना है। राजस्थान की अलवर और अजमेर सीट पर हुए लोकसभा के उपचुनाव में बीजेपी की पराजय का बड़ा कारण इन सीटों पर क्षेत्रीय दलों का कमज़ोर होना था। जिसके फलस्वरूप क्षेत्रीय दलों पर मतदाताओं ने भरोसा नहीं किया और कांग्रेस को वोट दिया।
वहीँ उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर भी सपा बसपा गठबंधन के चलते सेकुलर मतो का विभाजन रुका था। यदि यहाँ कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे होते तो वे मत भी गठबंधन उम्मीदवारों को मिलना तय थे। जिससे बीजेपी की पराजय का अंतर् और बड़ा हो सकता था।
फिलहाल देखना है कि कर्नाटक में मिले सबक को कांग्रेस किस तरह भविष्य के चुनावो में इस्तेमाल करती है। यदि कांग्रेस ने कर्नाटक से सबक लेकर 2019 के चुनाव के लिए क्षेत्रीय दलों को साथ लिया तो निश्चित ही केंद्र में बीजेपी की बड़ी हार होगी।