‘स्वच्छ भारत’ अभियान का सच, 29% शौचालय सिर्फ कागजों पर, 36% उपयोग लायक नहीं : रिपोर्ट

नई दिल्ली । आज स्वच्छ भारत अभियान को लॉन्च हुए दो साल हो गए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 145वीं जयंती पर 2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अभियान की शुरुआत की थी लेकिन दो साल के बाद भी अभियान की स्थिति लचर है।

सेन्टर फॉर पॉलिसी रिसर्च की जवाबदेही तय करने की दिशा में दिसंबर 2015 में पांच राज्यों के कुल 10 जिलों के 7500 घरों का सर्वेक्षण किया जिसमें चौंकानेवाले नतीजे सामने आए हैं। सर्वे में पता चला है कि 29 फीसदी शौचालय सिर्फ कागजों पर बने हैं जबकि जो शौचालय धरातल पर हैं उनमें से 36 फीसदी उपयोग के लायक नहीं है।

सर्वे के लिए उन्हीं जगहों का चुनाव किया गया जो सरकार की उपलब्धियों की सूची में शामिल थे। स्वच्छ भारत वेबसाइट से उन गांवों की लिस्ट ली गई और योजना के लाभार्थियों को तलाशने की कोशिश की गई। लिस्ट में शामिल कई लाभार्थी असलियत में मिले नहीं और कई लोगों के नाम दो-दो बार लिखे पाए गए। जिन राज्यों में सर्वे किया गया उनमें हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और बिहार शामिल है।

सेन्टर फॉर पॉलिसी रिसर्च की यामिनी अय्यर ने कहा, “सरकार को चाहिए कि उपलब्धियों वाली सूची से कुछ गांवों या लाभार्थियों की जांच नमूने के तौर पर कराए। सरकार इसके लिए किसी थर्ड पार्टी एजेंसी की सेवा भी ले सकती है, ताकि असल में धरातल पर हुए काम का पता लगाया जा सके।”

जिन 10 जिलों में सर्वे कराया गया है उनमें सबसे बेहतर महाराष्ट्र का सतारा जिला है। वहां काम संतोषजनक मिला। वैसे भी यह जिला स्वच्छता अभियान और कार्यों के लिए पहले से ही सुर्खियों में है जबकि सबसे खराब प्रदर्शन बिहार के नालंदा जिले का रहा। नालंदा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है।

गौरतलब है कि दो साल पहले लॉन्च हुआ स्वच्छ भारत अभियान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। खुद पीएम ने दिल्ली में झाड़ू लगाकर इस अभियान की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने कई ब्रांड एम्बेसडर नियुक्त किए थे। उनलोगों ने भी कई लोगों को को-ब्रांड एम्बैसडर नियुक्त किए थे।

केन्द्र सरकार के मंत्रियों से लेकर कई सांसदों ने देशभर में झाड़ू लगाकर सफाई का संदेश दिया। सरकार ने इसके लिए स्वच्छता कर भी लगाया है लेकिन स्थितियां बहुत नहीं बदली हैं।

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TeamDigital