हाइकोर्ट के आदेश से वनाधिकार कानून के निष्क्रिय होने का खतरा, सरकार करे कानूनी हस्तक्षेप
रायपुर। *छत्तीसगढ़ किसान सभा* ने राज्य की कांग्रेस सरकार पर वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन के प्रति गंभीर न रहने का आरोप लगाते हुए हाइकोर्ट द्वारा वनाधिकार पट्टों के आबंटन पर रोक लगाने के आदेश की आलोचना की है।
आज जारी एक बयान में *छग किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता* ने कहा है कि वनाधिकार कानून स्पष्ट रूप से 13 दिसंबर 2015 के पूर्व वनभूमि पर काबिज आदिवासियों और गैर-आदिवासियों को पात्र मानता है, न कि इसके बाद किये गए कब्जों को।
इस तरह पात्र 15 लाख आदिवासी परिवार प्रदेश में निवास करते हैं, जबकि पूर्व भाजपा राज में 4 लाख परिवारों को ही आधे-अधूरे पट्टे बांटे गए हैं, 5 लाख आवेदन अवैध ढंग से निरस्त कर दिए गए थे और आज भी लाखों पात्र परिवारों की दावेदारी लंबित हैं। वास्तव में छग में इस कानून का क्रियान्वयन बहुत ही लचर ढंग से हुआ है और यह पूर्व भाजपा सरकार द्वारा आदिवासियीं के वनाधिकारों के दावों के हनन ही था।
किसान सभा ने कहा है कि वनाधिकार के वादे के साथ आई कांग्रेस सरकार भी इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है। कॉरपोरेटों को तो धड़ाधड़ जमीन बांटी जा रही हैं, लेकिन आदिवासियों को व्यक्तिगत पट्टे तो क्या, सामुदायिक अधिकार तक नहीं दिए गए हैं और इस कानून के क्रियान्वयन के लिए नियमों को बनाने वाली कमेटी निष्क्रिय पड़ी हुई है।
किसान सभा नेताओं ने आदिवासी वनाधिकारों के खिलाफ याचिकाकर्ता के कांग्रेस के साथ घनिष्ठ संबंधों को भी रेखांकित किया है तथा कहा है कि कांग्रेस की सरपरस्ती में ही वनाधिकारों के क्रियान्वयन पर रोड़े अटकाने का काम किया जा रहा है। पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदिवासियों की जंगल से बेदखली के आदेश के खिलाफ भी कांग्रेस सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई है ऐसा ही रवैया हाइकोर्ट म् दायर याचिका के मामले में भी देखने को मिली है।
छत्तीसगढ़ किसान सभा ने मांग की है कि सरकार तुरंत कानूनी हस्तक्षेप करें और इस स्टे को हटाने का काम करे, क्योंकि हाई कोर्ट के आदेश से वनाधिकार कानून के पूरी तरह निष्क्रिय हो जाने और आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय के जारी रहने का खतरा पैदा हो गया है।